यूक्रेन युद्ध शुरू हुए आज एक साल हो गया और अब भी इसके समाप्त होने के कोई स्पष्ट संकेत नजर नहीं आ रहे। न तो दोनों में से कोई पक्ष जीतने की स्थिति में दिख रहा है और न हार स्वीकारने की मन:स्थिति में। यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की अमेरिका और यूरोपीय देशों से अधिकाधिक हथियार मंगाने की कोशिशों में लगे हैं तो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी अचानक कीव पहुंचकर यह साफ संकेत दिया कि उनका यूक्रेन की मदद से पीछे हटने का कोई इरादा नहीं है। दूसरी तरफ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन भी इस बात का खास ध्यान रख रहे हैं कि इस मसले पर उनकी आक्रामकता में कोई कमी न आए। चीन का रूस के और निकट दिखना और उसे हथियार सप्लाई करने की संभावनाओं का खंडन न करना भी इस धारणा को मजबूती देता है कि आने वाले दिनों में युद्ध और तेज होने जा रहा है। लेकिन इसके साथ ही यह भी साफ है कि युद्ध न केवल यूक्रेन और रूस के लिए बल्कि विभिन्न यूरोपीय देशों के साथ-साथ ग्लोबल इकॉनमी के लिए भी कठिनाइयां बढ़ाता जा रहा है। इसलिए जहां युद्ध की आंच बढ़ाने वाली घोषणाएं जारी हैं वहीं शांति कायम करने की बेचैनी भी बढ़ रही है।
इस संदर्भ में देखें तो चीन और भारत ये दो देश ऐसे हैं, जो शांति प्रक्रिया शुरू करने और उसे तार्किक परिणति तक पहुंचाने में सर्वाधिक योगदान करने की स्थिति में नजर आते हैं। यही दो प्रमुख देश ऐसे हैं, जिनके यूक्रेन और रूस दोनों से अच्छे रिश्ते रहे हैं और जिन्होंने हमले का समर्थन न करते हुए भी युद्ध के लिए रूस को दोषी बताने से परहेज किया है। इसलिए ये दोनों देश रूस और यूक्रेन में प्रभाव रखते हैं। इनमें भी भारत की स्थिति बेहतर इसलिए नजर आती है कि आने वाले कुछ दिनों, हफ्तों, महीनों के दौरान यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का केंद्र बना रहने वाला है।
जर्मनी के चांसलर ओलफ शोल्ज इसी सप्ताह भारत दौरे पर आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने वाले हैं। उनके बाद इतालवी पीएम जोर्जिया मेलोनी आने वाली हैं। अगले हफ्ते ही जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक भारत की मेजबानी में होने वाली है, जिसमें रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन दोनों नई दिल्ली में होंगे। इन बैठकों का इस्तेमाल शांति समझौते का कोई सर्वमान्य फॉर्म्युला निकालने की कोशिशों के लिए किया जा सकता है।
हालांकि जिस तरह से यूक्रेन के चार सीमावर्ती क्षेत्र- दोनेत्स्क, लुहांस्क, खेरसॉन और जपोरिजिया- रूस के कब्जे में आ चुके हैं, उनके मद्देनजर दोनों पक्षों को मान्य कोई फॉर्म्युला निकलना आसान नहीं दिख रहा। यूक्रेन इसे वापस लेने पर अड़ा है तो रूस कब्जा बनाए रखने पर। लेकिन कूटनीति की एक विशेषता असंभव को संभव करना भी मानी जाती है।
रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग को 24 फरवरी को एक साल पूरा हो गया, लेकिन इस युद्ध का कोई अंत अभी नजर नहीं आता। दोनों ही देशों के युद्ध में भारी नुकसान हुआ है, लेकिन पीछे हटने के लिए न रूस राजी है और न ही यूक्रेन।