अनिल पुरोहित/अशफाक
भोपाल,08 जून (आरएनएस)। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने अपने निजी सर्वे के आधार पर प्रदेश के 16 में से छह नगर निगमों में महापौर पद के प्रत्याशी तय कर दिए। शेष दस नगर निगामों में भी दो और तीन नामों के पैनल बन गए हैं। महापौर पद के प्रत्याशी पहले घोषित करने से ऐसा लगा कि कम से कम टिकट वितरण के मामले में कांग्रेस ने भाजपा पर बढ़त बना ली है। लेकिन पार्षद पद के टिकट के लिए कांग्रेस में जिस तरह से मारामारी झगड़े और गुटाबाजी हो रही है उससे कमलनाथ की रणनीति धरी की रधरी रह गई है। भोपाल के साथ ही अनेक जिलों में मारपीट और गाली गलौच की घटनाएं हुई हैं। इससे यह भी जाहिर होता है कि नगरीय निकाय के लिए कांग्रेस अधूरी तैयारी के साथ उतरी है। कमलनाथ की रणनीति नगरीय निकाय चुनाव के मामले में कागजों पर अधिक नजर आ रही है। सूत्रों का कहना है कि पूरे प्रदेश के विभिन्न जिलों में जो स्थिति है उनके अनुसार पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का खेमा सबसे अधिक टिकट झटकने की स्थिति में है। इसका कारण यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह प्रदेश की राजनीति में लगातार 40 वर्षों से सक्रिय हैं। जबकि कमलनाथ 2018 के बाद प्रदेश की वास्तविक राजनीति कर रहे हैं। इसके पहले वे अधिकतर केंद्रीय राजनीति में व्यस्त थे इस कारण उन्हें केवल महाकौशल की राजनीति के बारे में पता था। दिग्विजय सिंह मैदानी नेता हैं और लगातार कार्यकर्ताओं के बीच बने रहते हैं। इस कारण से उनके पास ताकतवर उम्मीदवारों की फौज अधिक है। कमलनाथ के सर्वे में भी यही बात आई है कि दिग्विजय सिंह खेमा टिकट वितरण में बेहद मजबूत स्थिति में रहेगा। इसमें कोई शक नहीं कि प्रदेश कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के दिलों पर दिग्विजय सिंह राज करते हैं। कार्यकर्ताओं में उन से अधिक लोकप्रिय कोई नहीं लेकिन चुनाव प्रचार की दृष्टि से वे पार्टी के लिए बोझ हैं। इसलिए आमतौर पर उम्मीदवार उन्हें प्रचार करने के लिए बुलाने से कतराते हैं। यहां तक कि जो उम्मीदवार उनकी वजह से टिकट प्राप्त करते हैं वे भी उन्हें चुनावी सभा में नहीं बुलाते। शिवराज सिंह चौहान के चौथी बार सत्तारूढ़ होने के बाद प्रदेश में एक लोकसभा और 31 विधानसभा के उपचुना वहुए इन सभी से दिग्विजय सिंह को दूर रखने की कोशिश हुइ्र। इन उपचुनाव में उन्होंने बहुत कम प्रचार किया। वे चुनाव क्षेत्र में गए भी तो उन्होंने चुनावी सभाएं लेने की बजाय उन्होंने कार्यकर्ताओं की बैठक ली। चुनाव प्रचार में भी उनके बोझ होने का कारण उनके विवादास्पद बयान और हिंदुत्व विरोधी छवि है। दिग्विजय सिंह की सभाओं से कांग्रेस की वजह भाजपा को लाभ होता है।
उनकी मिस्टर बंटाढार की छवि अभी भी लोगों के दिलों में अंकित है। उनके हिंदुत्व विरोधी बयानों को लेकर कांग्रेस आलाकमान से कई बार शिकायत भी की गई थी लेकिन इसका दिग्विजय सिंह पर कोई असर नहीं हुआ। वे संघ परिवार के खिलाफ जेहादी बन जाते हैं। कांग्रेस की राजनीति में एक बार फिर दिग्विजय सिंह महत्वपूर्ण हो गए हैं। कांग्रेस आलाकमान तो उन्हें महत्व दे रहा है लेकिन पिछले दिनों से कमलनाथ ने फिर से उन्हें वजन देना प्रारंभ कर दिया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ के लिए जमावट की थी। उन्होंने ही कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए प्रेरित किया और वे बन सके तो इसके लिए माहौल् बनाया। 2018 के टिकट वितरण में भी दिग्विजय सिंह का बड़ा रोल था, लेकिन सरकार बनाने के बाद कमलनाथ ने उन्हें दरकिनार करने और राजनीतिक रूप से कमजोर करने की कोशिश की। करीब तीन माह पहले तक दोनों दिग्गजों में काफी दूरियां आ गई थी। यहां तक कि किसानों के लिए किए गए एक धरने के दौरान दिग्विजय सिंह ने कमलनाथ को यहां तक कह दिया था कि क्या उन्हें उनसे पूछ कर मुख्यमंत्री से समय लेना पड़ेगा। इस विवाद की प्रदेश में काफी चर्चा हुई थी। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच दूरी मार्च 2020 में तब आरा प्रारंभ हो गई थी जब कमलनाथ सरकार का पतन हुआ और कमलनाथ ने सार्वजनिक रूप से यह बयान दिया कि दिग्विजय सिंह ने उन्हें भरोसा दिया था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ इतने (22) विधायक नहीं जाएंगे लेकिन सिंधिया के साथ जाने वाले विधायकों की इतनी संख्या रही कि सरकार गिर गई। इस घटनाक्रम के बाद दोनों के बीच संबंध बिगड़ते गए लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से आलाकमान ने दिग्विजय सिंह को महत्व देना प्रारंभ किया उसके बाद कमलनाथ ने भी अपनी रणनीति में बदलाव किया और दिग्विजय सिंह की संगठन क्षमता तथा कार्यकर्ताओं में उनकी लोकप्रियता का प्रदेश कांग्रेस के हित में उपयेाग लेने के लिए तैयार हुए। इसी का नतीजा है कि अब दिग्विजय सिंह प्रदेश की कांग्रेस राजनीति में ड्रायविंग सीट पर बैठ गए हैं।