प्रकाश मेहरा
देहरादून ब्यूरो
देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति इन दिनों नए सियासी मोड़ ले रही है। एक ओर जहां राज्य की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विकास के दावों को दोहराती नजर आ रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस शिक्षा, स्वास्थ्य और खनन माफियाओं जैसे मुद्दों पर सरकार को लगातार घेर रही है।
हाल ही में सामने आई एक आरटीआई रिपोर्ट ने राज्य में प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, कई विभागों के अधिकारी पूछे गए सवालों के स्पष्ट उत्तर देने में विफल रहे हैं। इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या सरकार के विकास के दावे वाकई जमीन पर उतर पाए हैं?
शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था सवालों के घेरे में
राज्य के पहाड़ी इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति अब भी चिंताजनक बनी हुई है। पिछली कई रिपोर्ट्स यह संकेत देती हैं कि इन बुनियादी सुविधाओं में कोई ठोस सुधार नहीं हुआ है। स्कूलों में संसाधनों की कमी, डॉक्टरों की अनुपलब्धता और स्वास्थ्य केंद्रों की जर्जर स्थिति जैसे मुद्दे आज भी जस के तस हैं।
खनन और शिक्षा माफियाओं पर सख्ती या सिर्फ बयानबाज़ी?
बीजेपी सरकार प्रदेश में खनन और शिक्षा माफियाओं पर सख्त कार्रवाई का दावा करती रही है, लेकिन ज़मीनी हालात अलग कहानी बयां करते हैं। कई क्षेत्रों में अवैध खनन की शिकायतें लगातार सामने आ रही हैं, और शिक्षा के क्षेत्र में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली और सुविधाओं की कमी को लेकर भी आवाज़ें उठ रही हैं।
भू-कानून और 5वीं अनुसूची पर सरकार की चुप्पी
राज्य में भू-कानून की मांग को लेकर लंबे समय से प्रदर्शन हो रहे हैं। लोगों की मांग है कि पहाड़ों की भौगोलिक और सामाजिक संरचना को ध्यान में रखते हुए विशेष भू-कानून लागू किया जाए। इसके साथ ही, अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों की रक्षा के लिए 5वीं अनुसूची लागू करने की मांग भी जोर पकड़ रही है। हालांकि, इन दोनों महत्वपूर्ण विषयों पर सरकार की ओर से अब तक कोई ठोस पहल नहीं दिखाई दी है।
कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा का बयान
इन्हीं मुद्दों को लेकर हाल ही में एक पॉडकास्ट में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने सरकार पर निशाना साधा। पहाड़ों की बदहाली और लोगों की पीड़ा को लेकर वह भावुक होते नजर आए। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह जमीनी हकीकत को समझे और सिर्फ बयानबाज़ी न करे।
आगे की राह
अब यह देखना अहम होगा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार इन ज्वलंत मुद्दों पर क्या रुख अपनाती है। क्या सरकार विकास के अपने वादों को धरातल पर उतारने में सफल होगी, या फिर विपक्ष को यह कहने का और अवसर मिलेगा कि सरकार सिर्फ “कागज़ी विकास” में यकीन रखती है?
उत्तराखंड की जनता अब विकास के नाम पर वादे नहीं, बल्कि ठोस बदलाव देखना चाहती है।
देखिये पूरी रिपोर्ट