प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली। यह एक विरल अवसर है, जब देश की राष्ट्रपति ने बलात्कार और हत्या के मामले पर गहरी निराशा और भय का इजहार किया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस महीने की शुरुआत में कोलकाता में एक प्रशिक्ष डॉक्टर के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या के संबंध में अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी की है और उसके बाद देश में सियासी सरगर्मी का बढ़ना तय है। राष्ट्रपति ने ऐसा क्यों किया, इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। राष्ट्रपति ने कहा है कि ‘बहुत हो गया।’ उन्होंने समाज को ‘सामूहिक स्मृतिलोप’ का शिकार बताकर झकझोरा है। कोई शक नहीं कि महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा गंभीर मामला है और इसे लेकर खूब राजनीति भी हो रही है।
राष्ट्रपति की टिप्पणी के बाद ममता बनर्जी !
विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में समाज और शासन के स्तर पर उबाल का माहौल है। जब मामला सर्वोच्च न्यायालय की निगाह में है और सीबीआई भी जांच कर रही है, तब राष्ट्रपति के बयान को तरह-तरह से समझने की कोशिशें हो रही हैं। राष्ट्रपति की टिप्पणी के बाद ममता बनर्जी की शिकायतों का पुलिंदा भी और बढ़ जाएगा। बहरहाल, लोकतंत्र में राजनीति को नहीं रोका जा सकता, लेकिन समाज को अपने स्तर पर राष्ट्रपति के तीखे उद्गार के निहितार्थ को समझना होगा। राजनीति से परे जाकर देखिए, तो ऐसी जघन्य घटनाएं ईमानदार, निष्पक्ष आत्मनिरीक्षण की जरूरत की ओर इशारा करती हैं।
सार्वजनिक स्थलों पर महिला सुरक्षा
यह सही है कि हम अपने कटु अनुभवों को भी भूल जाते हैं। भूलने की बीमारी वाकई चिंता और विमर्श का विषय है। क्या ऐसी घटनाओं के प्रति समाज को सतत जागरूक रखने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं? क्या सभी सार्वजनिक स्थलों पर महिला सुरक्षा संबंधी संदेशों को स्थायी रूप से प्रदर्शित करना चाहिए? महिलाओं को जो लोग कमतर या कमजोर समझते हैं, उन्हें अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। क्या समाज को कोसने के बजाय राजनीतिक दलों को पहले अपने गिरेबान में नहीं झांकना चाहिए?
ऐसे लोग बहुत हैं, जो महिला शोषण की आदत डाले हुए हैं, उन्हें कैसे रेखांकित या चिह्नित किया जाए? राष्ट्रपति ने अगर सामूहिक स्मृति लोप की निंदा की है, तो अब सरकारों का यह दायित्व है कि वे इस बीमारी का यथोचित इलाज करें। मणिपुर में क्या हुआ था? एक वंचित आबादी ने दूसरी वंचित आबादी का शोषण किया था। और तो और, शोषण और अत्याचार में महिलाएं भी शामिल थीं। महिलाओं ने पुलिस ही नहीं, सेना को भी काम करने से रोका था। केवल निंदा, दुख और रोप से कुछ नहीं होने वाला, जमीन पर उतरकर काम करना पड़ेगा। समाज और उसके कर्णधारों को आईना दिखाना पड़ेगा।
फिल्म उद्योग में घिनौने शोषण !
यह पूरा विमर्श केवल पश्चिम बंगाल तक सीमित न रहे, तो ज्यादा बेहतर है। महिला शोषण किसी एक राज्य का मामला नहीं है। केरल में तो जिस मनोरंजन उद्योग को सबसे संवेदनशील और सृजनशील माना जाता है, वहां भी चंद सफेदपोशों ने महिला शोषण से एक नरक ही रच दिया है। ध्यान रहे, फिल्म उद्योग में घिनौने शोषण को उजागर करने वाली हेमा रिपोर्ट को चार साल से ज्यादा समय तक दबाए रखा गया। अब रिपोर्ट सामने आ गई है, तो दोषियों के खिलाफ 17 मामले दर्ज हो चुके हैं। विडंबना देखिए, महिला शोषण की सनसनीखेज रिपोर्ट को
स्वयं वहां की सरकार ने दबाए रखा था। यह समस्या हमें मुंह चिढ़ा रही है और कहीं भी इसे छिपाने की कोशिश वास्तव में किसी भी राज्य की यशगाचा में दाग लगाने की साजिश से कम नहीं है।