प्रकाश मेहरा
एग्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: लोकसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने 5 जुलाई 2025 को केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को लेकर तीखा हमला बोला। राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करते हुए कहा, “पीयूष गोयल चाहे जितना सीना ठोक लें, मेरी बात लिख लीजिए, मोदी ट्रंप की टैरिफ डेडलाइन के सामने चुपचाप झुक जाएंगे।” यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 26% टैरिफ और व्यापार समझौते की समयसीमा को लेकर चल रही चर्चाओं के बीच आया है।
Piyush Goyal can beat his chest all he wants, mark my words, Modi will meekly bow to the Trump tariff deadline. pic.twitter.com/t2HM42KrSi
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) July 5, 2025
मामले पर ट्रंप का टैरिफ प्रस्ताव !
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को भारत सहित कई देशों पर पारस्परिक (reciprocal) टैरिफ लागू करने की घोषणा की थी, जिसमें भारतीय उत्पादों पर 26% शुल्क लगाने की बात कही गई थी। हालांकि, इस टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया गया था, और यह समयसीमा अब 9 जुलाई 2025 को समाप्त होने वाली है।
पीयूष गोयल का बयान ?
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने एक व्यापारिक कार्यक्रम में कहा कि “भारत किसी भी समयसीमा या दबाव के आधार पर व्यापार समझौता नहीं करेगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत तभी समझौता करेगा जब यह देश के हितों, खासकर कृषि और डेयरी क्षेत्र के हितों की रक्षा करेगा। गोयल ने स्पष्ट किया कि भारत अमेरिका, यूरोपीय संघ, न्यूजीलैंड, ओमान, चिली और पेरू जैसे देशों के साथ व्यापार वार्ता में अपनी शर्तों पर ही आगे बढ़ेगा।
#WATCH दिल्ली: कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता पर दिए गए बयान पर केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, "भारत समयसीमा के तहत वार्ता नहीं करता, हम राष्ट्र हितों को ध्यान में रखते हुए वार्ता करते हैं। दुनिया… pic.twitter.com/lx5Ba5luM8
— ANI_HindiNews (@AHindinews) July 5, 2025
मोदी ट्रंप के सामने झुकेंगे: राहुल गांधी
राहुल गांधी ने गोयल के इस बयान पर तंज कसते हुए दावा किया कि “पीएम मोदी ट्रंप की टैरिफ समयसीमा के आगे झुक जाएंगे। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार पहले भी अमेरिकी दबाव के सामने झुकी है और इस बार भी ऐसा ही होगा। राहुल ने इसे पीएम मोदी की “56 इंच की छाती” पर कटाक्ष करते हुए कहा कि यह दबाव वॉशिंगटन में सिमट जाता है।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते में सबसे बड़ा गतिरोध कृषि और डेयरी क्षेत्र को लेकर है। अमेरिका चाहता है कि भारत मक्का, सोयाबीन और डेयरी उत्पादों पर टैरिफ कम करे और अपनी डेयरी कंपनियों को भारतीय बाजार में व्यापक पहुंच दे। वहीं, भारत ने साफ किया है कि वह अपने 80 मिलियन लोगों को रोजगार देने वाले डेयरी और कृषि क्षेत्र के हितों से समझौता नहीं करेगा।
क्या है भारत की स्थिति
भारत की वार्ता टीम, जिसके प्रमुख विशेष सचिव राजेश अग्रवाल हैं, वर्तमान में वाशिंगटन में है और 9 जुलाई की समयसीमा से पहले एक अंतरिम समझौते की संभावना पर काम कर रही है। हालांकि, कई मुद्दों पर अभी सहमति नहीं बन पाई है।
ट्रंप ने भारत को “टैरिफ किंग” कहकर आलोचना की थी और कहा था कि भारत टैरिफ के मामले में रियायत नहीं देता। हालांकि, उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच जल्द ही एक व्यापार समझौता होगा जो दोनों के लिए फायदेमंद होगा।
राहुल गांधी की पिछली टिप्पणियां
राहुल गांधी ने पहले भी पीएम मोदी पर ट्रंप के सामने “झुकने” का आरोप लगाया है। उदाहरण के लिए, फरवरी 2025 में उन्होंने ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में पीएम मोदी की अनुपस्थिति पर तंज कसा था। इसके अलावा, 2019 में कश्मीर मुद्दे पर ट्रंप के मध्यस्थता के दावे को लेकर भी राहुल ने पीएम मोदी पर भारत के हितों के साथ “दगाबाजी” का आरोप लगाया था।
वर्तमान स्थिति समय सीमा का दबाव
9 जुलाई को टैरिफ छूट की समयसीमा समाप्त होने के साथ ही भारत और अमेरिका के बीच एक अंतरिम समझौते की संभावना पर चर्चा तेज हो गई है। यह समझौता 2030 तक प्रस्तावित 500 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार समझौते की पहली कड़ी माना जा रहा है। राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी लगातार इस मुद्दे पर सरकार को घेर रही है। उनका दावा है कि मोदी सरकार राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में असमर्थ है और अमेरिकी दबाव के आगे झुक रही है।
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते
राहुल गांधी का यह बयान भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की समयसीमा और टैरिफ विवाद को लेकर चल रही तनातनी का हिस्सा है। जहां पीयूष गोयल ने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने की बात कही है, वहीं राहुल गांधी ने सरकार पर कमजोर रुख अपनाने का आरोप लगाया है। यह मुद्दा न केवल आर्थिक नीतियों बल्कि भारत की विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।