डॉ रमेश पोखरियाल निशंक
पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं पूर्व मुख्य मंत्री उत्तराखण्ड
नई दिल्ली: रतन टाटा का जाना देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है, और मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी यह एक गहरी क्षति है। उन्हें जानना और उनके विचारों को सुनना मेरे जीवन का एक विशेष अनुभव रहा। उनके विचार और समाज के प्रति उनकी निष्ठा ने मुझे हमेशा प्रेरित किया। मुझे स्मरण है कि जब मैं शिक्षा मंत्री के रूप में शिक्षा नीति पर काम कर रहा था, तब रतन टाटा जैसे व्यक्तित्व का समाज पर प्रभाव मेरे विचारों का हिस्सा रहा। उनका दृष्टिकोण और नेतृत्व का तरीका मेरे लिए एक आदर्श बना।
रतन टाटा की सरलता और विनम्रता के पीछे एक गहरी दूरदृष्टि थी। वे सिर्फ एक सफल व्यवसायी नहीं, बल्कि एक अद्वितीय विचारक और समाजसेवी थे। जब भी मैंने उन्हें सुना या उनके कार्यों का अध्ययन किया, तो यह साफ हुआ कि उनके हर निर्णय के पीछे समाज की भलाई और दीर्घकालिक सोच थी। उन्होंने मुझे सिखाया कि व्यापार या कोई भी नेतृत्व की भूमिका केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं होनी चाहिए, बल्कि समाज को सशक्त बनाने और लोगों के जीवन में वास्तविक बदलाव लाने के लिए होनी चाहिए। उनकी निष्ठा और नैतिकता ने हमेशा हमें समझाया कि सच्चे नेतृत्व में सबसे बड़ी जिम्मेदारी दूसरों के प्रति होती है।
उनसे मिलने के कई मौके मेरे लिए विशेष रहे उनका जीवन इस बात का प्रमाण था कि कैसे एक व्यक्ति अपने कर्मों और सोच से लाखों लोगों की जिंदगियां बदल सकता है। उनके साथ बिताए पल और उनके विचार आज भी मुझे प्रेरणा देते हैं, और मैं खुद को भाग्यशाली मानता हूं कि मुझे उनके जीवन से सीखने का अवसर मिला।
मेरा हमेशा से विश्वास रहा है कि उत्तराखंड में असीम संभावनाएं हैं. यहाँ के युवाओं में अद्भुत क्षमता है। हमारे समक्ष सदैव से उत्तराखंड को देश का सबसे विकसित राज्य बनाने की चुन्नौती रही है। यह संयोग था कि अपने मुख्यमंत्रित्व काल में जब हम राज्य स्थापना की दसवीं वर्षगाँठ मना रहे तो तभी हम अपने राज्य को एक मॉडल प्रदेश बनाने की रणनीति ( विज़न 2020 ) तैयार कर रहे थे। यह हमारे सामने एक बड़ी लक्ष्य था और इसके लिए हमने देश और दुनिया के शिक्षाविदों, अर्थशास्त्रियों , श्रेष्ठ उद्योगपतियों, नीति निर्माताओं, से संपर्क करने का अभियान चलाया था। मेरा हमेशा से मन था कि रतन टाटा हमारा मार्गदर्शन करें।
2010 में उत्तराखंड राज्य की 10वीं वर्षगांठ के अवसर पर, हमने “बीसवीं सदी का भारत: संभावनाएं और चुनौतियाँ” विषय पर एक व्याख्यान श्रृंखला का आयोजन किया। मैंने रतन टाटा जी को बुलाने का निर्णय लिया। मेरे कई सहयोगियों को आशंका थी कि इतने बड़े उद्योगपति, जो देश-विदेश में अत्यंत व्यस्त रहते हैं, शायद न आ पाएं। लेकिन मेरा विश्वास था कि अगर उन्हें राज्य की विकास यात्रा का मार्गदर्शन करने आमंत्रित किया जाए, तो वह अवश्य आएंगे।
मैंने व्यक्तिगत रूप से उन्हें आमंत्रित किया और यह मेरे जीवन के सबसे यादगार निर्णयों में से एक साबित हुआ क्योंकि रतन टाटा जी ने अपने विनम्र व्यवहार के अनुरूप न केवल हमें समय दिया बल्कि हमें आगे बढ़ने हेतु प्रोत्साहित किया । रतन टाटा हमारे व्याख्यान के मुख्य वक्ता थे। जिस दिन उन्होंने मंच पर आकर अपनी बात रखी, वह क्षण उत्तराखंड के इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ गया। उनके विचार न केवल प्रेरणादायक थे, बल्कि उन्होंने राज्य और देश की भविष्य की दिशा को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया।
वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की पूरी क्षमता
मुझे आज भी वह क्षण याद है जब रतन टाटा ने अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा, “भारत के पास वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने की पूरी क्षमता है, लेकिन हमें अपने बुनियादी ढांचे को विकसित करना होगा और भ्रष्टाचार से लड़ना होगा।” उन्होंने न केवल चुनौतियों की बात की, बल्कि उन संभावनाओं पर भी जोर दिया जो भारत को एक आर्थिक ताकत बना सकती हैं। उनके शब्दों में वह विश्वास झलकता था, जो एक सच्चे नेता और दूरदर्शी में होता है। उस वक्त उन्होंने भारत को एक ‘बाघ’ की संज्ञा दी, जो पहले लाइसेंस राज के पिंजरे में कैद था, लेकिन अब स्वतंत्र होकर दुनिया पर राज करने को तैयार है। आज जब भारत वैश्विक फलक पर सफलता के झंडे गाड़ रहा है तो रतन टाटा की भविष्यवाणी अक्षरश: सच होती प्रतीत होती है।
उनकी विनम्रता के दर्शन तब हुए व्याख्यान के दौरान एक बेहद भावुक क्षण का साक्षी बना। जब रतन टाटा दशकों बाद उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी से मुलाकात कर रहे थे । मंच पर जाने से पहले, उन्होंने तिवारी जी को देखा और तुरंत उनके पास जाकर उन्हें गले लगा लिया। मंच से उन्होंने कहा, “मैं बेहद खुश हूं कि मैं इस पवित्र भूमि पर आप सभी के बीच हूं और तिवारी जी से, जो मेरे पिता के मित्र हैं, 30 साल बाद मिल रहा हूं।” यह न केवल दो महान व्यक्तित्वों की मुलाकात थी, बल्कि इतिहास और वर्तमान के बीच एक सेतु था, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
युवा जनसंख्या – देश की सबसे बड़ी संपत्ति
उस व्याख्यान में रतन टाटा ने भारत की युवा जनसंख्या को देश की सबसे बड़ी संपत्ति बताया और कहा कि भारत “मानव संसाधनों की फैक्ट्री” बनने जा रहा है। उन्होंने चीन के मुकाबले भारत की युवा शक्ति को सबसे बड़ी ताकत बताया और कहा कि भले ही चीन आर्थिक विकास में आगे हो, लेकिन भारत की युवा जनसंख्या उसे आने वाले समय में और भी मजबूत बना देगी। यह उनके दूरदर्शी नेतृत्व और गहरी समझ का प्रमाण था। रतन टाटा का उत्तराखंड से विशेष लगाव था।
उन्होंने इस राज्य की प्राकृतिक सुंदरता और संसाधनों को हमेशा सराहा और कहा कि “हमारे पास हिमालय जैसा पर्वत, विशाल भूमि और महासागर हैं। हमें बस यह सोचना है कि इन संसाधनों का सही उपयोग कैसे किया जाए और आने वाली चुनौतियों का सामना कैसे किया जाए।” उनके इन शब्दों ने हमें और भी प्रेरित किया कि हम उत्तराखंड को एक समृद्ध और आत्मनिर्भर राज्य बनाने की दिशा में काम करें। उनके इस व्याख्यान ने न केवल मुझे, बल्कि पूरे राज्य को एक नई दिशा दी। यह वह क्षण था, जिसने हमें यह विश्वास दिलाया कि अगर सही नेतृत्व और दृष्टिकोण हो, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती।
इस ऐतिहासिक व्याख्यान में रतन टाटा ने उत्तराखंड के विकास की अपार संभावनाओं पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह राज्य एक दिन बड़ी प्रगति करेगा। केंद्र सरकार के आर्थिक पैकेज पर उन्होंने कहा कि इससे अधिक लाभ नहीं होगा, लेकिन टाटा समूह उत्तराखंड में अपने विस्तार को जारी रखेगा। इसके तुरंत बाद, उन्होंने अपने प्रतिनिधिमंडल को देहरादून भेजा, जिसमें कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों ने राज्य में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, तकनीक में निवेश, पर्यटन और स्वास्थ्य पर्यटन के साथ-साथ हाइड्रो प्रोजेक्ट्स और किफायती आवास परियोजनाओं पर चर्चा की। यह राज्य के विकास के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और दूरदर्शिता का प्रमाण था, जिसने हमें प्रेरित किया कि हम उत्तराखंड को एक समृद्ध और स्थिर राज्य बनाने की दिशा में काम करें।
जब मैंने उत्तराखंड के विकास को लेकर रतन टाटा से बात की, तो उनका दृष्टिकोण बेहद व्यावहारिक और गहन था। उन्होंने देश के समक्ष खड़ी चुनौतियों को विस्तार से बताया। उन्होंने जनसंख्या को समुचित रोजगार देने की बात कही और कहा कि विकास की अवधारणा को आगे बढ़ने हेतु पर्याबवारन की चिंता आवश्यक है। । आम आदमी के लिए आवास की समस्या और कृषि उत्पादन में गिरावट पर भी उन्होंने गहन विचार रखे। उनके अनुसार, देश में उद्योगों के लिए भूमि अधिग्रहण एक बड़ी चुनौती है, और साथ ही आतंकवाद और पड़ोसी देशों में अस्थिरता भी हमारी सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बने हुए हैं।
यह सब सुनकर मुझे महसूस हुआ कि हमारे राज्य को सही दिशा में विकसित करने के लिए ऐसे दूरदर्शी नेतृत्व की जरूरत थी। उन्होंने पर्यावरण की रक्षा करते हुए विकास को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। मुंबई आतंकी हमले पर उन्होंने प्रशासन की प्रतिक्रिया की आलोचना की और कहा कि अगर समय पर कमांडो कार्रवाई की जाती, तो नुकसान को कम किया जा सकता था। इन घटनाओं ने मुझे यह समझने में मदद की कि चुनौतियां चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, सही निर्णय लेना कितना महत्वपूर्ण होता है। इस ऐतिहासिक व्याख्यान में रतन टाटा ने उत्तराखंड के विकास की अपार संभावनाओं पर भी जोर देते कहा कि प्राकृतिक संसाधन के साथ कुशल मानव संसाधन से युक्त यह प्रदेश देश में अपनी अलग जगह बनाने में सक्षम है।
नई शिक्षा नीति 2020 के निर्माण के दौरान, मुझसे अक्सर पूछा जाता था कि आप मानवीय मूल्यों को शिक्षा में कैसे समाहित करेंगे। मेरा उत्तर सरल था: “हम अपने महानतम व्यक्तियों के व्यक्तित्व से उनका परिचय करवा सकते हैं। उनके जीवन कहानियों को उन्हें पढ़ा सकते हैं ताकि वे समझ सके कि इन लोगों ने कैसे चुन्नौतियों को अवसरों में बदला ? जब मैंने गुरुनानक, कबीर, स्वामी दयानन्द , महर्षि अरविन्द स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जैसे नामों का उल्लेख किया, तो मैंने आज के समय से रतन टाटा का नाम भी लिया। कहीं न कहीं यह उल्लेख उनके प्रति मेरे मन में इतना सम्मान है क्योंकि उन्होंने न केवल उद्योग जगत में ऊंचाइयों को छुआ, बल्कि समाज की सेवा और देश के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके भीतर वह विनम्रता और दूरदृष्टि है जो हमारे देश के सामने खड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिए आवश्यक है।
शिक्षा से बनेगा भारत विश्वगुरु
रतन टाटा का विश्वास था कि शिक्षा से ही भारत विश्वगुरु बन सकता है। राष्ट्रीय में भी हमारा यही लक्ष्य है। रतन टाटा का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान अतुलनीय है। उनके नेतृत्व में टाटा ट्रस्ट्स ने शिक्षा के माध्यम से हज़ारों विद्यार्थियों को सशक्त किया है और सतत विकास के लिए मजबूत नींव रखी है। चाहे यह आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों के लिए उच्च शिक्षा में सहायता प्रदान करने वाले छात्रवृत्ति कार्यक्रम हों या फिर भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु में अल्जाइमर जैसी बीमारियों पर शोध के लिए निवेश, टाटा जी का समर्पण शिक्षा और नवाचार के माध्यम से समाज को आगे बढ़ाने का रहा है।
उन्होंने यह सिद्ध किया कि सही दिशा में निवेश करके हम न केवल व्यक्तियों को बल्कि पूरे समाज को सशक्त कर सकते हैं। रतन टाटा का शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी, स्वास्थ्य और महिला सशक्तिकरण में योगदान भी असाधारण रहा है। उन्होंने शिक्षा को न केवल ज्ञान अर्जन का साधन माना, बल्कि इसे भविष्य के नेताओं और नवप्रवर्तकों को तैयार करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी माना।
समाज को बेहतर बनाने के लिए एक अटूट प्रतिबद्धता
टाटा जी का यह विश्वास कि भारत की सबसे बड़ी संपत्ति यहां की युवा शक्ति है, आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी विरासत और मूल्यों ने आने वाली पीढ़ियों को सशक्त करने का मार्ग प्रशस्त किया है, और उनके योगदान हमेशा हमारी शिक्षा प्रणाली और समाज को दिशा देते रहेंगे। उनके विचार आज भी उत्तराखंड की प्रगति में गूंजते हैं और हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें, उनके विचार और उनका योगदान हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे।
उनका यह व्याख्यान उत्तराखंड के इतिहास में एक मील का पत्थर था, और मैं गर्व से कह सकता हूं कि उनका मार्गदर्शन हमें सही दिशा में आगे बढ़ाने में निर्णायक साबित हुआ। रतन टाटा ने लाखों लोगो को प्रेरित किया उन्हें जीने की नयी राह दिखाई तभी प्रधानमंत्री मोदी ने दूरदर्शी औद्योगिक नेतृत्व के साथ करुणा की मुर्ति और असाधारण इंसान बताया प्रधानमंत्री ने आगे लिखा उनका योगदान बोर्डरूम से कहीं आगे तक गया। उन्होंने अपनी विनम्रता, दयाभाव और हमारे समाज को बेहतर बनाने के लिए एक अटूट प्रतिबद्धता के कारण कई लोगों के बीच अपनी जगह बनाई।