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संवैधानिक व्यवस्था पर बुलडोजर

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
June 19, 2022
in विशेष
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अजीत द्विवेदी

उत्तर प्रदेश में अगर लोगों के घरों पर बुलडोजर चल रहा है तो इसमें क्या हैरानी है! आखिर भारतीय जनता पार्टी ने बुलडोजर दिखा कर वोट मांगा था। भाजपा की चुनावी रैलियों में बुलडोजर खड़े किए जाते थे। उनकी झांकियां सजाई जाती थीं। नेता बुलडोजर पर चढ़ कर वोट मांगते थे और वादा करते थे कि चुनाव जीते तो बुलडोजर का चलना जारी रहेगा। भाजपा जिस चेहरे पर चुनाव लड़ रही थी उसे ‘बुलडोजर बाबा’ कहा जाता था। सो, अगर चुनाव जीतने के बाद वहीं बाबा बुलडोजर चलवा रहे हैं तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है। जो लोग हैरान हो रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या वे उम्मीद कर रहे थे कि भाजपा ने वोट भले बुलडोजर दिखा कर मांगा है लेकिन चुनाव जीतने के बाद वह इसका इस्तेमाल नहीं करेगी? अगर वे ऐसा सोचते थे तो इसका मतलब है कि उनको राजनीति की बदलती दिशा का अंदाजा नहीं था।

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असल में बुलडोजर भारतीय राजनीति और समाज में हुए बहुत बड़े बदलाव का प्रतीक है। यह भारतीय समाज या कम से कम एक बड़े समूह के कट्टर और हिंसक होते जाने और एक खास समुदाय के प्रति बदले की भावना के प्रबल होने का प्रतीक है। कट्टरता, हिंसा और बदले की भावना इस कदर मन मस्तिष्क में बैठी है कि एक बड़ी आबादी प्रयागराज में मोहम्मद जावेद का घर गिराए जाने की वीडियो और फोटो किलकारी मारते हुए शेयर कर रही है। पैगंबर मोहम्मद पर आपत्तिजनक टिप्पणी के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों पर लाठी बरसाती पुलिस के वीडियो शेयर करके अगर सत्तारूढ़ दल का कोई विधायक उसे ‘रिटर्न गिफ्ट’ कहता है तो अंदाजा लगा सकते हैं कि देश की राजनीति और समाज किस दिशा में बढ़ रही है। अगर जुमे की नमाज के बाद मुसलमानों के प्रदर्शन के अगले दिन हुई बुलडोजर की कार्रवाई का हवाला देते हुए सत्तारूढ़ दल का कोई नेता कहे कि ‘हर शुक्रवार के बाद एक शनिवार आता है’ तो समझ सकते हैं कि किस तरह राज्य की ज्यादती को न्यायसंगत ठहराते हुए उसे मुख्यधारा का राजनीतिक विमर्श बनाया जा रहा है।

बुलडोजर के सहारे त्वरित न्याय के प्रति बढ़ती आस्था न्यायपालिका सहित देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं के अप्रसांगिक होते जाने का भी संकेत है क्योंकि बुलडोजर किसी व्यक्ति या उसके घर के ऊपर नहीं चल रहा है, बल्कि संवैधानिक व्यवस्था पर चल रहा है। तभी यह तय करने का समय है कि देश संवैधानिक व्यवस्था के हिसाब से चलेगा या बुलडोजर से चलेगा? क्या किसी सभ्य समाज में और नियम कानून के सहारे चलने वाले समाज में यह सोचा जा सकता है कि राज्य अपने ही नागरिकों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई करेगा? क्या किसी सभ्य राज्य में चुनी हुई सरकार को पुलिस, वकील और जज तीनों की भूमिका निभाने की इजाजत हो सकती है? लेकिन बुलडोजर चला रही सरकार अपने को हर कानून और हर संवैधानिक व्यवस्था से ऊपर मान रही है। उसे न्याय के बुनियादी सिद्धांत की भी परवाह नहीं है और ऐसा इसलिए है क्योंकि उसे भरोसा है कि जिन लोगों ने उसे वोट दिया है वे इससे खुश होंगे और इसका समर्थन करेंगे। इस लिहाज से यह एक सरकार का मनमानापन या संवैधानिक व्यवस्था की विफलता भर नहीं है, बल्कि एक सभ्य समाज के रूप में भारत और इसके नागरिकों के विफल होने का भी संकेत है।
इसे देश और समाज के अराजकता की ओर बढऩे का संकेत भी मान सकते हैं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुने हुए निरकुंश शासन तंत्र यानी इलेक्टेड ऑटोक्रेसी में बदलने का संकेत भी मान सकते हैं। इस व्यवस्था में सरकार तय करेगी कब कौन प्रदर्शन करेगा, किसके प्रदर्शन पर लाठी चलानी है, किसको गिरफ्तार करना, किसका एनकाउंटर कर देना है, किसकी संपत्ति जब्त करनी है या किसके घर पर बुलडोजर चलाना है। पहले यह काम कानून से होता था लेकिन अब सत्ता की मर्जी से होने लगा है। सरकार ने देखा कि मोहम्मद जावेद शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद हुए प्रदर्शन में शामिल था तो अचानक सरकार को इलहाम हुआ कि जावेद जिस घर में रहता है वह अवैध है। सो, शनिवार को उसे नोटिस दिया गया और रविवार को बुलडोजर चला कर घर गिरा दिया। बाद में पता चला कि घर तो जावेद का था ही नहीं। घर जावेद की पत्नी परवीन फातिमा के नाम से था, जो उन्हें उनके पिता ने उपहार में दिया था। पूरा परिवार उसी घर में रहता था और बिजली-पानी का वैध कनेक्शन वहां लगा हुआ था, जिसका बिल समय से जमा किया जाता था। ऐसा नहीं है कि ये बातें प्रयागराज विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को नहीं पता होंगी। वे भी जानते होंगे लेकिन चूंकि आरोपी का नाम जावेद है और सरकार बहादुर चाहते हैं कि उसका घर गिरा दिया जाए तो गिरा दिया जाए, बाद में जो होगा देखा जाएगा।

क्या प्रयागराज विकास प्राधिकरण इस बात की गारंटी दे सकता है कि जावेद के घर के आगे या पीछे बने बाकी मकान पूरी तरह से वैध हैं या उनमें कोई अवैध निर्माण नहीं हुआ है? अगर हुआ है तो उनको तोड़े जाने की बारी कब आएगी? असल में यह अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई ही नहीं है। यह कार्रवाई सबक सिखाने की है। आदमी को नाम से पहचान कर उसके खिलाफ सबसे बर्बर कार्रवाई करके मिसाल बनाने की है ताकि भय पैदा किया जा सके। यह एक राजनीतिक कार्रवाई है, जिसका मकसद अपने समर्थकों को यह संदेश देना है कि देखो हम वह कर रहे हैं, जिसका वादा करके आए थे। लेकिन ध्यान रहे आज जो बुलडोजर जावेद के घर पर चल रहा है वह हमेशा जावेद के घर पर ही चलता नहीं रहेगा। याद करें कैसे दिल्ली के जहांगीरपुरी में किसी झा साहेब की पान की दुकान बुलडोजर का पहला शिकार बनी थी। अगर कानून का राज खत्म होगा तो इस बात की गारंटी नहीं होगी कि सत्ता की सनक का अगला शिकार कौन होगा। इसलिए कानून के राज के क्षरण और संवैधानिक व्यवस्था के पतन का जश्न मनाना बंद करें और भावी खतरे को पहचानें। आरोपी को बिना समय दिए और बिना उसका पक्ष सुने की जाने वाली हर कार्रवाई देश की संवैधानिक व्यवस्था को कमजोर करने वाली है और संविधान-कानून के राज का कमजोर होना हर इंसान के कमजोर होने का कारण बनेगा, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान।

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