स्पेशल डेस्क/पटना : बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बीच तीखी नोकझोंक और सियासी बयानबाजी कोई नई बात नहीं है। हाल के मॉनसून सत्र (जुलाई 2025) में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के माता-पिता, लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के शासनकाल पर बार-बार निशाना साधा, जिसने सियासी हलकों में चर्चा को गर्म कर दिया। नीतीश का तेजस्वी को “बच्चा” कहना और उनके माता-पिता के शासन को “जंगलराज” करार देना केवल व्यक्तिगत तंज नहीं, बल्कि एक सोची-समझी चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। आइए, इस सियासी रणनीति, इसके कारणों और प्रभावों का विस्तार से विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
नीतीश कुमार का तेजस्वी के माता-पिता पर हमला
सियासी तंज या रणनीति ? नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हुए कहा, “जब तुम बच्चे थे, तुम्हारे माता-पिता का शासन था। तब लोग शाम को घर से बाहर नहीं निकलते थे। उन्होंने लालू-राबड़ी के शासनकाल को “जंगलराज” की संज्ञा दी, जिसमें कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब थी। नीतीश ने यह भी दावा किया कि उन्होंने लालू को मुख्यमंत्री बनवाया, लेकिन बाद में उनकी नीतियों से असहमति के चलते अलग हो गए।
नीतीश की रणनीति
सुशासन की छवि को मजबूत करनानीतीश कुमार पिछले दो दशकों से अपनी “सुशासन बाबू” की छवि को बिहार की जनता के बीच प्रचारित करते रहे हैं। लालू-राबड़ी के शासनकाल (1990-2005) को निशाना बनाकर नीतीश यह संदेश देना चाहते हैं कि उनके शासन में बिहार में कानून-व्यवस्था, बुनियादी ढांचा, और विकास के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आए। 2005 के बाद नीतीश की सरकार ने सड़कों, बिजली और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सुधार किए, जिसे वे बार-बार अपने भाषणों में उजागर करते हैं।
लालू-राबड़ी के शासन की आलोचना
नीतीश लालू-राबड़ी के शासन को “जंगलराज” कहकर यह दर्शाने की कोशिश करते हैं कि उस दौर में बिहार में अराजकता थी। यह उनकी अपनी उपलब्धियों को उजागर करने का एक तरीका है। तेजस्वी की युवा अपील और उनकी लोकप्रियता को कम करने के लिए नीतीश उनकी सियासी परिपक्वता पर सवाल उठाते हैं। “बच्चा” कहकर नीतीश तेजस्वी को अनुभवहीन और उनके माता-पिता की विरासत का उत्पाद बताने की कोशिश करते हैं।
सियासी संदेश परिवारवाद पर प्रहार
नीतीश का तेजस्वी के माता-पिता पर हमला परिवारवाद की राजनीति को निशाना बनाने का हिस्सा है। बिहार में लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी की राजनीतिक विरासत को तेजस्वी आगे ले जा रहे हैं। नीतीश इस बात को उजागर करके जनता के बीच यह संदेश देना चाहते हैं कि तेजस्वी की सियासी हैसियत उनकी अपनी मेहनत से नहीं, बल्कि उनके माता-पिता की देन है। यह रणनीति खास तौर पर उन मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए है, जो परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ हैं।
नीतीश और लालू के बीच की पुरानी सियासी प्रतिद्वंद्विता भी इस बयानबाजी का एक कारण है। नीतीश का दावा कि उन्होंने लालू को मुख्यमंत्री बनवाया, यह संदेश देता है कि लालू की सियासी सफलता में नीतीश का योगदान था, जिसे तेजस्वी को याद रखना चाहिए।
क्या है चुनावी रणनीति ?
मतदाताओं को एकजुट करना बिहार में जातिगत समीकरण और सामाजिक गठजोड़ चुनावी जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। नीतीश की रणनीति में लालू-राबड़ी के शासन को निशाना बनाकर अपने कोर वोटरों, खासकर गैर-यादव ओबीसी और अति-पिछड़ा वर्ग को एकजुट करना शामिल है।
नीतीश अपनी छवि को “सुशासन” के साथ जोड़कर और लालू-राबड़ी के शासन को “जंगलराज” बताकर एक स्पष्ट कंट्रास्ट बनाते हैं। यह नैरेटिव एनडीए समर्थकों, खासकर जेडीयू और बीजेपी के वोटरों को एकजुट करने में मदद करता है।
महिलाओं और अल्पसंख्यकों को लुभाने की कोशिश: नीतीश ने विधानसभा में दावा किया कि उनकी सरकार ने मुस्लिम समुदाय के लिए काम किया, जबकि आरजेडी ने नहीं। यह अल्पसंख्यक वोटरों को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा है।
तेजस्वी का जवाब
कानून-व्यवस्था और युवा अपील तेजस्वी यादव भी नीतीश की इस रणनीति का जवाब देने में पीछे नहीं हैं। वे बिहार में बढ़ते अपराध, बेरोजगारी, और मतदाता सूची से नाम कटने जैसे मुद्दों को उठाकर नीतीश की सुशासन की छवि पर सवाल उठा रहे हैं। तेजस्वी ने दावा किया कि बीजेपी और चुनाव आयोग की विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया के जरिए लाखों वोटरों के नाम काटे जा रहे हैं, जिसे वे “लोकतंत्र की हत्या” करार देते हैं। यह मुद्दा उठाकर तेजस्वी नीतीश और एनडीए को घेरने की कोशिश कर रहे हैं।
तेजस्वी ने बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को केंद्र में रखकर युवा और गरीब वोटरों को लुभाने की रणनीति अपनाई है। 2020 में उनके 10 लाख नौकरियों के वादे ने बिहार में हलचल मचाई थी, और वे इस बार भी इसी तरह के वादों के साथ मैदान में हैं।
सियासी माहौल और पोस्टर वॉर
बिहार में चुनावी माहौल गर्म है और यह विधानसभा सत्र से लेकर सड़कों तक दिख रहा है। पटना की दीवारों पर नीतीश-मोदी और तेजस्वी के बीच पोस्टर वॉर भी तेज हो गई है। आरजेडी के पोस्टरों में तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश किया जा रहा है, जबकि एनडीए नीतीश को क्षेत्रीय भरोसेमंद चेहरा और मोदी को राष्ट्रीय चेहरा बनाकर प्रचार कर रहा है।
तेजस्वी अपनी छवि को एक युवा, सशक्त नेता के रूप में पेश कर रहे हैं, जो सामाजिक न्याय और विकास के मुद्दों पर फोकस करता है। उनके संवाद यात्रा और “पलायन रोको-नौकरी दो” जैसे अभियानों ने युवा वोटरों में उनकी अपील बढ़ाई है। नीतीश अपनी महिला संवाद यात्रा और विकास परियोजनाओं के जरिए जनता से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी रणनीति में बीजेपी के साथ गठबंधन को मजबूत रखना और अपने पुराने वोटर बेस को बनाए रखना शामिल है।
क्या है इसका सियासी प्रभाव ? नीतीश की रणनीति का असर
नीतीश का लालू-राबड़ी पर हमला उनके कोर वोटरों को एकजुट करने में प्रभावी हो सकता है, खासकर उनमें जो जंगलराज के दौर को याद करते हैं। हालांकि, बार-बार गठबंधन बदलने की उनकी छवि (जैसे 2022 में महागठबंधन और 2024 में फिर एनडीए) उनके खिलाफ जा सकती है। तेजस्वी ने इस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि बीजेपी को अमित शाह से हलफनामा लिखवाना चाहिए कि नीतीश पांच साल तक मुख्यमंत्री रहेंगे। नीतीश की “बच्चा” वाली टिप्पणी तेजस्वी के समर्थकों, खासकर युवाओं में, नकारात्मक प्रतिक्रिया पैदा कर सकती है।
तेजस्वी की जवाबी रणनीति
तेजस्वी ने नीतीश की सुशासन छवि को चुनौती देने के लिए कानून-व्यवस्था और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाया है। हाल के अपराधों और पुलिस पर हमलों ने उनके इस नैरेटिव को बल दिया है। तेजस्वी की युवा अपील और महागठबंधन की रणनीति (जिसमें कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं) एनडीए को कड़ी टक्कर दे सकती है। हाल के सर्वे में महागठबंधन को 126 सीटों के साथ बहुमत मिलने का अनुमान है, जबकि एनडीए को 112 सीटें मिल सकती हैं। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी बिहार में नया विकल्प बनने की कोशिश कर रही है, लेकिन सर्वे में उसे केवल एक सीट मिलने का अनुमान है। कांग्रेस और छोटे दल जैसे चिराग पासवान और जीतन राम मांझी के वोट बैंक भी गठबंधनों के लिए अहम होंगे।
बिहार का चुनावी रण
नीतीश कुमार का तेजस्वी के माता-पिता पर बार-बार हमला सियासी तंज से कहीं ज्यादा एक सुनियोजित चुनावी रणनीति का हिस्सा है। यह रणनीति उनकी सुशासन छवि को मजबूत करने, तेजस्वी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने, और अपने कोर वोटरों को एकजुट करने के लिए है। दूसरी ओर, तेजस्वी बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था और वोटर लिस्ट जैसे मुद्दों को उठाकर नीतीश और एनडीए को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में नीतीश बनाम तेजस्वी की यह जंग और तेज होगी, जिसमें दोनों पक्ष अपने-अपने नैरेटिव को जनता के बीच ले जाने की कोशिश करेंगे।सियासी पोस्टर वॉर, संवाद यात्राएं, और विधानसभा में तीखी बहस से साफ है कि बिहार का चुनावी रण अब पूरी तरह गरमा चुका है।