शंकर जालान
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी कब क्या करेंगी; यह कहना बेहद मुश्किल है। कहा जाता है कि राजनीति में कभी कुछ स्थिर नहीं होता, लेकिन इस मामले में ममता भी कुछ भिन्न नहीं हैं। ममता की स्थिरता व अस्थिरता पर भी कुछ कहना बेहद मुश्किल है। इसका ताजा उदाहरण नवम्बर के मध्य में तब देखने को मिला जब तृणमूल विधायक और राज्य के कारा मंत्री अखिल गिरि द्वारा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर की गई अशोभनीय टिप्पणी पर ममता को सार्वजनिक रूप से माफी मांग कर सब को चौंका दिया था और अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ दिसम्बर की पांच तारीख को होने वाली प्रस्तावित बैठक को लेकर चर्चा में हैं।
अपने स्वभाव के विपरीत ममता ने माफी मांगी यह तो बड़ी बात है ही, इससे भी बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आखिरी ऐसी क्या नौबत आन पड़ी कि तृणमूल मुखिया को माफी मांगनी पड़ी? ठीक इसी तरह यह बात भी गले नहीं उतर रही है कि सातों दिन और चौबीसों घंटा प्रधानमंत्री को कोसने वाली ममता अब अगले महीने के शुरुआती दिनों में मोदी से होने वाली प्रस्तावित बैठक को लेकर क्यों लालायित दिख रही हैं? राजनीति के पंडित इस बात को लेकर माथापच्ची कर रहे हैं कि क्या सही में ममता का हृदय परिवर्तन हो गया है या फिर ममता का यूं कोण बदलता बस उनकी राजनीति मजबूरी भर है।
ममता अपनी ही सरकार के कारा मंत्री अखिल गिरि द्वारा महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर जो बयान दिया उससे न केवल गिरि की मानसिकता जाहिर हुई, बल्कि मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए ममता को माफी तक मांगने तक को मजबूर किया। एक नेता या मंत्री कुछ आपत्तिजनक बोल दे, तो पार्टी उस बयान को निजी बताते हुए पल्ला झाड़ लेती है, लेकिन उसी पार्टी की मुखिया राजनीतिक हानि-लाभ के मद्देनजर डैमेज कंट्रोल में जुट जाती है। गिरि के राष्ट्रपति पर दिए बयान के बाद भाजपा लगातार तृणमूल कांग्रेस पर हमलावर है और ममता बनर्जी को आदिवासी विरोधी करार दे रही है। भाजपा के इस आरोप को गलत करार देने के लिए ममता बीते पखवाड़े न केवल हवाई मार्ग से आदिवासियों के गढ़ बेलपहाड़ी पहुंची, बल्कि खुद को आदिवासियों का रहनुमा तक बताया। राजनीति के जानकारों का मत है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को लेकर तृणमूल के कारा मंत्री द्वारा बिना सोचे-समझे की गई टिप्पणी बंगाल में पर्याप्त आदिवासी आबादी को भाजपा की ओर बढऩे से रोकने के लिए तृणमूल कांग्रेस की कोशिशों के सामने एक खतरे की तरह दिख रही है।
ममता ने बिरसा मुंडा के जन्मदिवस पर जाकर यह बताने और जताने का प्रयास किया कि उनके मंत्री भले ही कुछ भी बोलें, लेकिन वे खुद निजी तौर पर आदिवासी समुदाय और आदिवासियों के साथ है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि पंचायत चुनाव से पहले आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती के बहाने ममता बेलपहाड़ी गई थीं और इससे ठीक एक दिन पहले महामहिम मुर्मू से माफी मांगी। ममता की इस माफी में जरूरत और ग्लानि कम जबकि मजबूरी अधिक नजर आई, जिसके पीछे का मुख्य कारण है सूबे का आदिवासी वोट। आदिवासी समुदाय से आने वाली राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हैं।
ऐसे में उनके ऊपर की गई नकारात्मक टिप्पणी आदिवासी समुदाय को किस कदर नागवार गुजर सकती है, इसका अंदाजा शायद ममता बनर्जी को है। यही वजह है कि उन्होंने अपने मंत्री अखिल गिरि की टिप्पणी पर माफी मांग मामले को रफा-दफा करना ही उचित समझा। अनुमान के मुताबिक सूबे में आदिवासी समुदाय 7 से 8 फीसद है। जंगलमहल के आदिवासी क्षेत्र की चार विधानसभाओं-बांकुड़ा, पुरूलिया, झाडग़्राम और पश्चिमी मेदिनीपुर-सीट पर आदिवासियों का मत निर्णायक होता है। इसके अलावा उत्तर बंगाल के दार्जीलिंग, कलिमपोंग, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, उत्तर व दक्षिण दिनाजपुर और मालदा में आदिवासियों की संख्या 25 फीसद तक है। 2019 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने यहां की 22 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी। तब उसे आदिवासी समुदाय का बड़ा समर्थन मिला था। भाजपा ने जंगलमहल की सभी और उत्तर बंगाल की 6 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि 2021 के विधानसभा क्षेत्र में तृणमूल वापसी करने में सफल रही।
मालूम हो कि ममता बनर्जी राष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मू का नाम आने के बाद से ही खासी सतर्क हैं। ध्यान रहे कि राज्य में अगले साल पंचायत चुनाव होने वाले है और गिरि का बयान कहीं तृणमूल का नुकसान न कर दे। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ममता आदिवासियों की साधने में जुटी है। इस बीच, प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ लगातार जहर उगलने वाली ममता अब मोदी से संबंध सुधारने को तत्पर नजर आ रही हैं। विभिन्न घोटालों में तृणमूल के नेतागणों से केंद्रीय जांच एजंसियां (सीबीआई व ईडी) पूछताछ कर रही है और कई नेता जेल में बंद हैं। ऐसे में ममता-मोदी मुलाकात का रहस्य क्या है और ममता किस मकसद से मोदी से भेंट करना चाह रही हैं, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। कहने को तो ममता राज्य की बकाया धनराशि को लेकर प्रधानमंत्री से मिलने वाली हैं, लेकिन निश्चित तौर पर इस बदलाव के निहितार्थ तो हैं।