प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली। इलेक्टोरल बॉन्ड की पूरे देश में चर्चा स्वाभाविक है और इसी कड़ी में देश के सर्वोच्च न्यायालय के प्रयासों और सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को फिर मिली फटकार को देखा जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को एसबीआई को नोटिस जारी करके जवाब भी मांगा है। वास्तव में, चुनाव आयोग की वेबसाइट पर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों को जो सूची पोस्ट हुई है. उसे अधूरा माना जा रहा है। इलेक्टोरल बॉन्ड किसने खरीदा, यह तो पता चल रहा है, लेकिन इससे किसे लाभ हुआ या उसका किस पार्टी ने लाभ लिया, इसकी जानकारी नहीं मिल रही है। कोई अल्फान्यूमेरिक नंबर है, जो सूची के साथ शामिल नाहीं है। अब सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद एसबीआई को अपनी सूची को और स्पष्ट करना होगा। उसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप पहले ही कार्रवाई करनी ही चाहिए थी, ताकि उस पर उंगली न उठती।
इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत राजनीतिक चंदा!
इसमें कोई दोराय नहीं कि इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत राजनीतिक चंदे के लेन-देन को पारदर्शी बनाने के लिए की गई थी। यहां पारदर्शिता का सीधा अर्थ है कि लोगों को चंदे के बारे में पूरी सूचना होनी चाहिए। किस व्यक्ति ने किस पार्टी को कितने पैसे दिए हैं? जब एक बार पैसे के लेन-देन के बारे में साफ तौर पर पता चल जाता है, तब लोग यह आकलन करने की स्थिति में होते हैं कि पैसा क्यों लिया गया होगा या चंदा क्यों दिवा गया होगा? दरअसल, चंदे की पूरी व्यवस्था ही विवेक पर निर्भर करती है। देने वाला अपने विवेक से देता है और जाहिर है, जो करोड़ों रुपये देगा, वह कुछ फायदे लेने के बारे में भी जरूर सोचेगा। आज के महंगे और पूंजीवादी दौर में यह सोचना बहुत भोलापन होगा, अगर हम यह सोचें कि अब तक करोड़ों रुपये का चंदा स्वेच्छा से लिया और दिया जाता रहा है। बहरहाल, जहां तक एसबीआई या किसी अन्य संस्था का सवाल है, तो हर हाल में पारदर्शिता के पक्ष को ही मजबूत किया जाना चाहिए।
लोकतंत्र में किसी संस्था को जरूरी सूचना छिपाने का हक नहीं होना चाहिए। केवल देश की सुरक्षा से संबंधित दस्तावेजों की ही गोपनीयता सुनिश्चित रहनी चाहिए। बाकी तंत्र का कोई भी हिस्सा अगर किसी तरह का लेन-देन कर रहा है, तो इसके बारे में लोगों को पूरी सूचना होनी ही चाहिए। मतलब, एसबीआई को देश और उसके लोकतंत्र में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए काम करना चाहिए, अगर उसका व्यवहार कहीं से भी इस संदर्भ में उदासीन दिखे, तो चिंता होती है। पहले भी अनेक मौके आए हैं, जब हमने इस बैंक का पक्षपाती रवैया देखा है।
चुनावी बॉन्ड के अल्फान्यूमेरिक नंबरों का खुलासा!
शीर्ष अदालत की पीठ ने वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और वकील प्रशांत भूषण की दलीलों पर ध्यान दिया है कि एसबीआई द्वारा चुनावी बॉन्ड के अल्फान्यूमेरिक नंबरों का खुलासा नहीं किया गया है। अब एसबीआई को अपनी विश्वसनीयता बहाल करने की दिशा में गंभीरता से काम करना होगा। यह ध्यान देने की बात है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की गहरी तफ्तीश के लिए अब एसआईटी के गठन की मांग हो रही है। इसका सीधा सा मतलब है कि यह विवाद जल्दी नहीं सुलझने वाला। कुल मिलाकर एसबीआई और अन्य सभी वित्तीय संस्थाओं को सावधान हो जाना चाहिए। इलेक्टोरल बॉन्ड पर आया फैसला एक नजीर है। अब सबको कानून सम्मत के लिए काम कर होगा। एसबीआई पर देश के लोगों का काफी भरोसा रहा है, उसकी साख को और चोट न पहुंचे, इसकी चिंता उसे ही करनी है।