प्रकाश मेहरा
एक्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और कांग्रेस के बीच भारतीय संविधान की प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष” (Secular) और “समाजवादी” (Socialist) शब्दों को लेकर तीखा विवाद चल रहा है। यह विवाद 1975 के आपातकाल (Emergency) की 50वीं वर्षगांठ (25 जून) के अवसर पर और गहरा गया, जब RSS ने इन शब्दों को हटाने की मांग उठाई। कांग्रेस ने इसे “अंबेडकर का संविधान बचाओ” के नारे के साथ संविधान पर हमला करार दिया। यह मुद्दा राजनीतिक, वैचारिक और ऐतिहासिक बहस का केंद्र बन गया है।
सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द इतिहास
“धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द 1976 में 42वें संविधान संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए, जब देश में आपातकाल लागू था। ये शब्द मूल संविधान (1950) का हिस्सा नहीं थे, जिसे बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की अगुआई में तैयार किया गया था।आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार ने कई संवैधानिक बदलाव किए, जिनमें यह संशोधन भी शामिल था।
“धर्मनिरपेक्ष” शब्द का उद्देश्य भारत को सभी धर्मों के प्रति तटस्थ और समानता वाला राष्ट्र घोषित करना था। “समाजवादी” शब्द सामाजिक-आर्थिक समानता और कल्याणकारी नीतियों को बढ़ावा देने के लिए जोड़ा गया।
RSS का पक्ष..शब्द हटाने की मांग
26 जून को नई दिल्ली में एक कार्यक्रम में होसबाले ने कहा कि ये शब्द आपातकाल के “अंधेरे दौर” में बिना पर्याप्त संसदीय चर्चा के थोपे गए। उन्होंने तर्क दिया कि “बाबासाहेब अंबेडकर ने मूल संविधान में इन शब्दों को शामिल नहीं किया था, और इनकी प्रासंगिकता पर खुली बहस होनी चाहिए।
आपातकाल के समय लॉकअप में की गई अमानवीय क्रूरता -श्री दत्तात्रेय होसबाले जी . #Emergency1975 https://t.co/iuUpXwJlxh
— RSS (@RSSorg) June 25, 2025
किन शब्दों को लेकर विवाद ?
RSS आपातकाल को “संविधान की हत्या” का दौर बताता है, जब मीडिया पर सेंसरशिप, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और जबरन नसबंदी जैसे कदम उठाए गए। सोशलिस्ट शब्द यह शब्द आर्थिक नीतियों में लचीलापन सीमित करता है, खासकर जब भारत ने 1991 में उदारीकरण की राह अपनाई।
सेक्युलर शब्द पर RSS का मानना है कि यह शब्द भारत की सांस्कृतिक और हिंदू विरासत को कमजोर करता है। वे “सर्वपंथ समभाव” को भारत की मूल भावना मानते हैं। होसबाले ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि जिनके परिवार ने आपातकाल थोपा, वे आज संविधान की प्रति लेकर “बचाओ” का नारा दे रहे हैं। RSS ने कांग्रेस से आपातकाल के अत्याचारों के लिए माफी मांगने की मांग की।
कांग्रेस का जवाब…’संविधान पर हमला’
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने RSS की मांग को “संविधान विरोधी” करार दिया। उन्होंने कहा कि RSS ने 1949 में ही संविधान का विरोध किया था और नेहरू-अंबेडकर के पुतले जलाए थे। कांग्रेस का दावा है कि “धर्मनिरपेक्ष” और “समाजवादी” शब्द संविधान की मूल भावना को मजबूत करते हैं, जो समानता और सामाजिक न्याय पर आधारित है।
आरएसएस ने कभी भी भारत के संविधान को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। 30 नवंबर 1949 से ही उसने डॉ. अंबेडकर, नेहरू और संविधान निर्माण से जुड़े अन्य लोगों पर हमले किए। स्वयं आरएसएस के शब्दों में, यह संविधान मनुस्मृति से प्रेरित नहीं था।
आरएसएस और बीजेपी ने बार-बार नए संविधान की मांग… pic.twitter.com/NLhH6IbpFO
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 27, 2025
राहुल गांधी ने “संविधान बचाओ” अभियान को तेज करते हुए RSS-BJP पर संवैधानिक मूल्यों को नष्ट करने का आरोप लगाया।
RSS का नक़ाब फिर से उतर गया।
संविधान इन्हें चुभता है क्योंकि वो समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है।
RSS-BJP को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए। ये बहुजनों और ग़रीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा ग़ुलाम बनाना चाहते हैं। संविधान जैसा ताक़तवर हथियार उनसे छीनना इनका…
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 27, 2025
आपातकाल पर रुख
कांग्रेस ने आपातकाल को “ऐतिहासिक भूल” माना है, लेकिन इसे बार-बार उठाने को BJP-RSS की “राजनीतिक चाल” बताया। जयराम रमेश ने कहा कि “RSS का असली मकसद संविधान को बदलकर “मनुस्मृति” लागू करना है, जो अंबेडकर के सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
‘अंबेडकर का संविधान बचाओ’ का नारा
कांग्रेस ने RSS की मांग को “अंबेडकर विरोधी” बताकर दलित और पिछड़े समुदायों को एकजुट करने की कोशिश की है। राहुल गांधी और अन्य नेता संविधान की प्रतियां लेकर रैलियां कर रहे हैं, इसे “अंबेडकर की देन” बताकर।
RSS का कहना है कि “वे अंबेडकर का सम्मान करते हैं और उनकी मांग केवल आपातकाल में थोपे गए बदलावों की समीक्षा तक सीमित है।उन्होंने कांग्रेस पर अंबेडकर के नाम का “राजनीतिक दुरुपयोग” करने का आरोप लगाया।
अन्य पक्ष और प्रतिक्रियाएं
BJP ने RSS की मांग का खुलकर समर्थन नहीं किया, लेकिन आपातकाल को “लोकतंत्र का काला अध्याय” बताकर कांग्रेस पर हमला बोला है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि “आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर देश को उस दौर की याद दिलाना जरूरी है।
विपक्षी दलों का समर्थन
समाजवादी पार्टी, DMK और अन्य विपक्षी दलों ने कांग्रेस के “संविधान बचाओ” अभियान का समर्थन किया। उन्होंने RSS की मांग को “संविधान के साथ छेड़छाड़” बताया। संविधान की प्रस्तावना में बदलाव के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत और राज्यों की मंजूरी चाहिए। वर्तमान में BJP के पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं है, जिससे ऐसा बदलाव मुश्किल है।
सुप्रीम कोर्ट ने 1973 के केशवानंद भारती मामले में संविधान के “मूल ढांचे” (Basic Structure) की रक्षा का सिद्धांत दिया, जिसमें धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय शामिल हैं।
RSS की मांग को लेकर चिंता !
दलित और अल्पसंख्यक समुदायों में RSS की मांग को लेकर चिंता बढ़ रही है, क्योंकि वे इसे सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ मानते हैं। कुछ लोग इसे केवल राजनीतिक बयानबाजी मान रहे हैं, क्योंकि संशोधन के लिए जरूरी संसदीय समर्थन मुश्किल है। यह विवाद RSS की हिंदुत्व विचारधारा और कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष-सामाजवादी विचारधारा के बीच गहरे टकराव को दर्शाता है। 2024 के लोकसभा चुनावों में BJP को पूर्ण बहुमत न मिलने के बाद यह मुद्दा विपक्ष को एकजुट करने का अवसर दे रहा है।
संविधान में बदलाव की संभावना कम है, लेकिन यह बहस 2029 के चुनावों तक राजनीतिक माहौल को प्रभावित कर सकती है।