विशेष डेस्क/देहरादून: उत्तराखंड जिसे “देवभूमि” के नाम से जाना जाता है, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, चारधाम यात्रा और पर्यटन के लिए विश्वविख्यात है। लेकिन इन चमकदार तस्वीरों के पीछे पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली जनता की जिंदगी की सच्चाई कुछ और ही है। ये रिपोर्ट उत्तराखंड के उन अनछुए पहलुओं को उजागर करती है, जो मुख्यधारा की मीडिया में शायद ही कभी चर्चा का विषय बनते हैं। यहां हम ग्रामीण उत्तराखंड के लोगों की परिस्थितियों, मूलभूत सुविधाओं की स्थिति और सरकार के दावों की सच्चाई को गहराई से विशेष विश्लेषण एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा से समझते हैं।
उत्तराखंड की धरातल की स्थिति
लोगों की जिंदगी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग प्राकृतिक आपदाओं, बुनियादी सुविधाओं की कमी और पलायन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। हाल के वर्षों में भारी बारिश, भूस्खलन और बाढ़ ने कई गांवों को तबाह किया है। उदाहरण के लिए, बागेश्वर और चमोली जैसे जिलों में प्राकृतिक आपदाओं ने सड़कों और संचार व्यवस्था को ठप कर दिया, जिससे ग्रामीणों का जीवन और कठिन हो गया है।
क्यों पलायन एक गंभीर समस्या ?
उत्तराखंड में पलायन एक गंभीर समस्या है। पहाड़ी क्षेत्रों के हजारों गांव “भुतहा गांव” बन चुके हैं, क्योंकि युवा रोजगार और बेहतर सुविधाओं की तलाश में मैदानी क्षेत्रों या अन्य राज्यों में चले गए हैं। एक अनुमान के अनुसार, पिछले दो दशकों में लगभग 4 लाख लोग पहाड़ों से पलायन कर चुके हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी उन्हें मजबूर करती है।
उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति इसे भूस्खलन और बाढ़ के लिए संवेदनशील बनाती है। हाल ही में भारी बारिश ने कई जिलों में तबाही मचाई, नदियाँ उफान पर हैं और सड़कें बंद हो गई हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बिना किसी त्वरित सहायता के इन आपदाओं का सामना कर रहे हैं।
महिलाओं और बच्चों की स्थिति
ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ और बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हैं। कई गांवों में बच्चों को स्कूल जाने के लिए उफनते नदियों और गधेरों को पार करना पड़ता है। स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान जोखिम का सामना करना पड़ता है।
मूलभूत सुविधाएँ हकीकत क्या है?
सरकार दावा करती है कि “उत्तराखंड में विकास कार्य तेजी से हो रहे हैं, लेकिन धरातल पर स्थिति कुछ और ही बयान करती है। आइए, प्रमुख मूलभूत सुविधाओं की स्थिति पर नजर डालें तो कई ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें या तो हैं ही नहीं या खराब हालत में हैं। एक X पोस्ट में उल्लेख किया गया कि “120 परिवारों के एक गांव में सड़क नहीं है, और बीमार लोगों को कंधों पर 8 किलोमीटर ले जाना पड़ता है। चारधाम यात्रा के लिए सड़कों का विकास हुआ, लेकिन दूरदराज के गांवों तक सड़कें पहुँचाने में सरकार नाकाम रही है।”
खबर उत्तराखंड से है। 120 परिवार हैं, जिनके लिए रास्ता नहीं है। कोई बीमार होता है तो ऐसे ही कंधो व पीठ पर बैठाकर लोग 8 किलोमीटर चलते हैं फिर सड़क मिलती है।
यहां के लोग बराबर वोट करते हैं, लेकिन इन्हें जो चाहिए वह आज तक नहीं मिला। pic.twitter.com/OaGhrLO8g2
— Rajesh Sahu (@askrajeshsahu) July 2, 2025
- कई बार लोगों ने “(1905) सीएम हेल्पलाइन पर इस समस्याओं के लिए शिकायत भी दर्ज करवाई पर किसी भी तरह की कोई कार्यवाही नहीं हुई, फ़ोन पर एक अधिकारियों से बातचीत और फिर आश्वासन।”
- चमोली के बैंज्याणी पाणा में पास के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) में एक कंपाउंडर है, लेकिन डॉक्टर महीनों से नहीं आए। आपात स्थिति में लोगों को जोशीमठ ले जाना पड़ता है, जो यहां से 35 किमी दूर है। साधन का अभाव और खस्ताहाल सड़कें इस दूरी को और खतरनाक बना देती हैं।
- पीने के पानी की कमी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की सबसे बड़ी समस्या है। एक X पोस्ट में लिखा गया, “आपातकाल आज उत्तराखंड में भी है। पीने का पानी नहीं है।” कई गांवों में लोग दूर-दराज के स्रोतों से पानी लाने को मजबूर हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति दयनीय है। डॉक्टरों और दवाओं की कमी आम बात है। गंभीर बीमारियों के लिए मरीजों को देहरादून या हल्द्वानी जैसे शहरों में ले जाना पड़ता है, जो कई बार असंभव हो जाता है।
- स्कूलों की कमी और शिक्षकों की अनुपस्थिति ने ग्रामीण बच्चों की शिक्षा को प्रभावित किया है। कई स्कूल बंद हो चुके हैं क्योंकि छात्रों की संख्या कम हो गई है।
उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल और चुनौतियां, रिपोर्ट में चौकाने वाला खुलासा !
हालांकि सरकार का दावा है कि सभी गांवों में बिजली पहुँच चुकी है, लेकिन कई क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति अनियमित है। भारी बारिश के दौरान बिजली कटौती आम है।
सरकार के दावे… सच या झूठ ?
उत्तराखंड सरकार और केंद्र सरकार ने कई योजनाओं और विकास कार्यों का दावा किया है, लेकिन इनका कितना प्रभाव धरातल पर दिख रहा है? सरकार का दावा है कि यह परियोजना पर्यटन और स्थानीय लोगों के लिए गेम-चेंजर है। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि यह परियोजना मुख्य रूप से पर्यटकों के लिए है और ग्रामीण क्षेत्रों की सड़कों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ।
दावा सड़क है, लेकिन नहीं है !
सरकार का दावा है कि “हर गांव को सड़क से जोड़ा जा चुका है”। लेकिन बैंज्याणी गांव तक जाने के लिए आज भी 6 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। बरसात में यह रास्ता खतरनाक हो जाता है, कई बार गर्भवती महिलाओं को डोली में लेकर अस्पताल पहुंचाया जाता है। एक ग्रामीण ने बताया “रोड का नाम सुना है साहब, देखा नहीं।”
स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार
सरकार का कहना है कि स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश किया गया है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों और स्कूलों की स्थिति दावों के उलट है। उदाहरण के लिए, जसपुर में एक डॉक्टर की हत्या के बाद मुआवजे के लिए उसकी पत्नी को 9 साल तक मुकदमा लड़ना पड़ रहा है।
ग्राउंड रिपोर्ट पुरानी पर स्थिति में कोई बदलाव नहीं !
सरकार के दावों की पोल खोलता
मुख्यमंत्री एकल महिला स्वरोजगार योजना और हाउस ऑफ हिमालयाज जैसे प्रयासों का दावा किया गया है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर न के बराबर हैं, जिसके कारण पलायन बढ़ रहा है। सरकार का दावा है कि आपदा प्रबंधन में सुधार हुआ है, लेकिन भारी बारिश और भूस्खलन के दौरान राहत कार्यों की धीमी गति और प्रभावित क्षेत्रों तक सहायता न पहुँचना सरकार के दावों की पोल खोलता है।
सरकारी दावे बनाम धरातल की सच्चाई !
जो खबरों में नहीं आतीं संस्कृत गांवों की योजना !
सरकार ने कुछ गांवों को “संस्कृत गांव” बनाने की योजना शुरू की है, जहां केवल संस्कृत में संवाद होगा। यह सांस्कृतिक पहल सराहनीय है, लेकिन जब बुनियादी सुविधाएँ ही उपलब्ध नहीं हैं, तो ऐसी योजनाएँ ग्रामीणों के लिए प्राथमिकता नहीं हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए टिहरी डैम, मसूरी और नैनीताल जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश हो रहा है। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि पर्यटन से होने वाला लाभ स्थानीय समुदाय तक नहीं पहुँचता। इसके बजाय, पर्यटकों की भीड़ ने स्थानीय संसाधनों पर दबाव बढ़ाया है।
चमोली के सुदूर गांवों की हकीकत !
उत्तराखंड सरकार हर साल विकास योजनाओं और बुनियादी सुविधाओं के विस्तार के दावे करती है। स्मार्ट गांव, डिजिटल शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, और सड़क संपर्क जैसे वादे अक्सर समाचार चैनलों और सरकारी विज्ञापनों में दिखाई देते हैं। लेकिन इन दावों की असलियत जानने जब हम चमोली जिले के दूरस्थ गांवों सवाड़—तक पहुंचे, तो वहाँ की तस्वीर पूरी तरह अलग थी।
प्रकाश मेहरा ने वीडियो शेयर कर X पोस्ट में लिखा “उत्तराखंड चमोली के दूरस्थ गांव सवाड़ (ग्वीला) में सड़क न होने की वजह से आज भी ये स्थिति है हालांकि “वीडियो कुछ सप्ताह पहले की है।सड़क से लेकर स्वास्थ और स्कूल से लेकर स्मार्ट गांव तक।”
#Uttarakhand: Due to the absence of a road in the remote village of Sawar (Gweela) in Chamoli, this is still the situation today, although the video is from a few weeks ago. From roads to healthcare, and from schools to the concept of smart villages-the reality remains the same. pic.twitter.com/9ryq29YVEv
— Prakash Mehra (@mehraprakash23) July 2, 2025
लोगों की जिंदगी चुनौतियों से भरी !
उत्तराखंड के लोगों की जिंदगी चुनौतियों से भरी है। प्राकृतिक आपदाएँ, पलायन और बुनियादी सुविधाओं की कमी उनकी सबसे बड़ी समस्याएँ हैं। सरकार के दावों में कुछ हद तक सच्चाई है, जैसे पर्यटन और कुछ शहरी क्षेत्रों में विकास कार्य, लेकिन ग्रामीण उत्तराखंड की स्थिति में सुधार बहुत धीमा है।
सड़क, पानी, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाने के लिए ठोस योजनाएँ बनें। स्थानीय स्तर पर छोटे उद्योगों और स्वरोजगार योजनाओं को बढ़ावा देना जरूरी है। त्वरित राहत और पुनर्वास के लिए बेहतर ढांचा तैयार किया जाए। भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने और विकास योजनाओं को धरातल पर लागू करने के लिए निगरानी तंत्र मजबूत हो। उत्तराखंड की जनता का जुझारूपन और साहस उनकी ताकत है, लेकिन सरकार को उनकी मूलभूत जरूरतों को प्राथमिकता देनी होगी।