प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली। विधि आयोग की सिफारिश के 36 साल बाद भी देश में प्रति दस लाख जनसंख्या पर 50 जज होने का लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल देश में प्रति दस लाख की आबादी पर महज 21 जज हैं, जो 50 फीसदी से भी कम हैं। जबकि देश की अदालतों में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। हालांकि, पिछले कुछ साल में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति में तेजी आई है। निचली अदालतों में अभी भी जज के हजारों पद खाली हैं।
भारतीय विधि आयोग ने 1987 में सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर 50 जज होने चाहिए। ‘भाजपा सांसद दुष्यंत सिंह ने लोकसभा में यह जानना चाहा कि क्या सरकार एक दशक में प्रति दस लाख आबादी पर 50 न्यायाधीशों तक पहुंचने के विधि आयोग के 1987 के लक्ष्य को पूरा कर लिया है या पीछे है ? केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस सवाल के जवाब में देश की जनसंख्या और जजों के अनुपात को लेकर लोकसभा में आंकड़ा पेश किया है।
मंत्रालय की ओर पेश आंकड़ों के मुताबिक देश में फिलहाल प्रति 10 लाख जनसंख्या पर महज 21 जज हैं। उन्होंने कहा कि जहां तक जनसंख्या और जजों के संख्या में अंतर को पाटने की समय सीमा भ का सवाल है तो उच्च न्यायपालिका में जजों की संख्या में बढ़ोतरी कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक सतत और सहयोगात्मक प्रक्रिया है।
मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक ने 2014 में देशभर की जिला अदालतों में जजों 19518 स्वीकृत पद थे और न 15115 जज थे यानी 4 हजार से स अधिक पद खाली थे। जबकि क फिलहाल देशभर की जिला अदालतों ज में स्वीकृत पद 25,423 हैं और जजों क की संख्या 20026 है यानी पांच हजार से अधिक पद खाली है।
मुकदमें निपटारे से आर्थिक विकास में मिलती है मदद
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा को बताया कि अदालतों में लंबित मामलों के निपटारे नि में देरी के चलते होने वाली लागत और देश के जीडीपी पर कितना प्रभाव पड़ता है, इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। हालांकि, सरकार इस बात से भलीभांति अवगत है कि लंबित मामलों के शीघ्र निपटान से देश के समग्र आर्थिक विकास में सुधार करने में मदद मिलती है।