69th National Film Awards के विनर अनाउंस होने के बाद लोग कुछ फिल्मों के नाम खोज रहे हैं. नेशनल फिल्म अवॉर्ड्स की अपनी एक साख है. वहां जीतने वाली फिल्मों को सिनेप्रेमी अपनी वॉचलिस्ट में डालते हैं. लोगों का मानना है कि नेशनल अवॉर्ड किसी टिपिकल फिल्म अवॉर्ड की तरह काम नहीं करता, जहां क्वालिटी काम की जगह सिर्फ पॉपुलर फिल्मों को अवॉर्ड थमा दिया जाता है. बस एक क्रिटिक्स चॉइस अवॉर्ड कैटेगरी में ही अच्छी फिल्मों को सराहा जाता है. हालांकि इस बार के नेशनल अवॉर्ड देखने के बाद लोग उसकी तुलना किसी कमर्शियल फिल्म अवॉर्ड से ही कर रहे हैं.
अल्लू अर्जुन बेस्ट एक्टर की कैटेगरी में जीतने वाले पहले तेलुगु एक्टर बने. लोगों का कहना है कि ‘पुष्पा’ जैसी फिल्म के लिए उनके काम को क्यों सेलिब्रेट किया गया. इस बीच कुछ तगड़ी फिल्मों के नाम भी निकल के आ रहे हैं. उन्हें नेशनल अवॉर्ड में नॉमिनेशन मिले. कट्टर दावेदार माना जा रहा था. लेकिन उनके हिस्से एक भी अवॉर्ड नहीं आया. इस बार के नेशनल अवॉर्ड के बड़े स्नबस के बारे में बताते हैं.
सारपट्टा परमबरै (तमिल)
रंजीत की ये फिल्म कई सारी थीम टैकल करती है. सत्तर के दशक के मद्रास में पनपने वाला बॉक्सिंग कल्चर, जिसके तार अंग्रेज़ों से जुड़े हैं. बॉक्सिंग की दुनिया का कॉम्पीटिशन. और इन सब के पार जाकर दिखाती है हमारा सबसे ज़हरीला पक्ष – जातिवाद. फिल्म में आर्या के कैरेक्टर को सिर्फ अपने हुनर पर ही काम नहीं करना, बल्कि उस ऊंच-नीच वाली विचारधारा के पेट में हुक, जैब और क्रॉस धंसने हैं. ‘सारपट्टा परमबरै’ की सबसे अच्छी बात थी कि इसने गंभीर मुद्दे को लोगों तक पहुंचाने के लिए सभी कमर्शियल पहलुओं को कायदे से इस्तेमाल किया. फिल्म के पंच लैंड कर गए. अमेज़न प्राइम वीडियो पर इस फिल्म को देख सकते हैं.
कर्णन (तमिल)
मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर साल 2021 की सबसे दमदार फिल्म. एक ऐसी फिल्म, जो अनेकों जवाब देने की जगह एक अहम सवाल पूछती है. क्या कोई अपनी मर्ज़ी का नाम भी नहीं रख सकता. कर्ण, द्रौपदी जैसे नाम रखने पर क्या किसी को जूते से कुचला जा सकता है. ‘कर्णन’ में ऐसे कई सीन हैं, जो पेट में आकर किसी भारी घूंसे की तरह लगते हैं. लेकिन उनका एहसास सिर्फ बाहरी नहीं. आपके ज़ेहन के अंदर घर बना लेते हैं. मारी सेल्वराज ने अपनी पहली फिल्म ‘परियेरम पेरूमल’ से दिखा दिया कि उनकी मैसेजिंग कितनी बोल्ड है. ‘कर्णन’ उसी में आकर कुछ और जोड़ती है.
मिन्नल मुरली (मलयालम)
सारा मज़ा सिर्फ विदेशी सुपरहीरो फिल्में ही क्यों करें. ‘मिन्नल मुरली’ मज़ेदार फिल्म है. विदेशी सुपरहीरो फिल्मों की झलक, उनका प्रभाव उस पर दिखता है. लेकिन ये किसी भी तरह विदेशी नहीं लगती. फिल्म अपनी जड़ें इंडिया में ही पाती है. एक आम आदमी है, जिसे हादसे की वजह से शक्तियां मिल जाती है. शक्तियां सिर्फ उसी को नहीं मिलती. उसी के शहर में रहने वाले एक और आदमी तक वो शक्तियां पहुंचती हैं. ऐसा आदमी जिसकी ज़िंदगी हीरो जैसी खुशनुमा नहीं रही. उसे समझने वाला कोई नहीं मिला. दो ऐसे लोग, जिन्हें उनकी आसपास की दुनिया ने हीरो और विलेन बनाया. ‘मिन्नल मुरली’ सिर्फ अपनी ऑडियंस को VFX के दम पर रोककर रखना नहीं चाहती. उसके पास कहानी है, ऐसी कहानी जिसका दिल सही जगह है.
मानाडु (तमिल)
एक फन एक्सपेरिमेंट फिल्म. मुख्यमंत्री की कॉन्फ्रेंस होनी है. ठीक उसी दिन एक आदमी और एक पुलिस ऑफिसर टाइम लूप में फंस जाते हैं. बाहर निकलने की कोशिश करते हैं. लेकिन तमाम प्रयास बेकार साबित होते हैं. अब उनके सामने एक ही ऑप्शन है – एक ही दिन उन्हें बार-बार जीते रहना होगा. टाइम ट्रैवल, टाइम लूप जैसे कॉन्सेप्ट लंबे समय तक हमारे लिए सिर्फ विदेशी ही रहे. खासतौर पर अमेरिकन. हमारे फिल्ममेकर्स उसे यहां ला रहे हैं. अपनी मिट्टी में उसे रंग रहे हैं. ताकि हर कूल चीज़ के परे वो एक इंडियन कहानी ही दिखे. ‘मानाडु’ को सोनी लिव पर स्ट्रीम कर सकते हैं.
जय भीम (तमिल)
साल 2022 के नेशनल अवॉर्ड्स में सूर्या को बेस्ट एक्टर के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. उन्होंने ये ‘सूराराई पोट्रू’ के लिए जीता था. इस बार वो ‘जय भीम’ के लिए नॉमिनेट हुए थे. ‘जय भीम’ जातिवाद पर गुम चोट करती एक सशक्त फिल्म थी. फिल्म के असली हीरो सूर्या नहीं थे. वो फिल्म में एक वकील बने, जो आदिवासी जोड़े को न्याय दिलाने की कोशिश करता है. सेंगेनी और राजाकानू इस कहानी के असली हीरो. इनके रोल किए लिजोमोल ज़ोस और के मणिकंडन ने. कयास लगाए जा रहे थे कि इन दोनों की किसी श्रेणी में ज़रूर अवॉर्ड मिलेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ‘जय भीम’ को अमेज़न प्राइम वीडियो पर देखा जा सकता है.
ये थी वो फ़िल्में, जो लोगों की निगाहों में अवॉर्ड डिज़र्व करती थीं. लेकिन ऐसा हो न सका. दुखद.