यह नहीं कहा जा सकता कि आज भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट का जो दौर है, उसके लिए सिर्फ महामारी या यूक्रेन युद्ध जैसी बाहरी घटना जिम्मेदार है। बल्कि खुद सरकार के कुछ दुस्साहसी फैसलों ने अर्थव्यवस्था का ये हाल बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप गरीबी बढऩे के ठोस आंकड़े हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को हिमाचल प्रदेश के अपने दौरे के समय कहा कि उनकी सरकार ने गरीबी घटाई है और देश को एक मजबूत अर्थव्यवस्था की तरफ ले गई है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के अपने प्रचार तंत्र और व्यापक रूप से मेनस्ट्रीम मीडिया के जरिए करोड़ों लोगों के दिमाग पर इस बात की इतनी जोरदार बमबारी की जाती रही है कि इसमें सचमुच यकीन करने वाले लोगों की कमी नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य से देश की हकीकत ऐसी नहीं है। और यह बात खुद नरेंद्र मोदी की सरकार के तहत आने वाले राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) के आंकड़े बता जाते हैँ। ऐसा ही मंगलवार को हुआ, जब ने पिछले वित्त वर्ष की आखिरी तिमाही के आंकड़े जारी किए। ताजा आंकड़ों से यह सामने आया कि भारत का प्रति व्यक्ति आय अभी कोरोना महामारी की शुरुआत के वक्त की तुलना में काफी नीचे है। 2021-22 में यह रकम 91,481 रुपये रही। 2019-20 में यह रकम 94,270 रुपये थी। 2020-21 में यह गिर कर 85,110 रुपये तक चली गई थी। तो पिछले वित्त वर्ष में इसमें सुधार हुआ, लेकिन जहां तक भारत पहुंच गया था, उससे अभी भी काफी पीछे है। इसी गिरावट का परिणाम है कि दक्षिण एशिया में प्रति व्यक्ति सकल उत्पाद के मामले में बांग्लादेश भारत से आगे निकल गया।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि कम से कम 2026 तक उसकी बढ़त बनी रहेगी। इन्हीं विशेषज्ञों ने अपने तुलनात्मक अध्ययन के जरिए बताया है कि भारत की बढ़त पर पहली मार नोटबंदी से पड़ी। उसके बाद भारतीय अर्थव्यवस्था कभी ठीक से संभल नहीं पाई। इस रूप में यह नहीं कहा जा सकता कि आज भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट का जो दौर है, उसके लिए सिर्फ महामारी या यूक्रेन युद्ध जैसी बाहरी घटना जिम्मेदार है। बल्कि खुद वर्तमान सरकार के कुछ दुस्साहसी फैसलों ने अर्थव्यवस्था का ये हाल बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप गरीबी बढऩे के ठोस आंकड़े हैं। बहरहाल, मोदी सरकार की यही विशेषता है कि वह ऐसी हकीकतों को नैरेटिव बनने से रोकने और अपनी कहानी पर अपने समर्थकों को यकीन करने के लिए लगातार प्रेरित रखने में सफल रही है।