नई दिल्ली। देशभर में लोकसभा चुनाव के पहले चरण के लिए 19 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के अनुसार 2024 के आम चुनाव में 1.8 2 करोड़ मतदाता पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि ये मतदाता क्या करते हैं? 2019 के चुनाव में पहली बार मतदान करने वाले मतदाताओं की तुलना में इस बार के मतदाताओं में क्या अंतर है?
हालांकि, ECI इन सवालों के जवाब देने के लिए कोई डेटा नहीं देता है लेकिन हम राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वे (PLFS) का उपयोग करके कुछ अनुमानों पर पहुंच सकते हैं। पीएलएफएस एक वार्षिक सर्वे है जो भारत में व्यक्तियों की रोजगार स्थिति और घरेलू विशेषताओं दोनों को ध्यान में रखता है। आइये देखते हैं क्या कहते हैं आंकड़े
पहली बार मतदान करने वाले 70% मतदाता नहीं कमा रहे रोजीरोटी
जुलाई 2022 से जून 2023 के बीच के पीएलएफएस डेटा के मुताबिक, काम कर रहे या नौकरी की तलाश कर रहे हैं युवाओं का प्रतिशत 17 साल उम्र वालों के लिए 18.6%, 18 साल की उम्र वालों के लिए 28.5% और 19 साल की उम्र वालों के लिए 31.3% है। सर्वे के मुताबिक, पहली बार मतदान करने वालों का लेबर फोर्स वर्क पार्टिसिपेशन (LFPR) 29.7% था। जिसका मतलब है कि पहली बार मतदान करने वाले वाले 70% मतदाता अभी कोई काम नहीं कर रहा है। कुल जनसंख्या के लिए यह प्रतिशत केवल 58% और 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लिए 42% है। शहरी क्षेत्रों में 78% की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में 67% आयु वर्ग वर्क फोर्स से बाहर है।
काम नहीं कर रहा हर मतदाता नहीं कर रहा पढ़ाई
पहली बार मतदान करने वाले अधिकांश मतदाता जो काम नहीं कर हैं, वे पढ़ाई कर रहे हैं। लेकिन यहां लिंग भेद बहुत बड़ा है. जहां 95% पुरुषों ने शिक्षा को वर्क फोर्स से बाहर रहने का कारण बताया, वहीं महिलाओं के लिए यह संख्या केवल 65% थी। हालांकि, जेंडर ही एकमात्र कारण नहीं है जो यहां मायने रखता है। वर्ग और जाति भी भारत में इसमें बड़ी भूमिका निभाते हैं। फर्स्ट टाइम वोटर्स में अनुसूचित जनजाति (एसटी) आयु वर्ग के 67% और सबसे गरीब 20% के रोजीरोटी नहीं कमाने का कारण शिक्षा थी। सबसे अमीर 20% के लिए यह संख्या 92% थी और 85% उन लोगों के लिए जो एसटी, अनुसूचित जाति (एससी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का हिस्सा नहीं हैं।
बेरोजगारी पहली बार के वोटर्स के लिए बड़ी समस्या
पहली बार वोट देने वाले जो युवा वर्क फोर्स का हिस्सा हैं, उनके लिए बेरोजगारी और बिना सैलरी का काम कहीं बड़ी समस्या है। पहली बार मतदाताओं के लिए बेरोजगारी दर 2022-23 में 11.1% थी, जबकि कुल बेरोजगारी दर 3.2% थी।
2019 के बाद से पहली बार के मतदाताओं के लिए मार्केट कंडीशन कैसे बदली?
यह एक महत्वपूर्ण सवाल है क्योंकि आज के युवा वर्कर्स अपनी कंडीशन की तुलना अपने उन साथियों से करते हैं जो पहले से नौकरी या रोजगार कर थे। 2022-23 पीएलएफएस परिणामों की 2018-19 संख्याओं के साथ तुलना से पता चलता है कि सभी श्रमिकों के लिए बेरोजगारी दर में गिरावट आई है और उस श्रेणी के लिए भी जिसे हमने पहली बार मतदाताओं के रूप में परिभाषित किया है। हालांकि, यह सुधार अवैतनिक कार्यों में बढ़ोतरी के कारण हुआ है। 2018-19 और 2022-23 के आंकड़ों की मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (MPCE) से तुलना से पता चलता है कि वर्क फोर्स में बेरोजगार और अवैतनिक श्रमिकों का संयुक्त अनुपात सबसे अमीर और सबसे गरीब 20% की तुलना में बढ़ गया है, लेकिन यह बीच वालों के लिए अपेक्षाकृत स्थिर रहा। सबसे अमीर 20% के लिए मुख्य बेरोजगारी दर में सबसे कम कमी आई है। 2018-19 में 18.6% की तुलना में 2022-23 में यह 15% थी।
क्या चाहते हैं पहली बार वोट डाल रहे मतदाता?
सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे के मुताबिक, में पहली बार मतदान करने वाले 1,290 मतदाताओं के अनुसार, धार्मिक समूहों के बीच बढ़ते तनाव, मुद्रास्फीति और नौकरियों की कमी पीएम मोदी के कार्यकाल के दौरान उभरने वाली प्रमुख चिंताएं थीं। सर्वे में शामिल लोगों में से लगभग दो-तिहाई ने कहा कि विशाल हिंदू राम मंदिर के निर्माण पर गर्व की भावना के बीच, सरकार के आर्थिक विकास के मजबूत रिकॉर्ड को देखते हुए वे पीएम मोदी और भाजपा को वोट देंगे।
पीएम मोदी के कार्यकाल के दौरान सबसे बड़े बदलावों में से एक टेक्नोलॉजी और इंटरनेट रीच में उछाल और इसका प्रभाव है। 2014 में, जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, भारत में एक्टिव इंटरनेट यूजर्स की संख्या लगभग 21.3 करोड़ थी। 2023 तक यह बढ़कर 82 करोड़ हो गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2013-14 में, 18-29 साल के लोगों के लिए बेरोजगारी दर 12.9% थी, जो स्नातक डिग्री वाले लोगों के लिए बढ़कर 28% हो गई। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में युवा बेरोजगारी 12.5% के समान स्तर पर थी लेकिन 25 साल से कम उम्र के स्नातकों के लिए यह बढ़कर 42% हो गई थी। इसी अवधि में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी हो गई है लेकिन स्नातकों के लिए बेरोजगारी दर एक चुनौती बनी हुई है।