नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट में एक बार फिर उप राज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच शक्तियों की खींचतान से संबंधित एक मामला उठा। दरअसल दिल्ली के एक स्कूल पर प्रशासनिक और आर्थिक गड़बड़ियां करने का आरोप लगा है और दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय ने इस स्कूल को नोटिस भेजा है। इस स्कूल का प्रबंधन अपने हाथ में लेने को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान अदालत ने उप राज्यपाल वी के सक्सेना से कहा है कि वो इस निजी गैर सहायता प्राप्त विद्यालय के मैनेजमेंट को टेक ओवर करने से पहले सुनवाई करें।
जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि किसी स्कूल को टेक ओवर करने की शक्ति सिर्फ उप राज्यपाल को दी गई है। यह शक्ति कानून के मुताबिक उन्हें एडमिनिस्ट्रेटर के तौर पर मिली है। वो इसकी सुनवाई करेंगे शिक्षा निदेशालय नहीं, जिसने स्कूल को नोटिस जारी कर दिया है। अदालत ने यह भी कहा कि निजी सुनवाई सिर्फ अथॉरिटी कर सकती है और फैसला वहीं लेगी। अदालत ने कहा, ‘इस देश का कानून पीटर द्वारा व्यक्तिगत सुनवाई की अनुमति की परिकल्पना नहीं करता है, जहां निर्णय पॉल द्वारा लिया जाना है।’
अदालत की बेंच ने कहा कि स्कूल के मैनेजमेंट को टेक ओवर करने की शक्ति एक एडमिनिस्ट्रेटर के तौर पर सिर्फ उप राज्यपाल के पास ही है शिक्षा निदेशालय को नहीं दी गई है। अदालत ने कहा कि उप राज्यपाल की सुविधा के अनुसार निजी तौर पर सुनवाई की अनुमति दी जाती है। यह याचिकाकर्ता पर है कि वो सुनवाई के लिए उपस्थित रहे और कोई स्थगन ना ले।
याचिका में क्या कहा गया…
अदालत में यह याचिका एक निजी गैर सहायता प्राप्त सेकेंड्री स्कूल ने लगाई थी। 13 सितंबर, 2021 को स्कूल को शिक्षा निदेशालय ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था। स्कूल में मैनेजमेंट स्तर, प्रशासनिक स्तर और आर्थिक स्तर पर गड़बड़ी होने की बात इस नोटिस में कही गई थी। इसमें कहा गया था क्यों नहीं दिल्ली स्कूल एजुकेशन ऐक्ट के तहत इस स्कूल के प्रबंधन को टेक ओवर कर लिया जाए।
याचिकाकर्ता के वकील कमल गुप्ता ने कहा कि हालांकि, DOE इस मामले में ऐक्शन लेने से पहले सुनवाई करने के लिए तैयार था। लेकिन उप राज्यपाल के अलावा अन्य किसी अथॉरिटी के द्वारा पर्सनल हियरिंग का सवाल ही नहीं उठता है। स्कूल को टेक ओवर करने के बारे में सिर्फ वो ही फैसला ले सकते हैं।
कोर्ट ने क्या कहा…
अदालत ने कहा कि किसी रनिंग स्कूल को टेक ओवर करने का फैसला काफी कड़ा कदम है, इसमें नागरिक परिणाम भी शामिल हैं। इसलिए ऐसे फैसले से पहले निजी तौर पर सुनवाई का मौका देना बनता है। अदालत ने कहा. ’13 सितंबर 2021 के कारण बताओ नोटिस में कड़े कदम उठाने की बात कही गई है। इसे देखते हुए इस तरह के फैसले से पहले याचिकाकर्ता को निजी तौर पर सुनवाई का मौका देना लाजिमी है। इसलिए उप राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना से आग्रह है कि वो 13 सितंबर, 2021 की नोटिस पर कोई फैसला लेने से पूर्व याचिकाकर्ता को निजी सुनवाई का एक मौका अवश्य दें।’