मुरार कण्डारी
नई दिल्ली : 30 अप्रेल को मुक्तधारा सभागार में मनीष जोशी “बिस्मिल” लिखित नाटक ” पतलून” का सफल मंचन,” फोर्थवाल परोडकशनस के बैनर तले “फेलीसीटी थियेटर ” के सहयोग के साथ निर्देशिका “रीतिका मलहोत्रा ” द्वारा प्रमोद कुमार के मार्ग दर्शन में किया गया।
नाटक “पतलून” श्री मनीष जोशी ‘बिस्मिल’ जी द्वारा लिखित एक हिंदी नाटक है। कहानी की शुरुआत कैनवास से होती है। कैनवास जो जिंदगी का है, जहां अलग- अलग लक्ष्य लिए, अपने सपनों के रंगों से कैनवास को रंगीन करने की बात शुरू होती है। नाटक का मुख्य किरदार “भगवान” भी औरों की तरह एक गांव से आया साधारण मनुष्य है। पचास साल शोषण झेल कर जब उसे ज़िंदगी में एक मक़सद मिलता है, एक सपना देखने का तो वो इस सपने के लिए उतने ही असाधारण तरीके से मेहनत करता है, दुर्गम परिस्थितियों का सामना करता है और साथ ही ये सीख देता है के चाहे जो हो अपने लक्ष्य से हर बार कहो “एक बार कहो तुम मेरे हो…” और एक दिन उस लक्ष्य को, हकीकत में अपना बना लो …उसके लिए जियो, और एक दिन उसे हमेशा के लिए कमा लो…
यूं तो भगवान के सामने एक पतलून खरीदने की चुनौती आती है, लेकिन उसका ये सपना, उसकी ये कल्पना आकार लेने लगती है, एक लड़की के रूप में। अपनें परिश्रम और आने वाली मुसीबतों के बीच उनसे लड़ता जूंझता भगवान एक दिन अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर लेता है, और ये साबित कर देता है की विषम से विषम परिस्थिति भी एक बुलन्द व्यक्तित्व को नहीं डिगा सकती…साथ ही एक और महत्वपूर्ण संदेश जो नाटक हमें देता है या यूं कहें कि हमसे पूछता है वो यह की क्या हमनें अपनी पतलून ढूंढनी शुरू कर दी..? क्या हमें वो मिल चुकी ..? या क्या अब भी ज़िंदगी का कैनवास कोरा है और शुरुआत करना बाकी है, और अगर है तो खुद को टटोलो और अपने सपने के लिए , अपनी पतलून के लिए पूरी हिम्मत के साथ, पूरे हौसले के साथ , गिरकर वापिस उठने की ताकत के साथ अपनी यात्रा शुरू करो…
अब से पहले इस नाटक का इतना अविस्मरणीय मंचन न देखा और न सुना।रीतिका जी ने इस नाटक की आत्मा को दर्शकों के दिलों में समाने का जो अद्भुत कार्य किया है, शुरू में नाटक के किरदार भगवान का संघर्ष और एक घटना से उसकी दिशा हीन जिंदगी को मायने मिलना दर्शकों को हंसाता भी है ओर नाटक के अंत तक आते-आते उन्हें रूलाता भी है । नाटक के मुखय अतिथि राहुल बूचर जी ने नाटक ओर उसके पात्रों की खूब सराहना की। सभागार दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था,जिसको जहां जगह मिली वहीं बैठ गया और नाटक के साथ ठहर सा गया।नाटक की कामयाबी दर्शकों के सिर चढकर यूं बोलने लगी कि सभी दर्शकगण अपनी-अपनी जगह खडे़ होकर नाटक के किरदारों का होंसला बढा रहे थे। सभागार तालियों की गडगडाहट से गूंजने लगा। इसके लिए उन्हें और उनकी टीम पतलून को दिल से बधाई एवं शुभकामनाऎं।