नई दिल्ली. अभी तक भारत के खिलाफ जहर उगल रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब पश्चाताप की आग में झुलसने लगे हैं. उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रुथ पर लिखा कि मुझे लगता है हमने भारत और रूस को खो दिया है. दोनों देश अब चीन की राह पर निकल पड़े हैं. ट्रंप का यह बयान काफी कुछ बयां करता है. उनकी बातों से साफ दिख रहा है कि भारत को खोने का डर उन्हें सताने लगा है. आखिर यह नौबत क्यों आई है और ट्रंप को ऐसा क्यों लग रहा है कि भारत उससे दूर जा रहा है.
ट्रंप की इस विडंबना से पहले यह बात करते हैं कि कैसे उन्होंने खुद भारत के रास्ते में कांटे बिछाए और उसे रास्ता बदलने पर मजबूर किया. जनवरी से पहले की बात करें तो भारत और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रंप का ही सपोर्ट किया था. चुनाव के दौरान भारत में कई जगहों पर लोगों ने हवन और यज्ञ भी किया था. उम्मीद थी कि ट्रंप की जीत के बाद भारत के लिए अमेरिका से रिश्ते और मजबूत होंगे. लेकिन, 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद संभालने के तत्काल बाद उन्होंने भारत के खिलाफ जहर उगलना शुरू कर दिया. नौबत यहां तक आ गई कि पूरी दुनिया को छोड़कर सिर्फ भारत पर ही 50 फीसदी का टैरिफ लगाया.
भारत ने क्यों बदला अपना रास्ता
अमेरिका ने पहले भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की बात कही और 7 अगस्त से इसे लागू भी कर दिया. इस दौरान दोनों देशों के बीच जारी ट्रेड डील को भी बेवजह की शर्तें लगाकर जानबूझकर अटकाया गया. अमेरिका को अच्छी तरह पता था कि भारत उसके डेयरी प्रोडक्ट को कभी स्वीकार नहीं करेगा, बावजूद इसके वह इसी बात पर अटका रहा कि जब तक भारत इसे स्वीकार नहीं करेगा, उससे ट्रेड डील नहीं की जाएगी. इस तरह, डील को बीच में ही अटकाकर 7 अगस्त से 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया. इतने के बाद भी ट्रंप का मन नहीं भरा तो रूस का साथ देने का आरोप लगाते हुए 27 अगस्त से 25 फीसदी टैरिफ और लगा दिया. यह किसी भी देश पर लगे टैरिफ से कहीं ज्यादा है.
ट्रंप को क्यों लगा कि जा रहा भारत
अब जबकि अमेरिका खासकर ट्रंप ने भारत के साथ कोई मुरौव्वत नहीं बरती और उस पर बेवजह टैरिफ लगा दिया तो भारत को अपने विकल्प तलाशने के अलावा कोई चारा नहीं था. भारत दो ऐसे बड़े संगठन का हिस्सा है, जिसमें अमेरिका नहीं शामिल है और इन दोनों ही संगठनों में रूस व चीन शामिल रहा. इससे पहले 2025 की शुरुआत से ही चीन ने भारत को कई जरूरी केमिकल और कच्चे माल की आपूर्ति रोक दी थी, तब उसे अमेरिका से उम्मीद थी. अमेरिका से भी परेशानी आने पर भारत को मजबूरन वापस चीन की तरफ जाना पड़ा.
ट्रंप को चुभ गया पीएम मोदी का चीन दौरा
डोनाल्ड ट्रंप को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब चीन ने भारत को वापस रेयर अर्थ और अन्य जरूरी उपकरणों व केमिकल की सप्लाई शुरू कर दी. भारत ने भी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ तालमेल बिठाना ही मुनासिब समझा. यही वजह है कि पीएम मोदी ने 5 साल बाद चीन का दौरा किया और हाल में संपन्न एससीओ सम्मेलन में मोदी ने हिस्सा लिया. इस सम्मेलन में रूस भी शामिल था. समिट के बाद एक साझा पत्र भी जारी किया गया, जिसमें सदस्य देशों के बीच स्थानीय मुद्रा में कारोबार करने और डॉलर से दूरी बनाने पर भी सहमति बनी.
ब्रिक्स सम्मेलन से ही लग गया था झटका
चीन में हुई एससीओ समिट से पहले ब्राजील में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान भी जब जिनपिंग, मोदी और पुतिन एक मंच पर आए थे, तब भी ट्रंप को मिर्ची लगी थी. उन्होंने खुले मंच से कहा था अगर इन देशों ने डॉलर को कमजोर करने की कोशिश की तो 100 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा. अब जबकि भारत ने बिना कोई प्रतिक्रिया दिए ही रूस और चीन के साथ अपने संबंधों को संतुलित मात्रा में मजबूत करना शुरू कर दिया तो ट्रंप को लग गया कि शायद भारत उससे दूर जा रहा है.
ऐपल ने भी दिया दो टूक जवाब
ट्रंप ने गुरुवार को व्हाइट हाउस में तमाम टेक दिग्गजों के साथ रात्रिभोज का आयोजन किया. इसमें सुंदर पिचाई और सत्या नडेला के साथ ऐपल के सीईओ टिम कुक भी शामिल थे. इस दौरान ट्रंप ने कुक से पूछा कि आप अमेरिका में कितना निवेश करेंगे तो उन्होंने कहा कि 600 अरब डॉलर. फिर पूछा कि भारत को लेकर क्या प्लान है. यहां ट्रंप यह सुनना चाहते थे कि ऐपल अपना कारोबार भारत में समेटेगा, लेकिन कुक ने जवाब दिया कि वह अपने कुल उत्पादन का 25 फीसदी भारत में ही करना चाहता है. यह एक तरह से ट्रंप के लिए झटका था और भारत के साथ अमेरिकी कंपनियों के जुड़ने की मजबूरी भी.