डॉ. ब्रह्मदीप अलूने
तकरीबन आठ लाख की आबादी वाले भूटान से चीन का सीमा विवाद मध्य और पश्चिमी क्षेत्रों पर तो रहा है लेकिन पूर्वी क्षेत्र पर कभी कोई बात ही नहीं हुई।
यहां तक कि चीन और भूटान की उच्च स्तर की 24 वार्ताओं में भी कभी इसका जिक्र नहीं किया गया। 2020 में यह स्थिति अचानक बदल गई जब वैश्विक पर्यावरण सुविधाओं पर आधारित एक बैठक में चीन ने यह दावा कर सबको अचरज में डाल दिया कि पूर्वी भूटान में स्थित सकतेंग वन्य जीव अभयारण्य को किसी अंतरराष्ट्रीय परियोजना में इसलिए शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि यह चीन और भूटान के बीच विवादित क्षेत्र है। दरअसल चीन ने भूटान के जिस क्षेत्र पर दावा किया, भूटान की पूर्वी सीमा अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के छूती है और अरुणाचल प्रदेश को चीन दक्षिणी तिब्बत बताता है।
हाल में तवांग पर चीन ने जो विवाद खड़ा करने की कोशिश की है, वह उसकी पारंपरिक सीमाओं के विस्तार की रणनीति पर आधारित है। गौरतलब है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने तीसरे कार्यकाल की शुरु आत के ठीक पहले कांग्रेस के अधिवेशन में अपनी भावी रणनीति को साफ करते हुए कहा था कि अब आर्थिक क्षेत्र से ज्यादा उनका ध्यान पार्टी हित और राजनीतिक प्रतिबद्धताएं पूरी करने पर होगा। चीन की राजनीतिक प्रतिबद्धताएं माओ के सिद्दातों के अनुरूप रही हैं। जिनपिंग माओ के बाद देश के शक्तिशाली नेता के तौर पर उभरे हैं। माओ की विचारधारा अधिनायकवाद, साम्राज्यवादी और सीमाओं के विस्तार के लिए आक्रामक नीतियों पर आधारित है।
माओ ने पड़ोसी देशों के अस्तित्व को ही चुनौती देते हुए तिब्बत को चीन के दाहिने हाथ की हथेली माना और उसकी पांच अंगुलियां लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश को बताया था। भारत और चीन के बीच सीमा विवाद में संघर्ष की स्थिति निर्मिंत होने के बाद भी चीन लद्दाख, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत पर सैन्य या कूटनीतिक दबाव बनाने में असफल रहा है। नेपाल को लेकर चीन बहुत आगे बढ़ गया है, और वहां साम्यवादी शक्तियां सत्ता में प्रभावशील हैं, अत: चीन नेपाल को आर्थिक सहायता के जाल में बुरी तरह उलझा चुका है। इन सबके बीच चीन की नजर भूटान पर है जो भारत के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है।
भारत के उत्तर पूर्व के प्रमुख सहयोगी राष्ट्र भूटान से मजबूत संबंध रहे हैं। भूटान भारत के सहयोग और निवेश से बिजली पैदा करता है और उसे भारत को बेचता है, जो उसके सकल घरेलू उत्पाद का 14 फीसदी है। भूटान और भारत के बीच 1949 से मैत्री संधि है और 2007 में यह नवीनता के साथ मजबूत ही हुई। भूटान भारत और चीन के बीच रणनीतिक रूप से एक बफर देश है, सुरक्षा के दृष्टिकोण से अपने भू रणनीतिक स्थान के कारण भूटान भारत के लिए बेहद अहम है। भारत और भूटान के बीच 605 किमी. लंबी सीमा है तथा 1949 में हुई संधि की वजह से भूटान की अंतरराष्ट्रीय, वित्तीय और रक्षा नीति पर भारत का प्रभाव रहा है। वहीं चीन और भूटान के बीच भौगोलिक और रणनीतिक विरोधाभास रहे हैं तथा इन दोनों के बीच लगभग पांच सौ किमी. लंबी सीमा रेखा है जिस पर विवाद होता रहा है।
भूटान चीन से आशंकित रहता है कि कहीं वह तिब्बत की तरह ही उस पर कब्जा न जमा ले। 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर सैन्य तनातनी हुई थी। यह क्षेत्र भारत,चीन और भूटान के त्रिकोण पर स्थित है। खंजर के आकार की चुंबी घाटी का डोकलाम पठार रणनीतिक रूप से भारत के लिए बेहद अहम है। चीन पिछले कुछ वर्षो में भूटान से सीमा विवाद हल करने की कोशिशों में जुटा है और उसकी यह कोशिश भारत की सामरिक समस्याओं को बढ़ा सकती है। पिछले वर्ष अक्टूबर में भूटान और चीन ने एक एमओयु पर हस्ताक्षर किए थे जिस पर चीन ने दावा किया दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित करके अर्थपूर्ण भागीदारी आगे बढ़ेगी। भूटान ने भी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की और प्रतिबद्धता जताई। चीन की भूटान से विवाद समाप्त करने की कोशिशें भारत के लिए नई सुरक्षा चुनौती के रूप में सामने आ सकती है।
चीन और भूटान के बीच जिन दो इलाकों को लेकर ज्यादा विवाद है, उनमें से एक भारत-चीन-भूटान ट्राइजंक्शन के पास 269 वर्ग किमी. का इलाका और दूसरा भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किमी. का जकारलुंग और पासमलुंग घाटियों का इलाका है। चीन भूटान को 495 वर्ग किमी. वाला इलाका देकर उसके बदले में 269 वर्ग किमी. का इलाका लेना चाहता है। चीन जो इलाका मांग रहा है, वो भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर, जिसे चिकन्स नैक भी कहा जाता है, भारत को अपने पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए सुरक्षित रास्ता देता है। चिकन्स नैक का यह इलाका भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है।
इस इलाके में अगर चीन को थोड़ा सा भी लाभ होता है तो वो भारत के लिए बड़ा नुकसान होगा। चीन,भूटान के साथ सौदा करने की कोशिश कर रहा है और यह सौदा भारत के हित में नहीं होगा। चीन चुंबी घाटी तक रेल लाइन बिछा सकता है, चीन के पास पहले से ही यातुंग तक रेल लाइन की योजना है और यातुंग चुंबी घाटी के मुहाने पर है। भारत भूटान को आर्थिक,सैनिक और तकनीकी मदद मुहैया कराता है। भारत की तरफ से दूसरे देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का सबसे बड़ा लाभ भूटान को ही मिलता है।
भूटान में सैकड़ों भारतीय सैनिक तैनात हैं, जो भूटानी सैनिकों को प्रशिक्षण भी देते हैं। लेकिन चीनी प्रभाव से स्थितियां बदल रही हैं। भूटान की युवा पीढ़ी भारत और चीन से समान संबंध रखना चाहती है और दोनों के विवादों से दूरी बनाए रखने की पक्षधर है। जाहिर है भारत के पड़ोसी निरंतर भारत की सामरिक चुनौतियों को बढ़ा रहे हैं। नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव में चीन की व्यापक आर्थिक हिस्सेदारी ने भारत के लिए सामरिक संकट बढ़ाया है, इन देशों के बंदरगाहों पर चीनी जासूसी जहाजों की आवाजाही बढ़ी है। चीन की नजर अब भूटान पर भी है, और भारत के लिए भूटान को नियंत्रित रखना बहुत जरूरी है।