प्रकाश मेहरा
उत्तराखंड डेस्क
हरिद्वार: देवी मनसा जिन्हें हिंदू धर्म में सर्पों की देवी और विषहरी माता के रूप में पूजा जाता है, भारतीय पौराणिक कथाओं और लोक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनकी उपस्थिति महाभारत के ग्रंथों से लेकर हरिद्वार, बिहार, झारखंड, बंगाल और पूर्वोत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों तक फैली हुई है। यह लेख उनकी उत्पत्ति, पौराणिक कथाओं, क्षेत्रीय महत्व और सांस्कृतिक प्रभाव की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
देवी मनसा की पौराणिक उत्पत्ति
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवी मनसा भगवान शिव की मानस पुत्री हैं, जिनका प्रादुर्भाव उनके मस्तक से हुआ था, जिसके कारण उनका नाम “मनसा” पड़ा, जिसका अर्थ है “मन की इच्छा”। कुछ कथाओं में उन्हें संत कश्यप के मस्तिष्क से उत्पन्न माना जाता है और नागराज वासुकी की पत्नी या बहन के रूप में भी चित्रित किया जाता है। महाभारत में उनका वास्तविक नाम जरत्कारु बताया गया है, और उनके पति महर्षि जरत्कारु और पुत्र आस्तिक हैं।
मनसा को सर्पों की रक्षिका और विष को हरने वाली देवी माना जाता है। एक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान हलाहल विष पिया था, तब मनसा ने उनकी रक्षा की थी, जिसके कारण उन्हें “विषकन्या” या “विषहरी” कहा जाता है। शिव ने उन्हें देवतुल्य होने का वरदान दिया और जनकल्याण के लिए प्रेरित किया। इसके परिणामस्वरूप, मनसा औषधियों और जड़ी-बूटियों की देवी बन गईं, जिन्हें वनदेवी भी कहा जाता है।
महाभारत में देवी मनसा
महाभारत में मनसा का उल्लेख नागवंश की रक्षा से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कथा में मिलता है। कथा के अनुसार, पांडवों के वंशज राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के काटने से हुई थी। उनके पुत्र जन्मेजय ने नागों के विनाश के लिए “नागेष्ठी यज्ञ” शुरू किया। इस यज्ञ से नागों को बचाने के लिए मनसा के पुत्र आस्तिक ने हस्तक्षेप किया और यज्ञ को रोककर नागवंश की रक्षा की। इस कथा ने मनसा को नागों की संरक्षिका के रूप में स्थापित किया।
हरिद्वार में मनसा देवी
हरिद्वार में मनसा देवी मंदिर एक प्रमुख शक्तिपीठ है, जो शिवालिक पहाड़ियों के बिल्वा पर्वत पर स्थित है। यह मंदिर हर की पौड़ी से लगभग 3 किमी दूर है और भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। मंदिर में दो मूर्तियाँ स्थापित हैं: एक पंचभुजा और एकमुखी, और दूसरी अष्टभुजा। यहाँ भक्त अपनी मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए एक पवित्र वृक्ष पर धागा बाँधते हैं और इच्छा पूर्ति के बाद उसे खोलने वापस आते हैं।
हरिद्वार का यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, और यहाँ नवरात्रि और कुंभ मेले के दौरान भारी भीड़ होती है। मंदिर तक पहुँचने के लिए पैदल मार्ग, मोटर मार्ग या केबल कार (उड़नखटोला) का उपयोग किया जा सकता है। हालाँकि, हाल ही में 27 जुलाई 2025 को मंदिर में भारी भीड़ के कारण भगदड़ मचने की दुखद घटना सामने आई, जिसमें 6 लोगों की मृत्यु हो गई और कई घायल हुए।
बिहार और बंगाल में मनसा की पूजा
बिहार, झारखंड, बंगाल, ओडिशा और असम में मनसा देवी की पूजा विशेष रूप से सर्पदंश से बचाव, प्रजनन क्षमता और समृद्धि के लिए की जाती है। बिहार के मैथिल क्षेत्र, भागलपुर और मधुबनी में सावन और भाद्रपद के महीने में उनकी पूजा बड़े उत्साह से होती है। बंगाल में उन्हें “बिषोहोरि” और असम में “बिषैरी” के नाम से जाना जाता है।
नागपंचमी के अवसर पर इन क्षेत्रों में मनसा माता की विशेष पूजा होती है। बंगाल में गंगा दशहरा और कृष्णपक्ष पंचमी को भी उनकी पूजा की जाती है, जहाँ नागफनी की शाखा पर उनकी पूजा करने की परंपरा है। बंगाल की लोक परंपराओं में मनसा मंगल काव्य, जैसे विजयगुप्त का “मनसा मंगल” और विप्रदास पिल्ले का “मनसाविजय” (1495) उनके जन्म और महत्व को विस्तार से वर्णन करते हैं।
क्षेत्रीय और सांस्कृतिक महत्व हरिद्वार
मनसा देवी मंदिर हरिद्वार के पंच तीर्थों में से एक है। यहाँ की मान्यता है कि माता सभी मनोकामनाएँ पूरी करती हैं। मंदिर का प्राकृतिक और आध्यात्मिक वातावरण भक्तों को आकर्षित करता है।
बिहार और झारखंड में यहाँ मनसा को विष की देवी और सर्पदंश से रक्षा करने वाली माता के रूप में पूजा जाता है। भाद्रपद में पूरे महीने उनकी स्तुति होती है। बंगाल में मनसा की पूजा लोक कथाओं और मंगलकाव्य के माध्यम से प्रचलित है। उन्हें बारी माता और विषहरी देवी के रूप में भी जाना जाता है। पंचकूला, राजस्थान के अलवर, सीकर, और कोलकाता में भी मनसा देवी के मंदिर हैं। पंचकूला का मंदिर भी 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
क्या हैं लोक कथाएँ और मान्यताएँ ?
मनसा को सात नागों द्वारा संरक्षित माना जाता है, और उनकी मूर्ति को सर्प और कमल पर विराजमान दिखाया जाता है। कुछ कथाओं में उनकी सौतेली माँ चंडी (पार्वती) और पति जरत्कारु द्वारा अस्वीकृति की कहानियाँ हैं, जिसके कारण उनकी पूजा में भक्तों के प्रति दयालुता और अस्वीकार करने वालों के प्रति कठोरता का चित्रण मिलता है। हरिद्वार के मंदिर में यह मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान अमृत की कुछ बूँदें यहाँ गिरी थीं, जिससे मंदिर की पवित्रता और बढ़ गई।
देवी मनसा की उपस्थिति भारतीय संस्कृति में गहरी और विविध है। महाभारत में उनकी कथा नागवंश की रक्षा से जुड़ी है, तो हरिद्वार में उनका मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है। बिहार और बंगाल में उनकी पूजा विषहरी और वनदेवी के रूप में प्रचलित है। उनकी कहानियाँ और पूजा की परंपराएँ न केवल धार्मिक विश्वासों को दर्शाती हैं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता को भी उजागर करती हैं। हालाँकि, हाल की भगदड़ जैसी घटनाएँ मंदिर प्रबंधन और भीड़ नियंत्रण की चुनौतियों को भी सामने लाती हैं।