कौशल किशोर
झांसी में पेय जल की समस्या का सामना कर रहे लोग जिला मुख्यालय पर हाल ही में धरना प्रदर्शन कर रहे थे। पिछले तीन महीने से बेंगलुरु में पानी की किल्लत हो रही है। सूबे के मुख्य मंत्री सिद्धारमैया के सरकारी आवास में टैंकर से पानी पहुंचाने की नौबत आ गई। सिलीकॉन वैली की तुलना केप टाउन से होने लगी। हैदराबाद की स्थिति भी बढ़िया नहीं है। आसन्न संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इसी बीच दिल्ली जल बोर्ड को धन आवंटित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के प्रमुख सचिव वित्त से कहा था। इस मामले में वित्त विभाग के जवाब से दिल्ली में जल आपूर्ति का संकट के साथ भ्रष्टाचार की फाइलें खुलने की संभावना बन गई है।
बेंगलुरु की कुल आबादी एक करोड़ चालीस लाख के करीब है। इनके लिए 260 से 280 करोड़ लीटर पानी प्रति दिन चाहिए। लगभग 170 करोड़ लीटर पानी कावेरी नदी से आता है। शेष भूगर्भ जल से पूरा होता है। महानगर के सात हजार से ज्यादा बोरवेल भी सूख चुके हैं। बहरहाल 100 से 120 करोड़ लीटर जल की आपूर्ति के बाद भी 150 करोड़ लीटर की कमी है। इसकी वजह से उपयोग में कटौती के लिए बेंगलुरु जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड नियंत्रित वितरण का कठोर निर्णय लेती है। वाहन धोने, निर्माण कार्य, मनोरंजन, आदि के लिए पीने के पानी का उपयोग रोक दिया है। उल्लंघन करने पर 5,000 रुपये जुर्माना का प्रावधान किया गया है। गलती दोहराने पर हर बार 500 रुपये अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाता है।
बीते साल बारिश की कमी के कारण कर्नाटक के 236 तालुकों को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है। इनमें 219 गम्भीर संकट का सामना कर रहे हैं। बेंगलुरु के सिलिकॉन वैली से केप टाउन बनने तक की यात्रा पर भी गौर करना चाहिए।
पहले पिछले साल की स्थिति पर नजर डालते हैं। पिछले वर्ष औसत से कम बारिश हुई। लेकिन मई से लेकर नवंबर तक बराबर शहर झील में तब्दील होता रहा। जनगणना के आंकड़ों से ज्ञात होता कि कर्नाटक में 26,994 झील और अन्य जल स्रोत उन्नीसवीं सदी में थे। इनमें से 21,120 गायब हो गए हैं। केवल बेंगलुरु में 1,452 जल स्रोत थे। इनमें से 193 ही शेष बच गए। इनकी जगह ऊंची इमारतें खड़ी की गई है। टेक पार्क और रिहायशी अपार्टमेंट ने हरे-भरे हिस्से की जगह अब ले लिया है। बाढ़ और सूखे की विकराल स्थिति समझने के लिए इन तथ्यों को भी ध्यान में रखना चाहिए।
सरकार जल संरक्षण के लिए प्रयास कर रही है। जल जीवन मिशन, अमृत सरोवर योजना और अटल भू-जल केन्द्र सरकार की योजनाएं हैं। पांच वर्ष पूर्व प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जल जीवन मिशन शुरु कर 2024 तक हर घर को नल से जल देने की घोषणा किया। जल संचय के लिए अमृत सरोवर योजना में तालाब खोदने की कवायद हुई। इसी उद्देश्य से अटल भू-जल योजना भी शुरु किया गया। राज्यों ने केंद्र की मदद से चलने वाली योजनाओं के साथ अपने ओर से भी कोई कमी नहीं छोड़ी है। इनके बावजूद अठारहवीं लोक सभा चुनाव के इस मौसम में लोग जल संकट से जूझ रहे हैं। क्या ऐसा भी संभव होता, यदि राजनीतिक जमात इस जल संकट का समाधान करने हेतु प्रतिबद्ध होती? नौकरशाही पर कोई जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन सारी शक्तियां बाबुओं के हाथों में है।
चुनाव के इस मौसम में राजनीतिक दलों में सत्यवादी हरिश्चंद्र बनने की होड़ लगी है। ऐसा एक भी लोक सभा सीट खोजना मुमकिन नहीं है, जहां पर नेतागण आरोप प्रत्यारोप में नहीं लगे हों। महानगरों की गलियों में राजनीतिक दलों के इश्तेहार हैं, जिसमें विरोधी एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में तीन साल पहले दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पल्ली की पीठ ने सचेत किया था कि जनता उनकी भी मॉब लिंचिंग सकती है। चुनावी बांड के मामले में सुप्रीम कोर्ट की वजह से राजनीतिक दलों को मिले चंदे की सच्चाई सामने आती है। साथ ही दिल्ली हाई कोर्ट लिकरगेट में दिल्ली के मुख्य मंत्री को भी जेल भेजने का रास्ता खोलती है। चुनाव के इस मौसम की गतिविधियां देख कर ऐसा लगता है कि राजनीतिक जमात ने मंदबुद्धि के सामने फ्रेंडली मैच खेलने का तय किया है।
दिल्ली में शराब की बोतल खरीदने पर दूसरी बोतल मुफ्त में देने वाली सरकार ने पानी की आपूर्ति भी मुफ्त में किया है। दिल्ली जल बोर्ड से जुड़े मामले में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, बल्कि पीएमएलए कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है। अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी से ठीक पहले प्रवर्तन निदेशालय ने दसवां समन भेजा था। यह दिल्ली जल बोर्ड में भ्रष्टाचार के मामले से जुड़ा रहा। विजय नायर और मनीष सिसोदिया की तरह बोर्ड के मुख्य अभियंता रहे जगदीश कुमार अरोड़ा और ठेकेदार अनिल अग्रवाल इसी मामले में जेल में हैं। सुप्रीम कोर्ट में राज्य के प्रमुख सचिव वित्त ने हलफनामा दायर कर कहा है कि बोर्ड को पिछले नौ सालों में 28,400 करोड़ रुपए दिए गए हैं। सीएजी की रिपोर्ट में भी अनियमितताएं पाई गई है। दिल्ली जल बोर्ड पिछले दो सालों से बैलेंस शीट तैयार नहीं कर रही है। महालेखाकार ने ऑडिट रिपोर्ट इसी एक वजह से पेश नहीं किया। बोर्ड पर 73,000 करोड़ रुपए का कर्ज भी है। निश्चय ही लिकरगेट की तरह यह वाटरगेट भी एक दिन खुल कर ही रहेगा।
जनगणना का आंकड़ा कर्नाटक तक सीमित नहीं है। पैंनी नजर से देखने पर पिछली सदी में दिल्ली के जल स्रोतों की संख्या भी सैकड़ों में दिखती है। बेंगलुरू की तरह दिल्ली के जल स्रोतों को भी उन्हीं शक्तियों ने खत्म किया है। यह सब विरोध प्रदर्शन में लगी जमात ने यदि नहीं देखा है तो उनके पूर्वजों ने अवश्य देखा होगा। जल के स्रोतों का संरक्षण तभी तक हो सका जब तक समाज ने यह जिम्मेदारी अपने जिम्मे रखी। राजनीतिक वर्ग यह काम बाबुओं और कंपनियों के हवाले कर मुक्त हो जाती है। इसका नतीजा सामने है। हर घर तक नल से जल पहुंचाने की योजना के इस दौर में कुएं, बावड़ी और तालाब ही नहीं, भूगर्भ में संचित जल भी तेजी से सूखते जा रहे। नागरिकों को सर्वोच्च मानने वाले इस लोकतंत्र में जनता सर्वाधिक जिम्मेदार है। इसलिए पानी की इस किल्लत के विरोध में प्रदर्शन करने वाले लोगों को इस बात की समझ होनी चाहिए। पांच साल बाद उपस्थित होने वाला मताधिकार ही इन समस्याओं को दूर करने का अवसर है।