देहरादून। उत्तराखंड लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पुरुष वोटरों को मतदान के लिए जागरूक करना, चुनाव आयोग के लिए चुनौती होने जा रहा है। लोकसभा चुनाव में वर्ष 2014 और विधानसभा चुनावों में वर्ष 2007 से पुरुष वोटरों की मतदान में भागीदारी लगातार घट रही है।
पापा, भइया वोट डालने कम जा रहे हैं जबकि मम्मी, दीदी का मतदान के प्रति उत्साह चुनाव दर चुनाव बढ़ रहा है। निर्वाचन विभाग के आंकड़े इसके गवाह हैं। निर्वाचन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, उत्तराखंड में महिलाओं में जहां अपने मताधिकार के इस्तेमाल के प्रति जागरूकता तेजी बढ़ रही है, वहीं पुरुष वोटरों की उदासीनता धीरे-धीरे बढ़ रही है।
राज्य में वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में ही पुरुष मतदाताओं का प्रतिशत सर्वाधिक था। कुल वोटिंग में 55.94 प्रतिशत पुरुष थे जबकि महिलाओं का अनुपात करीब तीन प्रतिशत कम यानि 52.64 प्रतिशत रहा था। निर्वाचन विभाग के अनुसार, इसके बाद प्रदेश में हुए चारों विधानसभा चुनावों के मतदान में पुरुष मतदाता,महिला वोटरों के आगे पिछड़ते चले गए।
विधानसभा चुनाव में यह अंतर अब पांच प्रतिशत तक हो गया है। लोकसभा चुनावों में वर्ष 2004 व 2009 में ही पुरुष मतदाताओं ने बढ़त रखी। वर्ष 2014 से पुरुष वोटरों की भागीदारी लगातार घटती जा रही है।
ये माने जा रहे कारण
उत्तराखंड कर्मचारी प्रधान प्रदेश हैं। र परिवार से एक या अधिक सदस्य फौज, सरकारी नौकरी अथवा दूसरे प्रदेशों में सेवा के लिए जाते हैं। मतदान के वक्त उनके राज्य में नहीं आ पाना भी पुरुष मतदान में कमी की वजह मानी जाती है। इसके साथ ही बड़ी संख्या में पुरुषों की चुनाव ड्यूटी में तैनाती भी एक वजह रहती है।