स्पेशल डेस्क
नई दिल्ली: मॉक ड्रिल एक पूर्व नियोजित अभ्यास है, जिसका उद्देश्य आपदा, युद्ध, आतंकी हमले या किसी अन्य आपातकालीन स्थिति में प्रतिक्रिया की तैयारी और समन्वय को परखना होता है। भारत में 7 मई को 244 जिलों में होने वाली मॉक ड्रिल, खासकर भारत-पाकिस्तान तनाव और पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल) के बाद नागरिक सुरक्षा और आपातकालीन तैयारियों को मजबूत करने का हिस्सा है। आइए, इसके पर्दे के पीछे की कहानी और स्क्रिप्ट तैयार करने की प्रक्रिया को विस्तार से एग्जीक्यूटिव एडिटर प्रकाश मेहरा के साथ समझते हैं।
मॉक ड्रिल क्या है ?
मॉक ड्रिल एक नकली आपात स्थिति होती है, जिसमें वास्तविक परिदृश्य की तरह अभ्यास किया जाता है। इसका लक्ष्य है प्रशासन, सुरक्षा बल और नागरिक कितनी जल्दी और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देते हैं।कमियों की पहचान प्रणाली में खामियों को ढूंढकर सुधार करना। आम लोगों, छात्रों और स्वयंसेवकों को आपात स्थिति में व्यवहार और सुरक्षा उपाय सिखाना। विभिन्न एजेंसियों (पुलिस, सेना, NDRF, SDRF, सिविल डिफेंस) के बीच तालमेल सुनिश्चित करना।
पर्दे के पीछे की तैयारी !
मॉक ड्रिल की स्क्रिप्ट तैयार करना एक जटिल और गोपनीय प्रक्रिया है, जिसमें कई स्तरों पर समन्वय और योजना शामिल होती है। उच्च स्तरीय बैठकें और योजना भारत में 7 मई की मॉक ड्रिल के लिए गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश जारी किए। दिल्ली में गृह सचिव गोविंद मोहन की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई, जिसमें राज्यों के मुख्य सचिव और वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे। 2010 की अधिसूचना के आधार पर 244 सिविल डिफेंस जिलों को चुना गया, जिनमें सीमावर्ती और संवेदनशील क्षेत्र जैसे पंजाब, राजस्थान, गुजरात, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली कैंट शामिल हैं।
मॉक ड्रिल के लिए एक विशिष्ट परिदृश्य तैयार किया जाता है, जैसे हवाई हमला, आतंकी हमला, या प्राकृतिक आपदा। उदाहरण के लिए, इस बार युद्ध जैसी स्थिति में हवाई हमले और ब्लैकआउट का अभ्यास किया जाएगा।
मॉक ड्रिल की स्क्रिप्ट में तय ?
मॉक ड्रिल की स्क्रिप्ट में यह तय किया जाता है कि कौन सी जानकारी कब और किन लोगों को दी जाएगी। यह स्क्रिप्ट केवल चुनिंदा अधिकारियों और स्वयंसेवकों के साथ साझा की जाती है ताकि अभ्यास यथासंभव वास्तविक लगे।
हवाई हमले के सायरन बजाने का समय और स्थान। ब्लैकआउट (बिजली बंद करना) का समय और अवधि। निकासी (evacuation) योजनाएं, जैसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना। महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों (जैसे सैन्य ठिकाने, बिजली संयंत्र) को छिपाने (camouflaging) का अभ्यास। आपात सेवाओं (फायरफाइटिंग, रेस्क्यू, मेडिकल) की प्रतिक्रिया की जांच। कंट्रोल रूम के संचार उपकरणों (रेडियो, टेलीफोन) की जांच की जाती है ताकि आपातकाल में संपर्क बाधित न हो।
प्रशिक्षण और जागरूकता !
स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थानों पर लोगों को सिखाया जाता है कि सायरन सुनने पर क्या करना है, कहां छिपना है और कैसे सुरक्षित रहना है। NCC, NSS और होम गार्ड के स्वयंसेवक इसमें मदद करते हैं। 1968 के सिविल डिफेंस एक्ट के तहत, संवेदनशील क्षेत्रों में सिविल डिफेंस टीमें प्रशिक्षित की जाती हैं। इनका फोकस नागरिकों की सुरक्षा और महत्वपूर्ण ढांचों की रक्षा है। लोगों को पानी, दवाई, टॉर्च, मोमबत्तियां, और नकदी तैयार रखने की सलाह दी जाती है, क्योंकि बिजली या डिजिटल भुगतान विफल हो सकते हैं।
जमीनी स्तर पर समन्वय !
जिला प्रशासन, पुलिस, NDRF, SDRF, और सिविल डिफेंस टीमें मिलकर अभ्यास को लाग- स्थानीय स्तर पर समन्वय करती हैं। उदाहरण के लिए, फिरोजपुर कैंट में हाल ही में ब्लैकआउट के साथ मॉक ड्रिल की गई थी। मॉल, रेलवे स्टेशन, स्कूल और भीड़भाड़ वाले इलाकों में आतंकी हमले या आगजनी जैसे परिदृश्यों का अभ्यास किया जाता है। ड्रिल के बाद सभी राज्यों को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपनी होती है, जिसमें प्रतिक्रिया समय, कमियां, और सुधार के सुझाव शामिल होते हैं।
मॉक ड्रिल का पूरा मामला ?
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। पाकिस्तान की ओर से लगातार 11 रातों तक सीमा पर गोलीबारी और युद्ध की धमकियां दी जा रही हैं। गृह मंत्रालय का कहना है कि “यह ड्रिल युद्ध की आशंका का संकेत नहीं है, बल्कि नागरिक सुरक्षा को मजबूत करने का प्रयास है। 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद यह पहली ऐसी व्यापक मॉक ड्रिल है।”
सरकारी भवनों, पुलिस स्टेशनों और भीड़भाड़ वाली जगहों पर 2-5 किमी तक सुनाई देने वाले सायरन बजाए जाएंगे। रात 9:00 से 9:30 बजे तक कुछ क्षेत्रों में बिजली बंद की जाएगी ताकि दुश्मन के लिए निशाना लगाना मुश्किल हो। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने और महत्वपूर्ण ढांचों को छिपाने का अभ्यास होगा। आपातकालीन संचार उपकरणों और कंट्रोल रूम की कार्यक्षमता की जांच की जाएगी। जिला प्रशासन, NDRF, SDRF, सिविल डिफेंस, पुलिस, सेना और स्वयंसेवक (NCC, NSS, होम गार्ड) शामिल होंगे।
मॉक ड्रिल को गंभीरता से लें !
1971 की मॉक ड्रिल: भारत-पाक युद्ध के दौरान मुंबई में 13 रातों तक ब्लैकआउट किया गया। स्कूलों में बच्चों को सायरन सुनकर चर्च या बंकरों में छिपने की ट्रेनिंग दी गई। अमेरिका (1952, डक एंड कवर) ब्रिटेन (1980, स्क्वायर लेग) और स्वीडन-फिनलैंड जैसे देश भी नियमित रूप से न्यूक्लियर या युद्ध ड्रिल करते हैं। जनता के लिए गृह मंत्रालय ने नागरिकों से अपील की है कि वे मॉक ड्रिल को गंभीरता से लें, लेकिन घबराएं नहीं। सायरन सुनकर स्थानीय निर्देशों का पालन करें। पानी, दवाई, टॉर्च और नकदी तैयार रखें। सोशल मीडिया पर अफवाहें न फैलाएं। ब्लैकआउट के दौरान शांत रहें।
आपात तैयारियों को परखने का महत्वपूर्ण कदम !
7 मई को मॉक ड्रिल भारत की नागरिक सुरक्षा और आपातकालीन तैयारियों को परखने का एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके पीछे महीनों की योजना, गोपनीय स्क्रिप्टिंग, और कई एजेंसियों का समन्वय होता है। यह न केवल प्रशासन की तैयारियों को मजबूत करता है, बल्कि नागरिकों को भी आपात स्थिति में सही कदम उठाने के लिए जागरूक करता है। हालांकि यह युद्ध की तैयारी का संकेत नहीं है, लेकिन यह सुनिश्चित करता है कि देश किसी भी चुनौती के लिए तैयार रहे।