पाकिस्तान में इमरान खान और सेना-सरकार के बीच सियासी मैच चल रहा है. ‘बाउंसर’…’यॉर्कर’…’गुगली’, सब फेंकी जा रही हैं. यहां तक कि पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) टीम से खिलाड़ियों का ‘वॉकआउट’ भी हो रहा है. बावजूद इसके कप्तान इमरान खान क्लीन बोल्ड क्यों नहीं हो रहे हैं? हम बताते हैं…दरअसल इमरान के सिर पर ‘ऊपरवाले’ का हाथ है.
यह ‘थर्ड अंपायर’ मुकाबले के पूरे रुख को ही मोड़ कर रख दे रहा है. इमरान के खिलाफ विपक्षी टीम रणनीति तो बना रही है, लेकिन कामयाब नहीं हो रही है. यह थर्ड अंपायर कोई और नहीं पाकिस्तान की न्यायपालिका है. पाकिस्तान में भ्रष्टाचार के आरोप में प्रधानमंत्रियों समेत कई दिग्गजों को सलाखों या देश से बाहर भेजने वाली सुप्रीम कोर्ट ने इमरान के खिलाफ अलग रुख बनाया हुआ है.
सेना और सरकार तमाम तरह के आरोपों के साथ इमरान को अदालत तक ला रही हैं. मगर शीर्ष अदालत उनके दावों की हवा निकाल दे रही है. तमाम कोशिशों के बावजूद सरकार इमरान खान को न तो सलाखों के पीछे रख पा रही है और न ही देश से बाहर निकाल पा रही है. आखिर ऐसा क्यों?
पाक में चल रही एक और ‘जंग’
दरअसल पाकिस्तान में सिर्फ इमरान बनाम सेना-सरकार ही नहीं चल रहा है बल्कि एक और जंग चल रही है. वो जंग है न्यायपालिका बनाम पाक सरकार. यह जगजाहिर है कि सत्ता में केंद्रित शहबाज शरीफ सरकार को लंदन में बैठे नवाज शरीफ चला रहे हैं. नवाज शरीफ लगातार न्यायपालिका पर निशाना साध रहे हैं. जब से पीएमएल-एन ने सत्ता संभाली है, उसने कई मौकों पर न्यायपालिका की शक्तियों को कम करने की कोशिश की है. यही नहीं इमरान के मामले में पार्टी ने खुलकर सड़कों पर उतरकर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की है.
वो जज जिन्होंने नवाज से छीनी कुर्सी
नवाज शरीफ और न्यायपालिका के बीच जो ठनी हुई है, उसकी कहानी थोड़ी लंबी है. नवाज शरीफ से प्रधानमंत्री की कुर्सी छीनने का काम न्यायपालिका ने ही किया था. साल 2017 में पनामा पेपर्स केस में नवाज शरीफ का नाम आया. जस्टिस आसिफ सईद खोसा और जस्टिस गुलजार अहमद ने 20 अप्रैल 2017 को फैसला सुनाया कि नवाज शरीफ ने देश के साथ ईमानदारी नहीं बरती और उन्हें डिस्क्वालीफाई कर देना चाहिए.
साल 2018 में उन्हें 10 साल की सजा सुनाई गई, जिसके बाद वो मेडिकल ग्राउंड पर लंदन चले गए. जस्टिस खोसा और जस्टिस गुलजार अहमद दोनों ही बाद में पाकिस्तान के चीफ जस्टिस बने. पहले जस्टिस खोसा और फिर जस्टिस अहमद ने पाकिस्तान के चीफ जस्टिस की कुर्सी संभाली. इनके बाद 2022 में उमर अता बंदियाल चीफ जस्टिस बने.
सुप्रीम कोर्ट के ये फैसले जो शरीफ भाइयों को ‘चुभे’
अदालत ने नवाज शरीफ से कुर्सी छीनी. अब जब सत्ता में लौटे तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले उनके लिए नागवार गुजरे. शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को निर्देश दिए कि जल्द से जल्द चुनाव कराए. जबकि शरीफ सरकार ऐसा नहीं चाहती थी. हालांकि बाद में चुनाव आयोग ने यह बहाना बना दिया कि उसके पास चुनाव कराने के लिए पैसा नहीं है.
इसके बाद बारी आई इमरान की. इमरान खान को कोर्ट परिसर से ही गिरफ्तार किया गया. पूरे देश में हड़कंप मच गया. लगा कि इमरान अब लंबे सलाखों के पीछे लंबे जाएंगे, लेकिन कुछ ही दिन में अदालत ने इमरान खान को जमानत दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी को अवैध बताया. पीएमएल-एन ने न्यायपालिका पर पक्षपात के आरोप लगाए.
इस वजह से खिंची तलवारें
पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने खुलकर कहा था कि अगर देश के शीर्ष जजों की शक्तियों पर लगाम नहीं लगाई गई तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा. मार्च में सरकार ने एक बिल पास किया. इसमें सुप्रीम कोर्ट पर ‘ज्यूडिशियल एक्टिविज्म’ के आरोप लगाए गए. इमरान खान ने खुलकर इस बिल की आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि ‘कुछ ठग’ सुप्रीम कोर्ट पर हमला कर रहे हैं.
ये 3 प्रावधान जो बने इमरान के लिए ‘वरदान’
इस बिल में तीन प्रावधान थे. पहला, स्वत: संज्ञान का फैसला अकेले चीफ जस्टिस नहीं करेंगे बल्कि तीन जजों की कमेटी इसका फैसला करेगी. इस तरह केस की सुनवाई के लिए पीठ के गठन का फैसला भी शीर्ष जज नहीं बल्कि कमेटी लेगी. तीसरा इस तरह के केस के खिलाफ आरोपी के पास अपील करने का अधिकार होगा. बस इसी तरह के प्रयासों ने न्यायपालिका को एकजुट करने में मदद कर दी. दूसरी तरफ इमरान चाहे सरकार में रहे हों या फिर विपक्ष में, उन्होंने हमेशा न्यायपालिका के प्रति सम्मान दिखाया.