नई दिल्ली: मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला है, लेकिन छोटे दल बड़ा धमाल करने के लिए चुनावी मैदान में उतरे हैं. कांग्रेस और बीजेपी सत्ता में काबिज होने की लड़ाई लड़ रहे हैं तो बसपा-सपा-आम आदमी पार्टी-आरएलपी जैसे दल किंगमेकर बनने की जुगत में हैं. क्षेत्रीय दल और छोटी पार्टियों के चुनावी रणभूमि में उतरने से सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही कांग्रेस और बीजेपी की चिंता बढ़ गई है. ऐसे में देखना है कि छोटे दल विधानसभा चुनाव में किसका खेल बनाएंगे या किसका गेम बिगाड़ेंगे?
भारतीय राजनीति में क्षेत्रीयता और जातीय अस्मिता के नाम पर तमाम छोटी-छोटी पार्टियां उपजी हैं. नब्बे के दशक में ये छोटी पार्टियां सरकार गिराने और बनाने में बड़ी भूमिका निभाती रही हैं तो पिछले विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश और राजस्थान में किसी भी एक दल को बहुमत नहीं मिला था, जिसके बाद कांग्रेस ने सपा और बसपा के समर्थन से सरकार बनाई थी. इस बार जिस तरह से कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर दिख रही है, उसके चलते चुनावी मैदान में उतरी छोटी और क्षेत्रीय पार्टियां किंगमेकर बनने का सपना संजोय हुए हैं. ऐसे में देखना है कि किस राज्य में कौन सी क्षेत्रीय पार्टी कितनी सीटों पर किस्मत आजमा रही है और किसकी चिंता बढ़ा रही है.
राजस्थान में किंगमेकर कौन बनेगा?
राजस्थान की सियासत कांग्रेस और बीजेपी के बीच सिमटी हुई है. इन्हीं दोनों दलों के बीच सत्ता परिवर्तन होता रहा और इस बार का विधानसभा चुनाव भी इनके बीच है, लेकिन जिस तरह से कांटे का मुकाबला माना जा रहा है, उसमें क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम रहने वाली है. राजस्थान में कांग्रेस 199 और बीजेपी 200 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी है. कांग्रेस और बीजेपी से जिन उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिल सका है, उनमें से कई नेता क्षेत्रीय और छोटी पार्टियों से टिकट लेकर ताल ठोक रहे हैं.
राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी के बाद सभी 200 सीटों पर बसपा ने अपने कैंडिडेट उतारे हैं. आम आदमी पार्टी राजस्थान की 88 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी ने 83 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं. बीटीपी 12 और बीएपी 21, सीपीएम 17 और आरएलडी एक सीट पर चुनावी मैदान में हैं. इसके अलावा अजय चौटाला की जेजेपी भी चुनावी किस्मत आजमा रही है.
बसपा-आरएलपी को इग्नोर करना मुश्किल
प्रदेश में बसपा का दलित और आरएलपी का जाट समुदाय के बीच अपना सियासी आधार है, जिसके चलते उन्हें इग्नोर करना मुश्किल है. 2018 में आरएलपी 3 सीटों के साथ ढाई फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही तो बसपा ने 6 सीटों के साथ 4 फीसदी वोट हासिल किया था. सीपीआई एक सीट और बीटीपी 2 सीटें जीतने में रही थी.
बसपा का सियासी भरतपुर, धौलपुर, करौली, दौसा और अलवर जैसे जैसे क्षेत्र में तो नागौर और शेखावटी के इलाके में हनुमान बेनीवाल का गढ़ माना जाता है. सीपीआई का सियासी प्रभाव शेखावटी के नहरी क्षेत्र में है तो बीटीपी और बीएपी आदिवासी बेल्ट में प्रभाव रखते हैं. यही वजह है कि बसपा 20, आरएलपी 15, आम आदमी पार्टी 3 और बीटीपी और बीएपी ने 5-5 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है. इस तरह से करीब दो दर्जन सीटों पर तीन दलों के बीच लड़ाई मानी जा रही है.
एमपी में छोटे दल करेंगे बड़ा धमाल?
मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी लड़ाई होती दिख रही है, लेकिन कुछ सीटों पर क्षेत्रीय दलों ने त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया है. एमपी में बसपा गोंडवाना पार्टी के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी है. बसपा 178 सीट पर प्रत्याशी उतारे हैं तो गोंडवाना गणतंत्र पार्टी 52 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. सपा 71 सीट पर प्रत्याशी उतार रखे हैं तो आम आदमी पार्टी 66 पर चुनावी मैदान में है. इसके अलावा सपाक्स 50 सीट, जयस 20 सीट और जनहित पार्टी 16 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी है.
2018 में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत से दूर रह गई थी. ऐसे में कांग्रेस ने बसपा और सपा विधायकों के सहयोग से सरकार बनाया था. पिछले चुनाव में सपा एक सीट के साथ 1.30 फीसदी वोट हासिल की थी तो बसपा दो विधायकों के साथ 5 फीसदी वोट पाने में सफल रही थी. इतना ही नहीं बसपा-सपा ने पिछले चुनाव में 20 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला बना दिया था, जिसके चलते ही कांग्रेस बहुमत से दूर रह गई थी. इस बार के चुनाव में सपा और बसपा ही नहीं आम आदमी पार्टी, बीजेपी से अलग होकर अपनी पार्टी बनाकर उतरे नारायण त्रिपाठी के उतरने से मुकाबला रोचक हो सकता है.
छत्तीसगढ़ में कौन होगा किंगमकेर
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सत्ता पर काबिज होने की जद्दोजहद है तो क्षेत्रीय दल किंगमेकर बनने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस और बीजेपी ने सभी 90 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं तो बसपा गोंडवाना पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. बसपा ने 59 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं जबकि गोंडवाना पार्टी 21 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. छत्तीसगढ़ जनता पार्टी (जोगी) 75 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी है. आम आदमी पार्टी 55 सीट और हमर राज पार्टी ने 43 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं.
2018 के विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ जनता पार्टी साढ़े सात फीसदी वोटों के साथ 5 सीटें जीतने में कामयाब रही. बसपा दो सीटों के साथ 3.7 फीसदी वोट पाई थी. इस बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच जिस तरह से टक्कर दिख रही है, उसके चलते छोटे और क्षेत्रीय दलों के उतरने से करीब दो दर्जन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला माना जा रहा है. ऐसे में देखना है कि क्षेत्रीय दल किस तरह से इस बार गुल खिलाते हैं?