कांग्रेस पार्टी को उपचुनाव में जीत का जश्न मनाने से ज्यादा आने वाले पांच राज्यों के चुनावों पर ध्यान देना चाहिए. तीन लोकसभा और 29 विधानसभा उपचुनावों का परिणाम आ गया. बता दें कि उपचुनाव 30 सीटों पर होना था पर नागालैंड की एक सीट पर एक प्रत्याशी निर्विरोध चुन लिया गया था. लोकसभा की तीन सीटों में से एक, और विधानसभा के 30 सीटों में से 8 सीटों पर कांग्रेस पार्टी की जीत हुई, पर जिस तरह से कांग्रेस पार्टी में जश्न का माहौल दिखा ऐसा प्रतीत हो रहा था कि पार्टी को उम्मीद से कहीं अधिक सीटों पर सफलता मिल गयी थी. कांग्रेस पार्टी ने यह दावा तक कर दिया कि वह उनकी वापसी की दिशा में पहला कदम है.
सवाल है कि क्या यह वास्तविकता में कांग्रेस पार्टी की बड़ी जीत थी और भारतीय जनता पार्टी की हार? शायद नहीं. इन 8 सीटों में से तीन हिमाचल प्रदेश और दो राजस्थान में थीं, और एक-एक सीट मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्णाटक में. यानि जिन 14 राज्यों में उपचुनाव हुआ, जिसमें से कांग्रेस पार्टी का 9 राज्यों में कहीं नामोनिशान नही था. असम की पांच सीटों में से तीन बीजेपी के खाते में और दो उसके सहयोगी दल यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी के खाते में गयी. इसके साथ ही जीत और हार के बीच का फासला काफी अधिक था.
उत्तरपूर्व के तीन राज्यों में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह साफ हो गई
उत्तरपूर्व के अन्य तीन राज्यों में कांग्रेस पार्टी का पूर्ण सफाया, आंध्रप्रदेश की एकलौती सीट पर राज्य की सत्ताधारी YSR कांग्रेस पार्टी की भारी जीत. दूसरे स्थान पर बीजेपी थी जिसे 21,678 मत और तीसरे स्थान पर कांग्रेस पार्टी जिसे मिले कुल 6,235 वोट, यानि बीजेपी से कांग्रेस पार्टी 15,443 मतों से पीछे रही. पड़ोसी राज्य तेलंगाना की एकलौती सीट पर बीजेपी जीती. बीजेपी के खाते में गए 1.07,022 वोट, दूसरे स्थान पर राज्य की सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति जिसे मिले 83,167 वोट, कांग्रेस पार्टी तीसरे स्थान पर जिसे मिला मात्र 3,014 वोट, यानि बीजेपी से 1,04,008 वोट कम. एक और दक्षिण के राज्य कर्णाटक के दो सीटों में से हंगल में कांग्रेस बीजेपी के मुकाबले 7,373 मतों से जीती और सिंदगी में बीजेपी के हाथों 31,185 मतों से हारी. पश्चिम बंगाल के चार और बिहार की दो सीटों पर कांग्रेस पार्टी की जमानत भी नहीं बची.
हिमाचल प्रदेश की सभी तीन विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर जीत का फासला तीन हज़ार से सात हज़ार वोटों के बीच रहा. जिसे भारी विजय की संज्ञा नहीं दी जा सकती. रही बात राजस्थान की तो वह कांग्रेस शासित प्रदेश है जहां की जीत पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भविष्य टिका था. दोनों सीटों पर जीत से गहलोत की कुर्सी तो फ़िलहाल बच गयी. पर क्या इसे कांग्रेस पार्टी की भारी जीत या वापसी मानी जा सकती है. कदापि नहीं. बस दिल बहलाने के लिए ही यह सोचा जा सकता है और यह सच को झुठलाने के जैसा है.
क्या मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की छुट्टी हो जाएगी?
हिमाचल प्रदेश में पिछले आठ चुनावों से एक प्रथा बन गयी है कि एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की सरकार बनती है. फिलहाल वहां बीजेपी की सरकार है. एक साल बाद वहां चुनाव होने वाला है और परंपरा के अनुसार अब कांग्रेस पार्टी की बारी है सरकार बनाने की. पर जिस तरह कांग्रेस पार्टी और बीजेपी के बीच जीत-हार का फासला कम रहा, यह संभव है कि बीजेपी भीतर घात की शिकार हो गयी. हिमाचल बीजेपी में कई ऐसे नेता हैं जो यही मना रहे थे कि पार्टी चुनाव हार जाए ताकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की छुट्टी हो जाए और वह मुख्यमंत्री बन जाएं.
बीजेपी नेशनल एग्जीक्यूटिव की मीटिंग 7 नवम्बर को निर्धारित है जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ अन्य बड़े नेता भाग लेंगे. उम्मीद है कि हिमाचल प्रदेश के हार पर इसमें विस्तृत रूप से चर्चा होगी और अगर जरूरी समझा गया तो जयराम ठाकुर को हटाया भी जा सकता है. बीजेपी ने अभी हाल ही में चुनाव के मद्देनजर उत्तराखंड, गुजरात और कर्णाटक में मुख्यमंत्री बदलने में संकोच नहीं की थी.
शायद अब बीजेपी नए कृषि कानूनों के बारे में कुछ विचार करे
साफ़ है कि हरियाणा के एक और राजस्थान की दो सीटों पर किसान आन्दोलन का भी कुछ असर रहा ही होगा और बीजेपी शायद यही देखना चाहती थी कि किसान आन्दोलन का चुनावों पर कितना असर पड़ता है. उम्मीद की जानी चाहिए कि शायद तीन विवादित कृषि कानूनों में अब कुछ बदलाव हो जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार हामी भर दे.
बीजेपी के लिए इन उपचुनावों में आशा से कम सफलता एक चेतावनी है, चिंता का कारण नहीं. पर जीत के जश्न में डूबी कांग्रेस पार्टी के लिए चुनौती ज्यों की त्यों मुहं बाए खड़ी है. अगले चार महीनों में पांच राज्यों में चुनाव होना है जिसमें कांग्रेस शासित पंजाब भी है. पंजाब में अंतर्कलह के बीच सत्ता कैसे बचाएं और अन्य चार राज्यों में बीजेपी को सत्ता से कैसे हटाएं, यह कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ी चुनौती होगी. यह संभव है कि इस लघु जीत से, जो वाकई में जीत नहीं है, कहीं कांग्रेस पार्टी ढीली ना पड़ जाए और इसका खामियाजा उसे अगले साल की पहली तिमाही में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में ना चुकाना पड़े.