नई दिल्ली। शराब नीति के कथित घोटाले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को फिलहाल कोई राहत नहीं है। मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उनकी गिरफ्तारी को चुनौती दी गई थी। अब केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। हालांकि, शीर्ष कोर्ट ने मामले में तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया है। कोर्ट का कहना है कि याचिका पर सोमवार से पहले सुनवाई नहीं हो सकती।
इससे पहले अदालत में प्रवर्तन निदेशालय ने अरविंद केजरीवाल को जमानत देने का कड़ा विरोध किया। वहीं केजरीवाल की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी की और उन्हें राहत देने की मांग की। सिंघवी ने लोकसभा चुनाव से जोड़ते हुए आप नेता की गिरफ्तारी के समय पर भी सवाल उठाए। हालांकि, अदालत ने तमाम दलीलों को खारिज कर दिया।
केजरीवाल का तर्क लोकसभा चुनाव से पहले गिरफ्तारी
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत के सामने तर्क दिया कि केजरीवाल की गिरफ्तारी का समय सीधे तौर पर आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में ‘समान अवसर’ यानी लेवल प्लेयिंग फील्ड को प्रभावित करता है। सिंघवी ने आगे तर्क दिया कि समान अवसर ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव’ का हिस्सा है। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी का समय सीधे तौर पर पूरे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के समान अवसर को बाधित करता है क्योंकि वह प्रमुख विपक्षी दल यानी आम आदमी पार्टी के सदस्य हैं। उनकी गिरफ्तारी सीधे तौर पर आगामी लोकसभा चुनावों में प्रचार करने के उनके अधिकार का उल्लंघन करती है। इसके अलावा गिरफ्तारी का समय यह सुनिश्चित करता है कि केजरीवाल लोकतांत्रिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकते हैं। मतदान से पहले ही उनकी पार्टी को तोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। सिंघवी ने तर्क दिया कि ईडी द्वारा केजरीवाल के खिलाफ जारी किया गया पहला समन अक्तूबर 2023 में था और उन्हें 21 मार्च 2024 को गिरफ्तार किया गया। यह दुर्भावना से भरा है और यह सीधे बुनियादी ढांचे और समान अवसर को नुकसान पहुंचाता है।
चुनाव में लेवल प्लेयिंग फील्ड पर अदालत का जवाब
फैसला सुनाते हुए जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने अपने आदेश में कि याचिकाकर्ता (अरविंद केजरीवाल) को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया है और उन्हें विशेष न्यायालय के समक्ष पेश किया गया था। चुनाव के समय के बावजूद गिरफ्तारी की जांच न्यायालय को करनी है। ईडी की ओर से किसी भी तरह की दुर्भावनापूर्ण मंशा के अभाव में इस तर्क को स्वीकार करने का मतलब यह होगा कि यदि केजरीवाल को अक्तूबर 2023 में ही गिरफ्तार किया गया होता तो उनकी गिरफ्तारी को दुर्भावनापूर्ण आधार पर चुनौती नहीं दी जाती क्योंकि उस समय चुनाव घोषित नहीं हुए थे।
गिरफ्तारी मनमानी आधार पर है
सिंघवी का यह भी तर्क था कि दिल्ली के सीएम की गिरफ्तारी दुर्भावनापूर्ण इरादे और गिरफ्तारी के तरीके और समय में दिखाई देने वाली मनमानी के आधार पर भी अवैध है।
अदालत का जवाब
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यदि इस तर्क को मानता है तो यह स्वीकार करना होगा कि यदि कोई व्यक्ति जांच एजेंसी के समक्ष खुद को पेश करने में देरी करता है तो वह इसका फायदा उठा सकता है और बाद में दुर्भावनापूर्ण होने का बहाना बना सकता है। अदालत ने कहा कि केजरीवाल को आगामी लोकसभा चुनाव तारीखों के बारे में भी पता होना चाहिए था जो मार्च 2024 के महीने में घोषित होने की संभावना थी। इसका जिक्र आप नेता ने समन के अपने जवाबों में भी किया है। केजरीवाल को यह भी पता होगा कि लोकसभा चुनाव घोषित होने के बाद वे पहले से कहीं ज्यादा व्यस्त हो जाएंगे और जांच में शामिल नहीं हो पाएंगे। इसके बावजूद उन्होंने न तो पीएमएलए की धारा 50 के तहत जारी समन को चुनौती दी और न ही अक्तूबर 2023 से जांच में शामिल हुए। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि पता होगा कि जांच में शामिल न होने के क्या परिणाम हो सकते हैं और यह कहां तक पहुंच सकता है।
विपक्षी दल का नेता होने के कारण गिरफ्तारी
सिंघवी ने तर्क दिया था कि केजरीवाल की गिरफ्तारी का समय इस मामले में बहुत अहम है और याचिकाकर्ता को उनके द्वारा किए गए किसी अपराध के लिए नहीं, बल्कि केवल विपक्षी दल का नेता होने के कारण गिरफ्तार किया गया है। सिंघवी ने इस बात पर भी जोर दिया कि वर्तमान मामले में 2022 से जांच किए जाने के बावजूद केजरीवाल को जानबूझकर 21 मार्च 2024 को गिरफ्तार किया गया ताकि वह आम चुनाव 2024 में भाग न सकें। इससे न केवल उनके व्यक्तिगत अधिकार का उल्लंघन हुआ, बल्कि निष्पक्ष और लोकतांत्रिक चुनाव कराने के बड़े मुद्दे को भी खतरा हुआ।
अदालत का जवाब
इन दलीलों पर न्यायालय ने कहा कि कि केजरीवाल ने गिरफ्तारी के समय यानी 2024 के आम चुनावों की शुरुआत से ठीक पहले अपनी गिरफ्तारी को भी चुनौती दी है। इसलिए सबसे पहले इस मामले में जांच के दौरान अरविंद केजरीवाल के आचरण पर ध्यान देना महत्वपूर्ण होगा। अदालत ने कहा कि केजरीवाल को आम चुनावों की घोषणा के बाद या आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद पहली बार नहीं बुलाया गया था, बल्कि पहला समन उन्हें अक्तूबर 2023 में भेजा गया था। यह अरविंद केजरीवाल खुद ही थे जिन्होंने जांच में शामिल नहीं होने का फैसला किया था, लेकिन उन्होंने सभी समन का जवाब भेजा था। न्यायालय ने इसे जांच एजेंसी के साथ आप नेता का असहयोग बताया और कहा कि जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि वह नौ समन दिए जाने के बावजूद जांच में शामिल होने में विफल रहे।