नई दिल्ली। दिल्ली में इस महीने के अंत में होने वाले मेयर चुनाव से पहले प्रोटेम स्पीकर के नाम को लेकर अरविंद केजरीवाल सरकार और एलजी के बीच जंग फिर छिड़ सकती है। आम आदमी पार्टी (आप) ने मेयर चुनाव कराने के लिए प्रोटेम स्पीकर के रूप में अपने वरिष्ठतम पार्षद मुकेश गोयल (Mukesh Goel) का नाम एक बार फिर दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना को मंजूरी के लिए भेजा है। हालांकि, पिछली बार हुए मेयर चुनाव में एलजी ने मुकेश गोयल के स्थान पर भाजपा पार्षद सत्या शर्मा को प्रोटेम स्पीकर बनाने की मंजूरी दी थी।
सत्तारूढ़ दल ने पीठासीन अधिकारी के रूप में एक बार फिर इस पद के लिए वरिष्ठतम पार्षद के तौर पर मुकेश गोयल का नाम प्रस्तावित किया है। मुकेश गोयल के नाम के लिए एलजी की अनुमति मांगने का दिल्ली सरकार का हालिया प्रस्ताव 26 अप्रैल को होने वाले नए मेयर चुनावों के मद्देनजर आया है।
‘आप’ सरकार ने पिछली बार भेजी थी 6 नामों की लिस्ट
उपराज्यपाल ने इस साल जनवरी में भाजपा पार्षद सत्या शर्मा को ‘आप’ सरकार द्वारा भेजी गई छह नामों की लिस्ट में से एक एमसीडी बैठक के प्रोटेम स्पीकर के रूप में नामित किया था। उस लिस्ट में अन्य नाम मुकेश गोयल, प्रीति, शकीला बेगम, हेमचंद गोयल और नीमा भगत थे।
‘आप’ ने तब एलजी के फैसले पर सवाल उठाए थे और आरोप लगाया था कि एलजी द्वारा नामित पीठासीन अधिकारी सत्या शर्मा ने असंवैधानिक रूप से सदन की पहली बैठक में मेयर चुनाव की प्रक्रिया में वोट देने की अनुमति दी, जिसके कारण एमसीडी के तीन सत्र हंगामेदार रहे।
हालांकि, राज निवास के अनुसार, पांच बार के पार्षद मुकेश गोयल को “हाल ही में संपन्न एमसीडी चुनाव में पार्टी के टिकट के लिए 1 करोड़ रुपये मांगने” के आरोप की जांच के कारण हटा दिया गया था।
पुराने नियम-कायदे देख रही सरकार
एलजी को भेजे गए नए प्रस्ताव का जवाब देते हुए शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि सरकार इस बार निर्णय लेने के लिए पूर्व रीति-रिवाजों और नियमों को देख रही है।
भारद्वाज ने बताया, “पीठासीन अधिकारियों को केवल मेयर का चुनाव करना होता है और बाकी चुनाव निर्वाचित मेयर द्वारा कराए जाते हैं। पिछली बार, हमने अपने वरिष्ठतम पार्षद का नाम पीठासीन अधिकारी के रूप में एलजी को भेजा था। यह प्रोटेम स्पीकर का चुनाव करने की प्रथा है। सभी सदनों में पीठासीन अधिकारी का चुनाव करने की यही प्रथा है, चाहे वह संसद हो या राज्य विधानमंडल, लेकिन दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने समय-सम्मानित परंपरा के खिलाफ जाकर सत्य शर्मा को पीठासीन अधिकारी के रूप में नामित किया था।”