राजू कुमार
1920 में संपन्न हुई इंडियन सिविल सर्विस प्रतियोगी परीक्षा में चौथा स्थान पाने वाले सुभाष चन्द्र बोस एक वर्ष के भीतर ही देशप्रेम और स्वतंत्रता की चाह में अपने पद से इस्तीफा देकर देशबन्धु चितरंजन दास के साथ राष्ट्रीय लक्ष्यसिद्धि में अपनी सेवाएँ अर्पित कर स्वराज्य पार्टी की सभी गतिविधियों में शक्तिशाली भूमिका निभाने लगे थे। स्वराज्य पार्टी में रहते हुए सुभाष चन्द्र बोस ने कई ऐसे उल्लेखनीय कार्य संपन्न किये, जिससे वे अंग्रेजों की आँखों में चुभने लगे थे। जिसमें ‘फारवर्ड’ जैसी अंग्रेजी दैनिक समाचार-पत्र का प्रकाशन व प्रबंधन, ऑल बंगाल यूथ लीग का गठन और संचालन, 1923 में बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महासचिव का पद ग्रहण करना तथा 1924 में उनके प्रयासों से कलकत्ता नगर निगम में स्वराज्य पार्टी का बहुमत में आना और देशबन्धु का महापौर चुना जाना प्रमुख था। स्वराज्य पार्टी को एक के बाद एक मिलती सफलता को देखते हुए ब्रिटिश सरकार का धैर्य में रहना मुश्किल हो गया, जिसके फलस्वरूप वे इस पार्टी की जड़ को जबरन काटने के लिए मजबूर हो गये।
जिसका परिणाम यह हुआ कि 25 अक्टूबर, 1924 को कलकत्ता के पुलिस कमिश्नर ने सुभाष चन्द्र बोस को तलब किया और अगले ही दिन क्रांतिकारी षड्यंत्र रचे जाने के झूठे आरोप में दो अन्य प्रमुख स्वराज्यवादियों के साथ गिरफ्तार भी कर लिया। जब सुभाष चन्द्र बोस की इस गिरफ्तारी को कलकत्ता के दो एंग्लो-इंडियन अखबारों ने पुष्टि कर उन्हें ‘क्रांतिकारी षड्यंत्र के दिमाग’ के रूप में पेश किया, लेकिन बोस के मानहानि के दावे के सामने सरकारी नियंत्रित प्रेस इस तथ्य को साबित करने नाकाम रही थी। बहरहाल, सुभाष चन्द्र बोस को कई जेलों का सैर कराया गया और अंत में चार दिन की समुद्री-यात्रा के बाद रंगून स्थित मांडले जेल में कैद कर दिया गया। मांडले जेल पहुँच कर सुभाष चन्द्र बोस गर्व से भर उठे, क्योंकि यह वही जेल था, जहाँ छह वर्ष तिलक और करीब एक वर्ष तक लाला जी कैद किये जा चुके थे। सुभाष चन्द्र बोस अपनी जेल डायरी में इस मांडले जेल के बारे में लिखते हैं कि ‘मांडले जेल भीतर से भारतीय जेलों से एकदम भिन्न थी।
कोठरियां लकड़ी के बाड़ों जैसी थी और सर्दियों की कडक़ड़ा देने वाली ठिठुरन, ग्रीष्म की प्रचंड धूल और गर्मी तथा मूसलधार बरसात से बचने का कैदियों के पास कोई उपाय नहीं था।’ सुभाष चन्द्र बोस के जीवनीकार शिशिर कुमार बोस लिखते हैं कि उनकी जेल डायरियों पर सरसरी नजऱ डालते ही यह स्पष्ट हो जाता है कि मांडले कारागार की एकाकी कोठरी में वे किस कदर विभिन्न विषयों पर सोचते तथा लिखते रहे। उदाहरणार्थ उन्होंने दर्शन-धर्म, इतिहास, कला, संस्कृति, राजनीतिक, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि के साथ-साथ बर्मी इतिहास, राजनीति तथा राष्ट्र का भी विशद अध्ययन किया।
आजादी के लिए सब कुछ समर्पित कर चुके सुभाष चन्द्र बोस अपनी धार्मिक संस्कृति के उत्थान और प्रगति के लिए भी मर मिटने को हमेशा तैयार रहा करते थे, जिसका सबसे बड़ा उदहारण अक्टूबर, 1925 में मांडले जेल में सुभाष चन्द्र बोस ने अपने अन्य बंदी साथियों के साथ जेल में दुर्गा-पूजा मानाने के लिए जेल का सबसे बड़ा धार्मिक आंदोलन किया था। जिसमें अन्य बंदी साथियों ने भूख-हड़ताल भी शामिल था और आखिरकार पंद्रह दिन के भूख-हड़ताल के बाद सरकार ने उनकी मांगों को मान लिया और जेल में दुर्गा-पूजा का कार्यक्रम संपन्न किया गया।
(शोधार्थी-इतिहास विभाग, इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक, म.प्र. हैं)