प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली। आज का दिन सुखद और प्रेरक है कि हम 75वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। अपने 25वें वर्ष के आसपास के एक दाग को अगर छोड़ दिया जाए, तो भारतीय गणतंत्र की यात्रा मिसाल रही है। आज स्वतंत्रता हमारी रगों में दौड़ रही है, पर क्या हम गणतंत्र को ठीक वैसे ही याद करते हैं, जैसे करना चाहिए? गणतंत्र की नींव में एक ऐसा संविधान है, जिसकी रचना देश की स्वतंत्रता और समाज की मुक्ति के लिए तपस्या करने वालों ‘ने मिलकर की थी। कुल 17 सत्रों में संविधान सभा की बैठकें हुई थीं और 114 दिन तो केवल मसौदे पर विचार हुआ था। विवाद और विषय के पोर-पोर पर पहुंचकर विद्वान, दार्शनिक नेताओं ने विचार किया था और उसके बाद देश को एक सुविचारित संविधान और सुगठित गणतंत्र नसीब हुआ। क्या हमें गणतंत्र के लिए की गई मेहनत याद है? क्या वह तपस्या याद है, जो डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के नेतृत्व में संभव हुई थी ? संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता का आनंद लेते हुए हमें गणतंत्र का ध्यान जरूर रखना चाहिए। गणतंत्र शब्द हमें अपने कर्तव्य या उत्तरदायित्व के लिए स्वतः प्रेरित करता है।
सत्ता का श्रेय लेने की होड़
सत्ता में सदैव श्रेय लेने की होड़ देखी गई है, पर एक दिन वह भी था, जब उदारमना बाबा साहेब ने कहा था, ‘जो श्रेय मुझे दिया गया है, उसका वास्तव में मैं अधिकारी नहीं हूं। उसके अधिकारी श्री बी एन राउ भी हैं, जो इस संविधान के सांविधानिक परामर्शदाता हैं।’ बाबा साहेब यही नहीं रुके थे, उन्होंने कहा था, ‘सबसे अधिक श्रेय इस संविधान के मुख्य मसौदा लेखक श्री एस एन मुकर्जी को है। बहुत ही जटिल प्रस्थापनाओं को सरल से सरल भाषा में रखने की उनकी योग्यता की बराबरी बहुत मुश्किल से मुमकिन हो सकती है।’ बावा साहेव ने उन कर्मचारियों को भी याद किया था, जिन्होंने दिन-रात एक करके संविधान संयोजन किया था। वह दुनिया कितनी समृद्ध थी, कितने विशाल हृदय थे लोग, जो न्याय,स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर देश की नींव रख रहे थे।
संविधान में राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता
आज हर सभा में हां में हां मिलाने वाले मिल जाते हैं, पर अपनी संविधान सभा में ऐसा कोई नहीं था। हम भूल गए हैं, पर बाबा साहेब ने याद किया था कि संविधान के मसौदे को के वी कामत, डॉक्टर पी एस देशमुख, श्री सिंधवा, प्रोफेसर सक्सेना, के टी शाह, पंडित हृदयनाथ कुंजरू और पंडित ठाकुरदास भार्गव ने आलोचना से कैसे तलवार की धार पर चलाया था, तो कैसे अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर और टी टी कृष्णमाचारी मसौदे के बचाव में पूरी विद्वता के साथ बार-बार उतर आते थे। राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता को देश कैसे भूल सकता है ?
भारतीय गणराज्य की नैतिकता
इतना अच्छा संविधान लिखने के बावजूद बाबा साहेब ने कह ही दिया था, ‘मैं समझता हूं कि संविधान चाहे जितना भी अच्छा हो, यदि उसे कार्यान्वित करने वाले लोग बुरे हैं, तो वह निस्संदेह बुरा हो जाता है।’ दरअसल, यही वह कसौटी है, जहां हमें स्वयं को परखना चाहिए। बेशक, गणतंत्र की नींव में सराबोर त्याग और संविधान रचना में शामिल रही विभूतियां यदि हमारे ध्यान में रहेंगी, तो हम भटकने से बचेंगे। विरल टेलीफोन के दौर से से हम कृत्रिम बुद्धिमता के दौर में आ गए हैं। देश के सामने चुनौतियों का अंबार है, पर आज भी संविधान ताकत है। ध्यान रहे, भारतीय गणराज्य की नैतिकता का स्तर ऊंचा है, इसलिए हमें दुनिया में कुछ ज्यादा कड़ाई से परखा जाता है। हमारे लिए चुनौती है कि हम गणतंत्र को अपने नैतिक बल से सींचते चलें।
संविधान द्वारा दी गई स्वतंत्रता का आनंद लेते हुए गणतंत्र का ध्यान जरूर रखना चाहिए। गणतंत्र शब्द हमें अपने कर्तव्य या उत्तरदायित्व के लिए स्वतः प्रेरित करता है: प्रकाश मेहरा