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Home राष्ट्रीय

BJP छोटे दलों की क्यों कर रही मनुहार, समझिए NDA का मिशन 2024

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
July 17, 2023
in राष्ट्रीय, विशेष
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BJP president JP Nadda
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2024 के लिए सभी दलों ने अभी से तैयारी शुरू कर दी है. विपक्षी एकता और लखनऊ में महाजुटान के जवाब में बीजेपी (BJP) भी छोटे दलों को अपने साथ करने की तैयारी में जुट गई है. इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर को अपने साथ लाकर कर दी है. जेडीएस को भी मनाने के लिए संदेशा भिजवाया गया है. पूर्ण बहुमत से 2019 और 2024 में सरकार बनाने के बाद भी बीजेपी छोटी पार्टियों और क्षेत्रीय ताकतों को नजरअंदाज नहीं कर रही है. एनसीपी में फूट के बाद अजित पवार को भी खुले दिल से अपना लिया गया है. बीजेपी मिशन 2024 के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. 5 प्वाइंट में समझिए क्या है इसके पीछे की रणनीति.

1) छोटे दलों का सॉलिड वोट बैंक: असम से लेकर तमिलनाडु तक और बिहार से लेकर सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले प्रदेश उत्तर में जो छोटी पार्टियां हैं उनके पास आज भी अपना सॉलिड वोट बैंक है. बीजेपी की नजर उसी वफादार वोट बैंच को अपने साथ जोड़ने की है. चुनाव से पहले इन दलों को अपने साथ रखकर मोदी और शाह यह संदेश भी देना चाहते हैं कि संख्या बल में कम होने के बाद भी उनके सम्मान और महत्व को अनदेखा नहीं किया जाएगा.

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2) बिहार-यूपी पर खास नजर: बिहार और उत्तर प्रदेश हिंदी पट्टी के दो ऐसे राज्य हैं जिनमें 120 लोकसभा सीटें हैं. इन दोनों ही प्रदेशों के क्षेत्रीय दल चाहे वह अपना दल हो या एलजेपी वह बीजेपी के लिए चुनावी रणनीति के लिहाज से उपयोगी साबित हो सकते हैं. नीतीश कुमार से गठबंधन टूटने के बाद अब बीजेपी को बिहार में विश्वस्त सहयोगियों की जरूरत है. छोटे दलों की बात करें तो रालोसपा, वीआईपी, HAM और सीपीआई (एमएल) जैसी अन्य छोटी पार्टियों को कुल मतदान का 9 प्रतिशत वोट मिला था. यह वोट प्रतिशत ही इन दलों को उपयोगी बनाए हुए है.

3) दक्षिण में पकड़ मजबूत करने की कोशिश: बीजेपी की नजर एनडीए के कुनबे को दक्षिण भारत में मजबूत बनाने की है. देश के दक्षिणी हिस्से में मोदी की चमत्कारी छवि और शाह की कुशल रणनीति के बाद भी बीजेपी को अब तक अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी है. ऐसे में यहां की क्षेत्रीय पार्टियों को अपने साथ जोड़कर बीजेपी की कोशिश अपने स्वरूप को विस्तार देने की है. दक्षिण में पांव जमाने के लिए इस वक्त बीजेपी को सहयोगियों की दरकार है.

4) महाराष्ट्र में छोटे दलों के पास बड़ी ताकत: छोटे दलों को अपने साथ साधने के पीछे बीजेपी के पास ठोस वजह है. अपने दम पर ये छोटे दल एक सीट भी नहीं जीत सकते लेकिन विपक्ष के वोट काटने का काम 2019 चुनाव में किया था. महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर की वंचित बहुजन अघाड़ी (VBA) कोई भी लोकसभा सीट नहीं जीत सकी थी. हालांकि इसके बावजूद उसे 7 प्रतिशत वोट मिले थे. जो पश्चिमी महाराष्ट्र की तीन लोकसभा सीटों पर यूपीए की हार की वजह बने. बीजेपी की कोशिश इन छोटी मछलियों के सहारे बड़ा जाल फैलाने की है.

5) सत्ता के साथ समावेशी छवि: बीजेपी इस वक्त अपने सबसे शक्तिशाली दौर में है और नजर केंद्र में सत्ता की हैट्रिक पर है. ऐसे में सत्ता के साथ अपनी छवि को समावेशी बनाने की जरूरत है. विपक्षी एकता और सत्ता के अहंकार जैसे आरोपों का काट भी बीजेपी इन छोटी पार्टियों को साथ लेकर सम्मान और सहयोग का आश्वासन दे सकती है. साथ ही, यह संघ और बीजेपी की कठोर छवि को धूमिल कर ज्यादा उदार और समावेशी बनाने का भी एक प्रोजेक्ट है.

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