Upgrade
पहल टाइम्स
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन
No Result
View All Result
पहल टाइम्स
No Result
View All Result
  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • ईमैगजीन
Home राष्ट्रीय

क्या न्यायपालिका की तानाशाही की तरफ बढ़ रहा है भारत?

पहल टाइम्स डेस्क by पहल टाइम्स डेस्क
July 29, 2023
in राष्ट्रीय, विशेष
A A
Supreme court
23
SHARES
765
VIEWS
Share on FacebookShare on Whatsapp

Ajay Setia


भारत के सुप्रीम कोर्ट ने देश के लोकतंत्र को चुनौती देना शुरू कर दिया और विपक्षी पार्टियां इससे खुश हैं। वे संसद में कमजोर होने के कारण सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का इस्तेमाल कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट का काम उनके सामने आए मुकद्दमों पर फैसला करना है, लेकिन जिस तरह उसने मणिपुर के मामले में प्रशासन और चुनी हुई सरकार के कामकाज में सीधा दखल देने का फैसला किया, वह लोकतंत्र की मर्यादाओं का उलंघन है।

इन्हें भी पढ़े

Sushil Gaikwad

सुशील गायकवाड़ ने महाराष्ट्र सदन के रेजिडेंट कमिश्नर का संभाला कार्यभार

October 10, 2025

परियोजनाओं को पूंजीगत निवेश के लिए राज्यों को मिलेगी विशेष सहायता

October 10, 2025
highway

10,000 KM के 25 ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे बना रही सरकार!

October 9, 2025
Amit Shah

गृहमंत्री अमित शाह ने Gmail को कहा अलविदा, जानें क्या है नया Email एड्रेस?

October 8, 2025
Load More

सुप्रीम कोर्ट आए दिन संसद से पारित कानूनों और अध्यादेशों की संवैधानिकता जांचने का काम भी करने लगा है। दिल्ली के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने खुद लिखा था कि क़ानून के अभाव में वह यह फैसला दे रहा है कि दिल्ली के अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार दिल्ली सरकार का होगा। 1991 के क़ानून में यह खामी इसलिए रह गई थी, क्योंकि दिल्ली को विधानसभा देने वाले इस क़ानून में दिल्ली को केंद्र शासित राज्य ही लिखा हुआ था। सरकार ने जब वह रिक्त स्थान भर दिया, जिसके आधार पर फैसला दिया गया था, तो सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेश की संवैधानिकता की जांच शुरू कर दी। यही ट्रेंड रहा तो डर है कि किसी दिन सुप्रीम कोर्ट सरकार की संवैधानिकता की जांच ही न शुरू कर दे, जो माननीय राष्ट्रपति का अधिकार है।

अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि सरकार उसके फैसले के बाद अगर किसी क़ानून में संशोधन करती है, तो सुप्रीम कोर्ट उसे मानने को बाध्य नहीं है। उसकी यह टिप्पणी संविधान की भावना के खिलाफ है, क्योंकि क़ानून बनाने का अधिकार संसद का है, सुप्रीम कोर्ट का नहीं। एलजीबीटी के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने मेरिज एक्ट में संशोधन की कोशिश की, जोकि संसद का अधिकार है। हालांकि यह मामला अभी ठंडे बस्ते में है, लेकिन चीफ जस्टिस के तेवरों से लगता है कि सुप्रीम कोर्ट किसी दिन इस पर खुद क़ानून बनाने का फैसला कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट खुद को सरकार से बड़ा समझने लगा है। अभी हाल ही में ईडी के एक्स्टेंशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तानाशाहीपूर्ण फैसला दिया कि क्योंकि संसद ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ईडी के डायरेक्टर का एक्सटेंशन बढ़ाने का बिल पास किया है, इसलिए वह उसे मौजूदा ईडी के मामले में नहीं मानेगी। सुप्रीम कोर्ट ईडी का एक्सटेंशन पांच तक बढ़ाने के कानून संशोधन को गलत भी नहीं बता रही, लेकिन नाक का सवाल बनाकर कह रही है कि वह मौजूदा ईडी का कार्यकाल नहीं बढ़ने देगी। सुप्रीम कोर्ट की यह जिद्द न केवल असंवैधानिक है, बल्कि संसद के अधिकारों में हस्तक्षेप और तानाशाही भी है।

सरकार को सुप्रीम कोर्ट में बार बार याचिका लगानी पड़ रही है कि उसे मौजूदा ईडी संजय मिश्रा की अभी जरूरत है, और क़ानून भी इसकी इजाजत देता है। सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि क्योंकि उसने 8 सितंबर 2021 में कह दिया था कि संजय मिश्रा का यह आख़िरी एक्सटेंशन है तो सरकार को 17 नवंबर 2021 और 17 नवंबर 2022 को एक्सटेंशन नहीं देनी चाहिए थी, यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट को कानून के अनुसार ही आदेश देने का अधिकार है, कानून के बाहर जाकर वह आदेश कैसे दे सकता है, और अपने अवैध आदेशों को अपनी इज्जत का सवाल कैसे बना सकता है। क़ानून बदल गया, तो सुप्रीम कोर्ट को आदेश भी बदलना पड़ेगा। संसद ने क़ानून में संशोधन कर दिया कि ईडी की एक्सटेंशन पांच साल तक बढाई जा सकती है, तो सुप्रीम कोर्ट कैसे कह सकती है कि संसद उसके दिए फैसले को नहीं पलट सकती।

11 जुलाई को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने क़ानून संशोधन से पहले जो फैसला दिया था, सरकार को उसे ही मानना पड़ेगा और संजय मिश्रा को 31 जुलाई को हटाना पड़ेगा। विपक्ष अगर संसद में बहुमत में नहीं है, तो वह संसद और चुनी हुई सरकार को पंगु बनाने की कोशिश कर रहा है, और सुप्रीम कोर्ट विपक्ष के हाथ का खिलौना बन कर लोकतंत्र को पटरी से उतारने की कोशिश कर रही है।

11 जुलाई के इस फैसले से सरकार का असहज होना स्वाभाविक है, क्योंकि भारत में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ( एफएटीएफ ) मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग की समीक्षा चल रही है, ऐसे में समीक्षा पूरी होने तक उनका ईडी बने रहना राष्ट्रीय हित में है, जबकि भारत के विपक्षी नेताओं का स्वार्थ सिर्फ इतना है कि मौजूदा ईडी क्योंकि उनके भ्रष्ट नेताओं पर आए दिन छापेमारी करवा रहे हैं, इसलिए उन्हें जल्द से जल्द हटना चाहिए।

मिश्रा कई हाई-प्रोफाइल मामलों को संभाल रहे हैं – जिनमें से ज्यादातर संदिग्ध मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित हैं। एजेंसी की जांच के दायरे में पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम भी शामिल हैं। इसके अलावा कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती, दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और गांधी परिवार के नियन्त्रण वाला मीडिया संगठन यंग इंडिया भी शामिल है, जो नेशनल हेराल्ड अखबार का मालिक है।

एफएटीएफ मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग से निपटने के लिए स्थापित एक अंतर-सरकारी निकाय है। इस समय एफएटीएफ की समीक्षा चल रही है, जब तक वह जांच पूरी न हो जाए, सरकार चाहती है कि मौजूदा ईडी बने रहें। पाकिस्तान और पाकिस्तान समर्थक भारतीय लॉबी चाहती है कि चुनावी साल में मोदी सरकार के चलते भारत अगर एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में आ जाता है, तो चुनावों में विपक्ष को एक हथियार मिल सकता है। यानि वे संजय मिश्रा को हटवा कर पाकिस्तान की तरह भारत को ग्रे लिस्ट में लाना चाहते हैं। क्या यह इन्डियन होने का प्रमाण है।

सरकार ने राष्ट्रीय हित का आधार लगा कर नई याचिका लगाई, जिसमें कहा गया था कि भारत सहित लगभग 200 देशों ने एफएटीएफ मानकों को लागू करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। इसलिए एफएटीएफ की समीक्षा के चलते संजय मिश्रा को 15 अक्टूबर तक एक्सटेंशन दी जाए, क्योंकि तब तक एफएटीएफ की समीक्षा पूरी हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राष्ट्रीय हित का हवाला तो दिया, लेकिन एक्सटेंशन 15 सितंबर तक ही दी।

सवाल यह है कि संसद से पारित क़ानून के बावजूद सरकार को बार बार सुप्रीम कोर्ट में याचक बन कर खड़ा क्यों रहना पड़ता है। उसे राष्ट्रहित की दुहाई क्यों देनी पड़ती है। संजय मिश्रा का मामला हो या दिल्ली अध्यादेश का मामला हो, या मणिपुर की हिंसा का मामला हो, सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को विपक्ष की तरह कटघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट को ऐसी संसद में बदल दिया गया है, जहां बहुमत के बावजूद सरकार असहाय दिख रही है, और सुप्रीम कोर्ट के जज विपक्ष की तरफ से बैटिंग कर रहे हैं। क्या सुप्रीम कोर्ट भारत के लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा नहीं बन रहा है?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।

इन्हें भी पढ़ें

  • All
  • विशेष
  • लाइफस्टाइल
  • खेल
world-population

विश्व जनसंख्या वृद्धि धीमी करने के लिए

January 19, 2023
court

सेवा विस्तार पर सवाल

July 13, 2023
RSS chief

संघ के संगठनों का क्या मतलब

August 23, 2022
पहल टाइम्स

पहल टाइम्स का संचालन पहल मीडिया ग्रुप्स के द्वारा किया जा रहा है. पहल टाइम्स का प्रयास समाज के लिए उपयोगी खबरों के प्रसार का रहा है. पहल गुप्स के समूह संपादक शूरबीर सिंह नेगी है.

Learn more

पहल टाइम्स कार्यालय

प्रधान संपादकः- शूरवीर सिंह नेगी

9-सी, मोहम्मदपुर, आरके पुरम नई दिल्ली

फोन नं-  +91 11 46678331

मोबाइल- + 91 9910877052

ईमेल- pahaltimes@gmail.com

Categories

  • Uncategorized
  • खाना खजाना
  • खेल
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • दिल्ली
  • धर्म
  • फैशन
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • राजनीति
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • लाइफस्टाइल
  • विशेष
  • विश्व
  • व्यापार
  • साक्षात्कार
  • सामाजिक कार्य
  • स्वास्थ्य

Recent Posts

  • मैच के दौरान शुभमन गिल को मिला लव प्रपोजल, वायरल हो गई मिस्ट्री गर्ल
  • नोबेल अवॉर्ड की आड़ में क्या शुरू होने वाली है भीषण जंग?
  • पराली जलाना अब पड़ेगा महंगा, योगी सरकार देगी कड़ी सजा!

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.

  • होम
  • दिल्ली
  • राज्य
  • राष्ट्रीय
  • विश्व
  • धर्म
  • व्यापार
  • खेल
  • मनोरंजन
  • गैजेट्स
  • जुर्म
  • लाइफस्टाइल
    • स्वास्थ्य
    • फैशन
    • यात्रा
  • विशेष
    • साक्षात्कार
  • ईमैगजीन

© 2021 पहल टाइम्स - देश-दुनिया की संपूर्ण खबरें सिर्फ यहां.