प्रकाश मेहरा
एक्जीक्यूटिव एडिटर
नई दिल्ली: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के सख्त रुख को बनाए रखते हुए संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। इस घटना की इनसाइड स्टोरी और इसके पीछे के कारणों को समझने के लिए कुछ बिंदुओं पर गौर करना ज़रुरी है।
यह बैठक 26 जून को चीन के किंगदाओ में आयोजित हुई, जिसमें भारत, चीन, पाकिस्तान, रूस, ईरान और अन्य SCO सदस्य देशों के रक्षा मंत्री शामिल थे। बैठक का मुख्य एजेंडा क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग था। भारत ने हमेशा आतंकवाद के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस की नीति अपनाई है। हाल के पहलगाम आतंकी हमले (जम्मू-कश्मीर में हुआ, जिसमें 26 लोग मारे गए) और ऑपरेशन सिंदूर (7 मई 2025 को सीमा पार आतंकी ठिकानों को नष्ट करने की कार्रवाई) ने भारत के इस रुख को और मजबूत किया।
चीन और पाकिस्तान की रणनीति
SCO के मसौदा प्रस्ताव (ड्राफ्ट रेजोल्यूशन) में पाकिस्तान और चीन ने आतंकवाद के संदर्भ में बलूचिस्तान का मुद्दा शामिल करने की कोशिश की। पाकिस्तान लंबे समय से बलूचिस्तान में चल रहे अलगाववादी आंदोलन को भारत द्वारा प्रायोजित बताता रहा है, जो कि आधारहीन आरोप हैं। इस ड्राफ्ट में बलूचिस्तान का जिक्र करके पाकिस्तान भारत को कटघरे में खड़ा करना चाहता था, और चीन ने इस मसौदे को समर्थन दिया।
मसौदे में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम हमले का कोई उल्लेख नहीं था, जिसे भारत ने गंभीर आतंकी घटना माना। इस हमले में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था। ड्राफ्ट में इसकी निंदा न करके चीन और पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे को हल्का करने और भारत के रुख को कमजोर करने की कोशिश में थे।
राजनाथ सिंह का इनकार
राजनाथ सिंह ने इस मसौदे पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, क्योंकि यह भारत के आतंकवाद के खिलाफ मजबूत स्टैंड को कमजोर करता था। भारत का मानना था कि पहलगाम हमले जैसे गंभीर आतंकी कृत्यों की निंदा के बिना और बलूचिस्तान के आधारहीन उल्लेख के साथ यह दस्तावेज भारत की स्थिति को गलत तरीके से पेश करता।
राजनाथ सिंह ने बैठक में पाकिस्तान की आतंकवाद-प्रायोजित नीतियों पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कुछ देश सीमा पार आतंकवाद को अपनी नीति के तौर पर इस्तेमाल करते हैं और आतंकवादियों को पनाह देते हैं, जिसे भारत बर्दाश्त नहीं करेगा। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र कर भारत की आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की नीति को रेखांकित किया। राजनाथ सिंह ने परोक्ष रूप से चीन को भी उसकी दोहरी नीतियों के लिए फटकार लगाई, क्योंकि चीन ने बलूचिस्तान के मुद्दे को समर्थन देकर पाकिस्तान का साथ दिया। भारत ने यह स्पष्ट किया कि आतंकवाद के खिलाफ दोहरा मापदंड स्वीकार्य नहीं है।
पाक-चीन की चाल नाकाम
SCO आम सहमति के आधार पर काम करता है। राजनाथ सिंह के हस्ताक्षर न करने के कारण बैठक बिना किसी संयुक्त बयान के समाप्त हुई। यह भारत के सख्त रुख और कूटनीतिक दबदबे का प्रतीक था। भारत के इस कदम ने पाकिस्तान और चीन की उस साजिश को विफल कर दिया, जिसमें वे बलूचिस्तान का जिक्र कर भारत को घेरना चाहते थे। साथ ही, यह भारत की वैश्विक मंच पर आतंकवाद के खिलाफ मजबूत स्थिति को दर्शाता है।
क्या है बलूचिस्तान का मुद्दा
पाकिस्तान बलूचिस्तान में चल रहे अलगाववादी आंदोलन को भारत से जोड़कर देखता है और इसे भारत द्वारा अस्थिर करने की साजिश बताता है। हालांकि, बलूचिस्तान की अशांति की जड़ें पाकिस्तानी शासन की नीतियों, जैसे संसाधनों का शोषण, मानवाधिकार उल्लंघन, और सामाजिक-आर्थिक असमानता में हैं। बलूचिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत कई परियोजनाएं चल रही हैं, जिनका बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे समूह विरोध करते हैं। चीन इस क्षेत्र में अपनी आर्थिक और सामरिक रुचियों की रक्षा के लिए पाकिस्तान का समर्थन करता है।
भारत की कूटनीतिक जीत
राजनाथ सिंह ने SCO मंच का उपयोग कर वैश्विक समुदाय को भारत की आतंकवाद के प्रति शून्य-सहनशीलता नीति से अवगत कराया। उन्होंने लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों और उनके प्रायोजकों की जवाबदेही तय करने की मांग की।भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि शांति और समृद्धि आतंकवाद के साथ सह-अस्तित्व में नहीं रह सकती। राजनाथ सिंह ने कट्टरपंथ, उग्रवाद, और आतंकवाद को क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौतियां बताया। बैठक के दौरान राजनाथ सिंह और पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के बीच कोई बातचीत नहीं हुई, और फोटो सेशन में भी दोनों दूर-दूर दिखे, जो भारत के कड़े रुख को दर्शाता है।
भारत की कूटनीतिक ताकत
राजनाथ सिंह का SCO संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर न करना भारत की आतंकवाद के खिलाफ अडिग नीति का प्रतीक है। चीन और पाकिस्तान की बलूचिस्तान को शामिल करने और पहलगाम हमले को नजरअंदाज करने की कोशिश को भारत ने नाकाम कर दिया। यह कदम न केवल भारत की कूटनीतिक ताकत को दर्शाता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि भारत आतंकवाद के मुद्दे पर किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा।