नई दिल्ली: बिहार विजय के बाद बीजेपी अब बंगाल फतह पर निकल पड़ी है. लेकिन स्ट्रेटजी वही है. पश्चिम बंगाल बीजेपी ने सोशल मीडिया पर जो ताजा पोस्टर जारी किया है, वह महज एक ग्राफिक नहीं, बल्कि एक सोची-समझी आक्रामक रणनीति का आगाज है. इस पोस्टर में एक तरफ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का आधा चेहरा है, तो दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का. ऊपर मोटे अक्षरों में लिखा है’ BOTH ARE SAME यानी दोनों एक हैं.
बीजेपी ने इस एक तस्वीर के जरिए बंगाल के मतदाताओं के मन में उस डर को बिठाने की कोशिश की है, जिसे 90 के दशक में बिहार ने भोगा था. वह डर है- जंगलराज का. बिहार में बीजेपी ने लालू यादव के शासनकाल को जंगलराज का नाम देकर सत्ता परिवर्तन की पटकथा लिखी थी. अब ठीक उसी फॉर्मूले, उसी नैरेटिव और उसी डर को बंगाल की जमीन पर उतारने की तैयारी है. संदेश साफ है कि अगर आप ममता बनर्जी को वोट दे रहे हैं, तो आप दरअसल बंगाल को उसी अराजकता की ओर धकेल रहे हैं, जिससे बिहार बड़ी मुश्किल से बाहर निकल पाया है.
जंगलराज का नैरेटिव और आरजेडी की दुर्गति
इस पोस्टर के मर्म को समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे मुड़कर बिहार की राजनीति को देखना होगा. बिहार चुनावों में, और उसके बाद भी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह तक, हर बड़े नेता ने अपनी रैलियों में जंगलराज शब्द का बार-बार इस्तेमाल किया. अपहरण, रंगदारी, हत्या और भ्रष्टाचार की कहानिया सुनाईं. बीजेपी ने बिहार में जनता को भरोसा दिलाया कि आरजेडी की वापसी का मतलब है कि लालटेन युग और गुंडाराज की वापसी. तेजस्वी यादव लाख कहते रहे कि हम किसी अपराधी को बख्शेंगे नहीं, लेकिन बीजेपी का प्रचार इतना आक्रामक था कि जनता के मन में बैठ गया और नतीजा, आरजेडी की दुर्गति हो गई.
ममता दीदी नहीं ‘हिटलर’
अब बंगाल में बीजेपी का आईटी सेल और रणनीतिकार इसी बिहार मॉडल को लागू कर रहे हैं. ममता बनर्जी के 15 साल के शासनकाल को बीजेपी ठीक उसी चश्मे से पेश कर रही है. पोस्टर के साथ बीजेपी बता रही कि हम बंगाली ममता के 15 साल के कार्यकाल को हमेशा जंगलराज के युग के रूप में याद रखेंगे. यह दिखाता है कि बीजेपी अब ममता बनर्जी की छवि को दीदी से बदलकर एक हिटलर के रूप में स्थापित करना चाहती है, जिसके राज में कानून का इकबाल खत्म हो चुका है. सोमवार को बीजेपी ने उन्हें खुलेआम हिटलर कहकर भी बुलाया.
बीजेपी का आरोप पत्र: लालू और ममता राज में समानताएं
बीजेपी लालू का चेहरा आगे रखकर ममता और लालू राज की समानता गिना रही है. साथ में ये भी बता रही कि अब पाप का घड़ा भर चुका है. बंगाल की जनता अब ममता सरकार को और बर्दाश्त नहीं करने वाली.
सिंडिकेट राज और कटमनी कल्चर : लालू यादव के दौर में बिहार में बाहुबलियों का बोलबाला था. शहाबुद्दीन जैसे लोग सत्ता के संरक्षण में पलते थे. बीजेपी का आरोप है कि बंगाल में टीएमसी ने इसे सिंडिकेट राज और कटमनी कल्चर में बदल दिया है. चुनाव बाद हुई हिंसा, विरोधियों की हत्याएं और बमबाजी की घटनाएं बंगाल की राजनीति का चरित्र बन गई हैं. जिस तरह बिहार में मतदान केंद्रों पर कब्जा होता था, बीजेपी का दावा है कि बंगाल के पंचायत चुनावों में उसी तरह मतपेटियां लूटी गईं और विरोधियों को नामांकन तक नहीं करने दिया गया.
पुलिस और प्रशासन का राजनीतिकरण: ‘जंगलराज’ की एक प्रमुख निशानी यह होती है कि पुलिस कानून की रक्षक न होकर सत्ताधारी पार्टी की कार्यकर्ता बन जाती है. बिहार में पुलिस थानों का इस्तेमाल विरोधियों को कुचलने के लिए होता था. बंगाल में भी बीजेपी लगातार यह मुद्दा उठाती रही है कि पुलिस कमिश्नर धरने पर बैठते हैं और आईपीएस अधिकारी सत्ता के इशारे पर काम करते हैं. संदेशखाली जैसी घटनाओं में पुलिस की निष्क्रियता को बीजेपी ‘लालू राज’ की पुनरावृत्ति बता रही है.
भ्रष्टाचार का खुला खेल: लालू यादव का नाम ‘चारा घोटाले’ से जुड़ा, जो उस समय का सबसे बड़ा प्रतीक बना. बंगाल में ‘शिक्षक भर्ती घोटाला’, ‘राशन घोटाला’, ‘शारदा’ और ‘नारदा’ जैसे मामलों ने ममता सरकार की साख पर बट्टा लगाया है. पार्थ चटर्जी के घर से नोटों के पहाड़ मिलना और फिर अनुब्रत मंडल की गिरफ्तारी… ये दृश्य बिहार के चारा घोटाले की यादों को ताजा करते हैं. बीजेपी इसी को आधार बनाकर कह रही है कि दोनों एक हैं.
परिवारवाद और उत्तराधिकार: लालू यादव ने अपने बाद अपनी पत्नी राबड़ी देवी और फिर बेटे तेजस्वी को सत्ता सौंपी. बीजेपी, ममता बनर्जी पर भी अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को आगे बढ़ाने और पार्टी पर पारिवारिक नियंत्रण रखने का आरोप लगाती है. यह ‘परिवारवाद’ का मुद्दा बीजेपी के कोर एजेंडे में फिट बैठता है, जिसे वह लोकतंत्र के लिए खतरा बताती है.
तुष्टिकरण की राजनीति: बिहार में ‘एम-वाई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण लालू की ताकत था. बीजेपी का आरोप है कि ममता बनर्जी ने बंगाल में भी एक विशेष वर्ग के तुष्टिकरण को अपनी सत्ता का आधार बनाया है, जिसके कारण बहुसंख्यक समाज असुरक्षित महसूस कर रहा है और राज्य की डेमोग्राफी बदल रही है.
‘पाप का घड़ा’ और जनता का मूड
पोस्टर के साथ बीजेपी कह रही कि लालू और ममता राज में बिहार और बंगाल को ऐसे मोड़ पर ला खड़ा किया जहां पाप का घड़ा भर चुका है. यह सिर्फ प्रचार नहीं है. राजनीति में एंटी-इनकंबेंसी तब पैदा होती है जब जनता को लगने लगता है कि अब पानी सिर से ऊपर जा चुका है. संदेशखाली की घटनाएं, जहां महिलाओं के साथ हुए अत्याचार की खबरें सामने आईं, उसने बंगाल की छवि को गहरा धक्का दिया है. बीजेपी इसे ही ‘पाप का घड़ा’ भरना बता रही है.
जब ईडी और सीबीआई की टीमों पर भीड़ हमले करती है जैसा कि संदेशखाली और अन्य जगहों पर देखा गया, तो यह राज्य में कानून के शासन के पतन का स्पष्ट संकेत होता है. यह अराजकता की वह स्थिति है जहां राज्य की मशीनरी या तो लाचार है या मिली हुई है. बीजेपी जनता को यह समझाना चाहती है कि यह सामान्य राजनीतिक माहौल नहीं है, बल्कि यह वही दौर है जिससे बिहार को मुक्ति मिली थी. अब बंगाल को भी उसी ‘मुक्ति’ की जरूरत है.





