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Home विश्व

आबादी, मौत और महंगाई

pahaltimes by pahaltimes
July 24, 2022
in विश्व
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हरिशंकर व्यास

भारत की आबादी फट पड़ रही है तो लोगों के जीवन पर भी बादल फट पड़ रहे हैं। महंगाई फट पड़ रही है। कल ही खबर थी कि भारत में बारिश, बाढ़ से दो सौ से ज्यादा मौत हुई। आज ही खबर है कि दही भी जीएसटी के कारण महंगा होने वाला है! मगर इस सबका किस पर असर हो रहा है? किसी पर नहीं? भारत वह देश है, जिसमें आजादी के 75 वर्ष बाद भी यह समझ नहीं है कि प्राकृतिक आपदाओं में भी लोगों को बचाया जा सकता है! मुंबई और बिहार हो, हर साल बारिश से जान-माल का नुकसान होता है। भारत की सरकारों, अफसरों और नागरिकों का मानना है कि कोई क्या कर सकता है? ईश्वर की लीला है। केदारनाथ, अमरनाथ में बादल फटा और लोग मरें तो वे स्वर्ग में गए। तूफान, चक्रवात,  सुनामी, भीषण, गर्मी जैसी आपदाएं लाइलाज हैं इसलिए लोग मरते हैं तो मरते हैं, हम क्या कर सकते हैं!

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यही मामला जीवन जीने की तमाम कठिनाइयों, महंगाई आदि का भी है। लोग सोचते ही नहीं हैं कि प्राकृतिक आपदाओं में भी जान बचाने के उपाय हो सकते हैं या कम से कम आवश्यक चीजों की महंगाई रोकी जा सकती है। एडवांस तैयारी रखनी चाहिए। दुनिया के तमाम विकसित देश जलवायु परिवर्तन की वास्तविकताओं को जानते हुए लोगों को बचाने की एडवांस तैयारी बना  रहे हैं। हाल में दक्षिणी चीन में जबरदस्त तूफान के कारण बाढ़ आई। कई शहर मिट्टी की गाद से भर गए। वहां से ब्रह्मपुत्र के बढ़े बहाव व बारिश से असम, बांग्लादेश में भारी तबाही हुई मगर चीन में मौतों की खबरें नहीं हैं, जबकि असम, बांग्लादेश में जान-माल का भारी नुकसान है। तो चीन में कम नुकसान इसलिए है क्योंकि वह सन् 2012 से नेचुरल वाटर फ्लो को बनवाने के लिए ‘वाटर डिटेक्टिव’ के विशाल प्रोजेक्ट पर अमल कर चुका है, जिससे बाढ़ और सूखे दोनों की स्थितियों से कम से कम नुकसान हो। ऐसे काम की भारत की सरकारों, इंजीनियरों में कल्पना ही नहीं है। तभी मुंबई और बिहार में हर साल बाढ़ के बावजूद समाधान यहीं है कि लोग हर साल जान-माल गंवाए। जापान, फ्रांस, यूरोप गर्मी से भयावह झुलसते हुए हैं लेकिन जैसा मैंने अपने कॉलम में लिखा था कि जापान ने तुरंत बूढ़ी आबादी के लिए खास एसी सेंटर बनाए, जिससे वे मजे से जी सकें। जापान सुनामी का मारा देश है मगर सु्मद्री किनारों पर ऐसी सीमेंट की दीवारें बना दी हैं कि न्यूनतम नुकसान। जापान, यूरोप, जलवायु परिवर्तन की रियलिटी को जान एडवांस प्रबंध कर रहे हैं लेकिन मैंने यह कहीं नहीं पढ़ा कि गुजरात में दस जुलाई तक छोटा उदयपुर, तापी, अमदाबाद व पंचमहल में सूखा था मगर 10 जुलाई से मानों बादल फटे हों और बाढ़ आई तो सरकार ने समझा कि यह जलवायु परिवर्तन का प्रमाण है और अब जागो।

कह सकते हैं 140 करोड़ लोगों की भीड़ में असम हो या गुजरात सभी और भारतीयों के लिए आपदाओं-विपदाओं की मौतों का अर्थ नहीं है, जबकि हिंदू बनाम मुस्लिम की मौतों का अर्थ है। उसमें चौबीसों घंटे मीडिया और लोग खोए रहेंगे। ऐसे में कल्पना करें कि सन् 2050 में भारत के लोग जलवायु परिवर्तनों से कैसे बेमौत मरते हुए होंगे और बावजूद इसके आपसी लड़ाई की कलह कितनी अधिक जानलेवा होगी? क्या मैं गलत हूं?

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