नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून-2019 (सीएए) को लागू कर भाजपा ने लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले हिंदुत्व के तरकश में एक और तीर सजा लिया है। पार्टी की पूरी रणनीति बेरोजगारी, महंगाई और जाति गणना का सवाल खड़ा करने की कोशिश में जुटे विपक्ष को हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की पिच पर उतारने की है। यही कारण है कि राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद-370 के खात्मे और तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने के बाद भाजपा ने इस पिच पर विपक्ष को चित करने के लिए सीएए की गुगली डाल दी है।
सरकार की रणनीति और उम्मीदों के अनुरूप ही इस मामले में विपक्ष की ओर से तीखी प्रतिक्रिया सामने आ रही है। विपक्षी दल सीएए के साथ सरकार की आलोचना कर रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने इसे विभाजनकारी और गोडसे की सोच पर आधारित फैसला बताया है। वहीं, कांग्रेस ने इसे चुनाव से पहले बहुसंख्यकों के ध्रुवीकरण की कोशिश बताया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमृल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने तो इसे पूरी तरह से अस्वीकार्य बताया है। जाहिर तौर पर भाजपा को विपक्ष से ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद थी। भाजपा ने भी इस पर पलटवार करते हुए इसे विपक्ष की हिंदू विरोधी सोच बताई।
हिंदुत्व व राष्ट्रवाद के मुद्दों को चरणबद्ध तरीके से पहनाया अमली जामा
मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में हिंदुत्व और राष्ट्रवाद से जुड़े अहम मुद्दों को ताबड़तोड़, मगर चरणबद्ध तरीके से अमली जामा पहनाया। सत्ता में आते ही पहले साल 2019 के मानसून सत्र में तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाया। फिर इसी सत्र में 5 अगस्त को अचानक जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दशकों पुराने अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया। उसी साल, नवंबर में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राममंदिर के पक्ष में फैसला दिया। इसके महज एक महीने बाद शीतकालीन सत्र में सरकार सीएए पर मुहर लगवाने में कामयाब रही।