नई दिल्ली : तमिलनाडु में सत्ता में आने के बाद द्रविड़ मुनेत्र कषगम ने राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के खिलाफ मोर्चेबंदी में जुट गई है। इस क्रम में राज्य के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम स्टालिन नई रणनीति के साथ आगे बढ़ने की कोशिश करते दिख रहे हैं। कुछ दिन पहले ही स्टालिन ने सामाजिक न्याय मोर्चा बनाने की घोषणा की थी। इस मोर्चा में शामिल होने के लिए उन्होंने बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस समेत 65 राजनीतिक दलों को पत्र लिखा था। राजनीतिक के जानकारों का मानना है कि जब हिंदी बेल्ट की राजनीति हिंदुत्व विचार की ओर कदम बढ़ा चुकी है तो स्टालिन उसके मुकाबले मंडल की राजनीति को धार देना चाहते हैं।
दिल्ली से डीएमके ऑफिस का उद्घाटन
पार्टी प्रमुख और राज्य के सीएम एमके स्टालिन फिलहाल तीन दिवसीय दौरे पर दिल्ली में मौजूद है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने दिल्ली में बने अपनी पार्टी के नए कार्यालय का उद्घाटन किया। इस खास मौके पर उनके साथ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत तमाम विपक्षी नेता मौजूद रहे। उन्होंने पीएम मोदी के अलावा सोनिया गांधी समेत विपक्षी दलों के अन्य नेताओं के साथ मुलाकात की है। खास बात रही कि एमके स्टालिन ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से भी मुलाकात की। इसके साथ ही स्टालिन ने राजधानी के सरकारी स्कूल और मोहल्ला क्लिनिक का भी दौरा किया। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी शुक्रवार को स्टालिन से मुलाकात की।
पिता का सपना करना चाहते हैं पूरा
राजनीतिक पंडितों के अनुसार एमके स्टालिन अपने पिता करुणानिधि का सपना पूरा करना चाहते हैं। करुणानिधि की इच्छा थी कि वे राज्य स्तर की राजनीति से उठकर केंद्रीय राजनीति में आएं। माना जा रहा है कि स्टालिन अब खुद केंद्रीय राजनीति में आना चाहते हैं। दिल्ली में पार्टी कार्यालय और उनकी सक्रियता को इसी दिशा में बढ़ाया कदम माना जा रहा है। तमिलनाडु के राजनीतिक विश्लेषक आर. राजगोपालन का कहना है कि जिस तरह से वीपी सिंह ने मंडल की राजनीति के जरिए केंद्रीय राजनीति में उच्च स्थान प्राप्त किया था, उसी तरह की कोशिश अब स्टालिन कर रहे हैं। डीएमके की पहचान दलितों और पिछड़े वर्गों की पार्टी के रूप में है। स्टालिन की यह कोशिश वक्त के हिसाब से काफी प्रासंगिक और अहम जान पड़ती है।
केंद्र में खाली शून्य को भरने की कोशिश
पिछले चार दशक में वीपी सिंह, कांशी राम, रामविलास पासवान, शरद यादव, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव सामाजिक न्याय की लड़ाई को लेकर राजनीति में चर्चित चेहरे थे। वीपी सिंह, कांशी राम और रामविलास अब है नहीं वहीं, मुलायम सिंह, शरद यादव और लालू यादव राजनीतिक रूप से अधिक सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में केंद्र में एक तरह का खालीपन है। कांशीराम के बाद उनकी उत्तराधिकारी मायावती का राजनीतिक वजूद भी अब उतना प्रभावशाली नहीं रहा है। ऐसे में स्टालिन के पास मौका है कि इस खाली शून्य भरने का। राजगोपालन के अनुसार अगर स्टालिन का यह कदम सफल हो जाता है तो उन्हें सबसे बड़ा यह फायदा होगा कि वे तमिलनाडु की राजनीति से उठकर केंद्र की राजनीति में आ सकते हैं।