स्वामीनाथन अय्यर
सत्ताधारी पार्टी के कुछ दिग्गजों को लगता है कि प्राचीन भारत ने हर चीज पहले की। ताजा दावा है कि पश्चिम से काफी पहले भारत में लोकतंत्र था। इसे हंसी में नहीं उड़ा देना चाहिए। यह कपोल-कल्पना नहीं है, जैसा पहली बार सुनने में मालूम होती है। अक्सर प्राचीन ग्रीस को लोकतंत्र का जनक माना जाता है। लेकिन संभ्रांत ग्रीक पुरुषों को ही वोट डालने का अधिकार था। नागरिक अपने प्रतिनिधि नहीं चुनते थे, उन्हें असेंबली में मौजूद रहना होता था। कम वोटर्स वाले छोटे शहरों के लिए तो यह व्यवस्था ठीक है। उनके यहां चुने हुए शासक होते थे, वे लोकतंत्र के बजाय गणतंत्र थे। बीजेपी इतिहासकारों के अनुसार, वैदिक साहित्य में सभा और संगठन जैसे संस्थानों का जिक्र है। केवल इनके होने भर से लोकतंत्र अस्तित्व में नहीं आ जाता। आखिरकार, सोवियत यूनियन में भी तीन राजनीतिक दल और कई क्षेत्रीय सभाएं थीं लेकिन उसे लोकतंत्र नहीं कहा जा सकता। चुनाव और सभाएं जरूरी हैं लेकिन पर्याप्त शर्तें नहीं हैं।
प्राचीन भारतीय राज्यों में थी ग्रीस जैसी व्यवस्था
ईसा से छह सदी पहले ही, बौद्ध काल में, भारत के भीतर कई राज्यी थे जहां ऐसी सभाओं का राजाओं पर थोड़ा नियंत्रण रहता था। वे प्रशासन में भी दखल देती थीं। कपिलवस्तु के शाक्य हों या रामग्राम के कोलिय या फिर वैशाली की लिच्छावी… इस मुद्दे पर मार्क्सवादी इतिहासकार भी बीजेपी वालों से सहमत दिखते हैं। यह मसला लेफ्ट बनाम राइट का नहीं है। लेकिन न तो प्राचीन ग्रीक और न ही भारतीय गणतंत्रों को आधुनिक विचार में लोकतंत्र कहा जाएगा। भारतीय जाति व्यवस्था स्पष्ट रूप से पदानुक्रमित थी और सभी नागरिकों की समानता को मान्यता नहीं देती थी। कई मामलों में ऊपर जातियों के लोग ही मतदान कर सकते थे, जैसा कि प्राचीन ग्रीस में होता था।
पश्चिमी लोकतंत्रों की असलियत
आज का लोकतंत्र इस विचार पर आधारित है कि सभी मानवों को अपरिहार्य मूल अधिकार मिलने चाहिए। इस विचार का विकास 18वीं सदी में यूरोपीय पुनर्जागरण के दौरान हुआ। ब्रिटेन को ‘संसदों की जननी’ कहा जाता है लेकिन इसकी शुरुआती संसदें चुनिंदा लोगों के लिए थीं। 1932 के ग्रेट रिफॉर्म एक्ट के तहत मिडल-क्लाजस प्रॉपर्टी वालों को वोटिंग का अधिकार मिला। 1867 तक अधिकतर पुरुषों को वोटिंग का अधिकार दे दिया गया था। पूरी तरह से वयस्कग पुरुषों को मता1धिकार मिला 1918 में। ब्रिटिश महिलाओं को वोट डालने के लिए 10 साल और इंतजार करना पड़ा। फ्रांस में महिलाएं 1944 तक वोट नहीं डाल पाती थीं।
भारत पूर्ण स्वतंत्र बना 1947 में, नया संविधान बनाया 1950 में जिसमें सार्वभौमिक मताधिकार दिया गया। यानी भारत दुनिया के सबसे शुरुआती गणतंत्रों में एक होने का दावा कर सकता है, लेकिन शुरुआती लोकतंत्रों में नहीं। भारतीय संविधान को अपनाए जाने के साथ ही भारत लोकतंत्र बना, फ्रांस और अमेरिका में क्रांतियों के बाद। लेकिन भारत यह दावा कर सकता है कि वह पहला देश है जिसने शुरू से सबको वोटिंग का अधिकार दिया। बाकी देशों में लोकतंत्र शुरू हुआ राजशाही के पतन से, फिर एलीट क्लास का राज रहा और बाद में सबको वोटिंग का अधिकार मिला। भारत में ऐसा कुछ नहीं हुआ।
इस मामले में, भारत अमेरिका से भी पहले पूर्ण लोकतंत्र बन गया था। वहां 1965 के सिविल राइट्स एक्ट के बाद ही वोटिंग में यूनिवर्सल कवरेज आई। तब तक भारत तीन आम चुनाव करा चुका था। भारतीय लोकतंत्र में कई खामियां हैं लेकिन यह पश्चिमी देशों से कहीं आगे है।