नई दिल्ली: भारतीय संविधान भले ही पंथनिरपेक्षता की बात करता हो, लेकिन अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण की राजनीति में खास धर्म या पंथ को विशेषधिकार पर विशेषाधिकार दिए जाते हैं। एक ऐसा ही मामला दिल्ली हाई कोर्ट के पास पहुंचा है। हाई कोर्ट में वक्फ कानून के तहत वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा देने संबंधी कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट ने इससे संबंधित जनहित याचिका पर बुधवार को केंद्र सरकार से जवाब मांगा। मुख्य कार्यवाहक न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति विपिन चावला ने वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर जनहित याचिका पर यह नोटिस जारी किया। अदालत ने साथ ही इस मामले में उपाध्याय से कहा कि वह इस मामले में वक्फ बोर्ड को पक्षकार बनाएं।
सिर्फ वक्फ संपत्तियों को विशेषाधिकार क्यों?
उपाध्याय ने अपनी याचिका में अदालत से कहा था कि वक्फ कानून धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है क्योंकि देश में ऐसा और कोई कानून नहीं हैं जो अन्य धर्मों की संपत्तियों पर लागू होता है। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल चेतन शर्मा ने कहा कि याचिका में कुछ प्रश्न उठाए गए हैं। अपनी याचिका में याचिकाकर्ता ने केंद्र को ‘न्यास एवं न्यासियों, परमार्थ संगठनों तथा धार्मिक प्रदाय एवं संस्थानों के लिए एक समान कानून’ बनाने का निर्देश देने का अनुरोध किया है। उपाध्याय ने दावा किया कि वक्फ की संपत्तियों को ‘ऐसा कोई विशेषाधिकार’ नहीं मिल सकता जो गैर-इस्लामिक धार्मिक संगठनों द्वारा संचालित न्यासों एवं परमार्थ संगठनों को नहीं दिया गया है। इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
कई मुद्दों पर मुखर रहते हैं उपाध्याय
अश्विनी उपाध्याय बीजेपी के नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील हैं। वह देश में सामाजिक, राजनीतिक सुधारों को लेकर अदालतो में कई याचिकाएं डाल चुके हैं। उनका कहना है कि देश में तुष्टीकरण की राजनीति संवैधानिक प्रावधानों पर भी हावी हो गई है जिससे कई मामलों में संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। उपाध्याय ने समान शिक्षा का अधिकार से लेकर समान नागरिक संहिता लागू किए जाने तक के कई मुद्दों पर जनहित याचिका दायर की है। उनकी इन याचिकाओं में कई पर सुनवाई भी चल रही है।