प्रकाश मेहरा
संसद पर हमले को 22वीं बरसी पर संसद की सुरक्षा में चूक वाहत चिंताजनक है। सबसे बड़ी बात कि तय लोकसभा में कार्यवाही चल रही थी और पश्चिम बंगाल के भाजपा सांसद खगेन मुर्भु लोकसभा में बोल रहे थे, तभी दर्शक दीर्घा से दो घुसपैठिए सदन में कूद पड़े। कार्यवाही तत्काल स्थगित करनी पड़ी और निडर सांसदों नेही आगे बढ़कर घुसपैठियों को काबू में किया। घुसपैठिए अपने साथ एक द्रव्य लाए थे जिससे उन्होंने पीला धुआं फैला दिया। गनीमत है कि धुआं जहरीला नहीं था, पर यह एक बड़ी सुरक्षा चूक है और सुरक्षा एजेंसियों को विस्तार से जांच करनी चाहिए। संसद में हथियार ले जाना असंभव है, पर जो द्रव्य जूतों में छिपाकर ले जाया गया, क्या उसे जांचने और रोकने की सुविधा सुरक्षा एजेंसियों के पास नहीं थी? क्या संसद में दर्शकों के जूतों की जांच का कोई प्रावधान नहीं है? यह सवाल खड़ा हो गया है कि ऐसी कौन-कौन- -सी चीजें हैं, जिनकी जांच संसद में प्रवेश से पहले नहीं की जाती है?
घुसपैठिए कौन थे, उनका मकसद क्या था, सब कुछ धीर-धीर पता चल जाएगा, मगर हमारी सुरक्षा एजेंसियों के लिए घुसपैठ की एक बड़ी चुनौती है। दुस्साहसी साजिश रचने वालों के नेटवर्क नेटवक की पूरी पड़ताल होनी चाहिए, ताकि ऐसे खतरनाक मनसूबों की कमर हमेशा के लिए टूट जाए। हरसंभव कोण से जांच करने की जरूरत है। हालांकि,इसमें कोई शक नहीं कि राजनेता इस घुसपैठ में भी अपने लिए राजनीति की गुंजाइश खोजने की कोशिश करेंगे। ऐसा होना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण होगा, पर हर तरह के मामले में राजनीति होना अपने देश के लिए कोई नई बात नहीं है। अतः यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह राजनीति के लिए कोई गुंजाइश न छोड़े, समय रहते दूध का दूध और पानी का पानी कर दे। विपक्ष को एक मौका जरूर मिल गया है, क्योंकि दोनों घुसपैठिए एक भाजपा सांसद द्वारा अनुशंसित पास पर दर्शक दीर्घा में पहुंचे थे।
अब तत्काल प्रभाव से दर्शकों के प्रवेश को रोक दिया गया है, मगर यह अस्थायी उपाय ही होना चाहिए। अंततः दर्शकों को पूरी जांच के बाद ही दर्शक दीर्घा में जाने की मंजूरी देनी चाहिए। साथ ही, जूते-चप्पल या कोई भी ऐसा अन्य पदार्थ उनके साथ नहीं होना चाहिए, जिसका दुरुपयोग हमले के लिए हो सकता हो। इसमें कोई शक नहीं कि संसद के लिए सुरक्षा की नई योजना बनानी पड़ेगी। आज भारत जिस मोड़ पर है, वहां वह अपनी सुरक्षा से कोई समझौता नहीं कर सकता। संसद को अगर कोई अवांछित तत्व छूते हुए भी जाता है, तो यह हमारी सुरक्षा एजेंसियों के लिए खतरे की घंटी है। सुरक्षा एजेंसियों और सुरक्षा व्यवस्था को ऐसा चौकस होना चाहिए कि कोई भी अपराधी तत्व ऐसी जुर्रत न कर सके।
बेशक, सुरक्षा एजेंसियों पर हमें पूरा भरोसा रखना होगा, पर अति- आत्मविश्वास कतई उचित नहीं है। ध्यान रहे, अमेरिका-कनाडा में बैठे एक खालिस्तानी आतंकी ने कुछ ही दिनों पहले भारतीय संसद पर हमले की धमकी दी थी। इस धमकी के मद्देनजर सुरक्षा के तमाम संसाधनों को सतर्क कर देना चाहिए था। अफसोस, ऐसे खुराफाती हैं, जो संसद पर हमले के लिए फांसी की सजा पाने वाले आतंकी अफजल गुरु को भी एक अलग नजरिये से देखते हैं। ऐसे गलत लोगों को अपनी पुरानी आदतों से बाज आना चाहिए। साथ ही, सांसदों को भी दर्शक दीर्घा पास के लिए लोगों की सिफारिश करते हुए सचेत रहना होगा। यह दौर पारंपरिक उदारता का नहीं, सतर्क सेवा का है।