नंदकुमार झा ‘कवि’
लेखक, संपादक
नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एण्ड लाइब्रेरी नई दिल्ली के सभागार मेंभारत के मूर्धन्य अर्थशास्त्री एवं लोकप्रिय इतिहासकार श्री संजीव सान्यालद्वारा लिखी गई पुस्तक “रिवोल्यूशनरीज : द अदर स्टोरी ऑफ हाऊ इण्डिया वोन इट्स फ्रीडम का विमोचन सह चर्चा गोष्ठी का शुभारंभ हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्र गीत की सुमधुर पंक्तियों से हुआ जिसे स्वर एवं संगीत दिया थाश्रीमती स्मिता सान्याल एवं इनके छोटे सुपुत्र ने। संगीत इतना अनुपम एवं मर्मस्पर्शी था कि हम सभी के रोंगटे खड़े हो गए। सभागार में अनेकों राजनीति विशारद, पत्रकार, लेखक, राजनेता, समाज सेवी, इतिहासकार एवं शोध छात्रों की गरिमामय उपस्थिति रही। इतिहास के गंभीर विषय पर आधिकारिक तौर पर लिखना श्री संजीव सान्याल जी के लिए कोई नई बात नहीं है । इससे पहले इनकी आधा दर्जन पुस्तकें इतिहास के विविध परिप्रेक्ष्य मेंप्रसिद्धि पा चुकी हैं ।
प्रस्तुत पुस्तक की परिचर्चा के क्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे भारत सरकार केमाननीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने सर्वप्रथम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की पुण्य स्मृतियों को सादर नमन कर अपना संबोधन प्रारंभ किया, “आठ अध्यायों वाली यह पुस्तक इतनी रोचक एवं ज्ञानवर्धक हैकि इतिहास के छात्रों एवं विद्वत् जनों को नई दिशा प्रदान करने में पूर्णतया सक्षम है । प्रत्येक अध्याय एक दूसरे से अंतर्बद्ध है. अतः इसे एक क्रम में ही पढ़ा जा सकता है इसलिए पाठक बिल्कुल इत्मीनान से मनोयोग पूर्वक इस पुस्तक को पढें। इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जिस सशस्त्र क्रांति को असंगठित, व्यक्तिगत एवं आकस्मिक घटनाओं के रुप में अब तक के इतिहासकार वर्णित करते आए हैं उसे यह पुस्तक सिरे से नकारते हुए तथ्य एवं सत्य के आलोक में अत्यंत अनुशासित एवं रोचक शैली में एक सोची समझी रणनीति के अनुरूप लड़ी गई आजादी की लड़ाई सिद्ध करने में पूर्णतया सफल हुई है ।ऐसा मैं और मेरे जैसे अनेक लोग मानते हैं कि इतिहासकारों ने भारत के सशस्त्र क्रांति केबलिदानी वीरों एवं शहादत से भरे जन आन्दोलनों की सदैव उपेक्षा की है और एक पाक्षिक होकर अहिंसक आंदोलन को ही एक मात्र आजादी का कारण माना है, जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है । आजादी कभी खैरात में किसी को नहीं मिली लाखों लोगों ने 1857 के पहलेसे लेकर 1947 तक समग्र देश में तथा विदेश में मोर्चा बंदी कर एक रणनीति के तहत लगातार सशस्त्र क्रांति की उसी का यह परिणाम है कि अहिंसा वादियों के साथअंग्रेजों ने संधि की तथा भारत से भागने के लिए उन्हें विवश होना पड़ा ।“
गृह मंत्री अमित शाह ने यह भी कहा कि पश्चिमी देश हमसे मानवाधिकार की बात कैसे कर सकते हैं ? जो हमें इस विषय पर भाषण देते हैं उन्हें एक बार अंडमान निकोबार का वह काला-पानी का कारा गृह अवश्य दिखाने की आवश्यकता है ताकि उन्हें यह समझ में आ जाए कि क्रूरता एवं पाशविकता की पराकाष्ठा क्या होती है? इसके अतिरिक्त श्री अमित शाह ने इतिहास वेत्ताओ एवं शोध छात्रों से ऐसे ही निष्पक्षता पूर्ण इतिहास को लिखने का आह्वान किया ।परिचर्चा के दूसरे भाग के रुप में डाक्टर समीर सरन के प्रश्नों के उत्तर देते हुए श्री संजीव सान्याल जी ने बतलाया कि विविध आन्दोलनों को शिद्दत से अंजाम देने के कारण भारत के कई प्रान्तों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी । तथा आजादी के बाद भी 1971में पूर्वी बंगाल के निवासियों को निर्वासित होकर बर्बाद होना पड़ा । महाराष्ट्र में ब्राह्मणों के विरुद्ध मुहिम चलाई गई तथा अनेकों हत्याएँ की गईं । गोडसे के छोटे भाई नारायण गोडसे को तथाकथित गाँधी वादियों ने पत्थरों से पीट-पीटकर मार डाला मगर इसकी चर्चा तक नहीं होने दी। किसी सिख धर्मावलंबी ने इंदिरा गाँधी को मारा इस कारणवश हजारों सिखों को 1984 में सामूहिक बर्बरता का विश्व भर में शिकार होना पड़ा । कार्यक्रम के अंत में डाक्टर समीर सरन ने श्री संजीव सान्याल एवं श्रीमती स्मिता सान्याल दोनों का साधुवाद किया तथा इनकी निष्पक्ष एवं निर्भीक राष्ट्र भक्ति की भावना को सराहा।