भारत डोगरा
विश्व में ‘डूमस्डे क्लाक’ अपनी तरह की प्रतीकात्मक घड़ी है जिसकी सुइयों की स्थिति के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया जाता है कि विश्व किसी बड़े संकट की संभावना के कितने नजदीक है।
इस घड़ी का संचालन ‘बुलेटिन ऑफ एटोमिक साइंटिस्ट्स’ नामक वैज्ञानिक संस्थान द्वारा किया जाता है। इसके परामर्शदाताओं में 15 नोबल पुरस्कार विजेता भी हैं। ये सब मिलकर प्रति वर्ष तय करते हैं कि इस वर्ष घड़ी की सुइयों को कहां रखा जाए। इस घड़ी में रात के 12 बजे को धरती पर बहुत बड़े संकट का पर्याय माना गया है। घडी की सुइयां रात के 12 बजे के जितने नजदीक रखी जाएंगी, उतनी ही किसी बड़े संकट से धरती (और उसके लोग व जीव) के संकट की स्थिति मानी जाएगी। 2020-21 में इन सुइयों को (रात के) 12 बजने में 100 सेकेंड पर रखा गया। संकट के प्रतीक 12 बजे के समय से इन सुइयों की इतनी नजदीकी कभी नहीं रही। दूसरे शब्दों में, यह घड़ी दर्शा रही है कि इस समय धरती किसी बहुत बड़े संकट के सबसे अधिक नजदीक है। इस समय यह चर्चा है कि निकट भविष्य में डूमस्डे से दूरी को और कम किया जाएगा क्योंकि 2022 में पर्यावरण व युद्ध के खतरे बढ़ गए हैं। ‘डूमस्डे घड़ी’ के वाषिर्क प्रतिवेदन में इस स्थिति के तीन कारण बताए गए हैं।
पहली वजह यह है कि जलवायु बदलाव के लिए जिम्मेदार जिन ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में 2013-17 के दौरान ठहराव आ गया था उनमें 2018 में फिर वृद्धि दर्ज की गई। जलवायु बदलाव नियंत्रित करने की संभावनाएं समग्र रूप से धूमिल हुई हैं। दूसरी वजह यह है कि परमाणु हथियार नियंत्रित करने के समझौते कमजोर हुए हैं। आईएनएफ समझौते का नवीनीकरण नहीं हो सका। तीसरी वजह यह है कि सूचना तकनीक का बहुत दुरुपयोग हो रहा है जिसका सुरक्षा पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इन तीन कारणों के मिले जुले असर से आज विश्व बहुत बड़े संकट की संभावना के अत्यधिक नजदीक आ गया है, और इस संकट को कम करने के लिए जरूरी कदम तुरंत उठाना जरूरी है।
क्या ‘डूमस्डे घड़ी’ के इस अति महत्त्वपूर्ण संदेश को विश्व नेतृत्व समय रहते समझेगा? हाल के वर्षो में यह निरंतर स्पष्ट होता रहा है कि अब तो धरती की जीवनदायिनी क्षमता ही खतरे में है। जिन कारणों से हजारों वर्षो तक धरती पर बहुत विविधतापूर्ण जीवन पनप सका, वे आधार ही बुरी तरह संकटग्रस्त हो चुके हैं। धरती की जीवनदायिनी क्षमता के संकटग्रस्त होने के अनेक कारण हैं-जलवायु बदलाव व अनेक अन्य गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं, परमाणु हथियार व अन्य महाविनाशक हथियार आदि। इस बारे में तो निश्चित जानकारी मिल रही है कि धरती पर जीवन संकट में है, पर इसे दूर करने के लिए समय पर असरदार कदम कैसे उठाए जाएंगे इस बारे में अभी बहुत अनिश्चित स्थिति है। जो प्रयास हो रहे हैं, वे बहुत अपर्याप्त हैं। उससे कहीं अधिक बड़े प्रयास और बड़े बदलाव चाहिए।
यह प्रयास अमन-शांति, पर्यावरण और जीवन के सभी रूपों की रक्षा, लोकतंत्र, समता और न्याय की परिधि में होने जरूरी हैं। इस सभी मुद्दों पर विश्व के विभिन्न देशों में विभिन्न जन-आंदोलन और जन-अभियान पहले से चल रहे हैं। इनके विभिन्न आयाम हैं। उदाहरण के लिए यदि केवल अमन-शांति के आंदोलनों और हिंसा-विरोधी आंदोलनों और अभियानों की बात करें तो किसी भी देश में इनके विभिन्न आयाम हो सकते हैं। बारुदी सुरंगों या अन्य विशिष्ट छोटे हथियारों के विरुद्ध एक अभियान हो सकता है, तो परमाणु हथियारों जैसे महाविनाशक हथियारों के विरुद्ध एक अलग अभियान। पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने के कई अभियान हो सकते हैं। महिला हिंसा, बाल-हिंसा और घरेलू हिंसा के विरुद्ध कई आंदोलन हो सकते हैं। शिक्षा संस्थानों व कार्यस्थलों पर होने वाली हिंसा के विरुद्ध अभियान हो सकते हैं। एक बड़ी चुनौती यह है कि अमन-शांति के इन सभी जन-अभियानों और आंदोलनों में आपसी एकता बना कर उन्हें बड़ी ताकत बनाया जाए जिसका असर अधिक व्यापक व मजबूत हो। ये सभी शाखाएं एक-दूसरे की पूरक हों, इनकी अमन-शांति के मुद्दों पर व्यापक व समग्र सोच हो, वे अहिंसा की सोच में गहराई तक पहुंच सकें।
जब अमन-शांति की ये सभी धाराएं परमाणु हथियारों को समाप्त करने के बारे में आम सहमति बनाएं तो इस मांग को बहुत बल मिलेगा। दूसरे शब्दों में, अपनी विशिष्ट मांगों के साथ यह सभी अभियान उन मांगों को भी अपनाएं जो धरती पर जीवन को बुरी तरह संकटग्रस्त कर रही समस्याओं के समाधान से जुड़ी हैं। इस तरह किसी भी देश में बहुत व्यापक स्तर पर धरती की रक्षा की मांग उठ सकती है। फिर सभी देशों से मांग उठेगी तो अपने आप विश्व स्तर पर यह मांग बहुत असरदार रूप से उठ पाएगी।
विभिन्न देशों के अमन-शांति के आंदोलनों में आपसी समन्वय हो, एकता हो तो साथ-साथ जोर लगाकर परमाणु हथियारों को समाप्त करने की मांग को वे और भी असरदार ढंग से उठा सकेंगे। यही स्थिति पर्यावरण की रक्षा के आंदोलन की भी है। किसी भी देश में इस आंदोलन के कई अध्याय हो सकते हैं जैसे नदियों के प्रदूषण को कम करना, वायु प्रदूषण को कम करना, प्लास्टिक के प्रदूषण को कम करना आदि। यदि इन विभिन्न अभियानों और आंदोलनों का आपसी समन्वय हो तो इनकी आवाज मजबूत बनेगी। इस ओर भी विशेष ध्यान देना होगा कि जो मुद्दे धरती के जीवन को बुरी तरह संकटग्रस्त करने वाले हैं (जैसे जलवायु बदलाव का मुद्दा) उन मुद्दों को पर्यावरण रक्षा के आंदोलन अपने विशिष्ट मुद्दों के साथ-साथ जोर देकर उठाएं।
इस तरह एक ओर पर्यावरण रक्षा के सभी पक्ष एक-दूसरे की सहायता से मजबूत होंगे तथा दूसरी ओर जलवायु बदलाव जैसे धरती को संकटग्रस्त करने वाले मुद्दों को कहीं अधिक व्यापक समर्थन मिलेगा। यदि लगभग सभी देशों में ऐसे प्रयास एक साथ हों तो जलवायु बदलाव जैसे संकट के संतोषजनक समाधान की मांग विश्व स्तर पर बहुत असरदार ढंग से उभर सकेगी। तिस पर यदि इन सभी देशों के पर्यावरण आंदोलनों में साझी कार्यवाही के लिए जरूरी सहयोग हो जाए तो वे एक साथ असरदार ढंग से विश्व स्तर पर आवाज बुलंद कर सकेंगे।