अजय दीक्षित
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर अचानक जल उठा है। एक आदिवासी समुदाय दूसरे अन्तर्जातीय वर्ग को मारने-काटने पर आमादा है। मैतेई और कुकी, नगा समुदाय सनातन दुश्मन रहे हैं, जबकि वे मणिपुर के ही निवासी और नागरिक हैं। हालात इतने उबल चुके थे कि करीब 9000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर या शिविरों में भेजना पड़ा। कर्फ्यू लगा है, धारा 144 लागू है और इंटरनेट-मोबाइल बेमियादी तौर पर बंद हैं। सेना, असम राइफल्स और स्थानीय पुलिस के हजारों जवान तैनात किए गए हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय को पत्र लिख कर वायुसेना की सेवाएं मांगी हैं, ताकि विभिन्न केंद्रों से अर्द्धसैन्य बलों के जवानों को एयरलिफ्ट कर मणिपर के जलते – उबलते जिलों तक पहुंचाया जा सके। सबसे महत्वपूर्ण और गंभीर घोषणा राज्यपाल ने की है कि दंगाइयों को देखते ही गोली मार दी जाए।.. यह बेहद असामान्य स्थिति है।
मणिपुर निवासी, छह बार की विश्व चैम्पियन मुक्केबाज एवं राज्यसभा सांसद मैरी कॉम को, सोशल मीडिया के जरिए, प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को गुहार लगानी पड़ी है कि मेरा राज्य मणिपुर जल रहा है। कृपा करके इसे बचा लें और शांति बहाल करें।’ संवेदनशील और चिंतित पक्ष यह है कि मणिपुर से म्यांमार की सरहद लगती है और वहां भी हालात बेहद हिंसक हैं। हालात आग में घी का काम कर सकते हैं। दरअसल मणिपुर उच्च न्यायालय ने हाल ही में निर्देशात्मक निर्णय सुनाया था कि राज्य सरकार मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर विचार करे और भारत सरकार को अनुशंसा भी भेजे। यदि ऐसा कोई निर्णय करना है और जनजाति में किसी समुदाय को शामिल करना है, तो राष्ट्रीय आयोग और केंद्रीय कैबिनेट ही फैसला ले सकते हैं। मामला संसद में भी विचारार्थ रखा जा सकता है। अन्य आदिवासी समुदायों ने उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया है, नतीजतन मणिपुर एकदम धू-धू कर जलने लगा है। आंदोलित आदिवासियों की आशंका है कि मैतेई उनके अधिकारों, आरक्षण, भूमि और संसाधनों पर कब्जा कर सकते हैं, क्योंकि वे अपेक्षाकृत सम्पन्न, विकसित और ताकतवर हैं।
राज्य की करीब 38 लाख आबादी में करीब 53 फीसदी मैतेई हैं। इंफाल घाटी मैतेई बहुल है। हालांकि मैतेई राज्य के 10 फीसदी भू-भाग में ही बसे हैं। नगा, कुकी आदिवासी समुदाय शेष 90 फीसदी क्षेत्रफल में रहते हैं, लेकिन उनकी आबादी कम है। बीते साल अगस्त में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह की सरकार ने नगा और कुकी जनजाति को ‘घुसपैठिया’ करार देते हुए राज्य के वन क्षेत्र से निकालने के आदेश दिए थे। नगा, कुकी नाराज और आन्दोलित थे। मैतेई बुनियादी तौर पर हिन्दू हैं, जबकि अधिकांश नगा और कुकी ईसाई धर्म को मानने वाले हैं। मैतेई अपना पक्ष रखते आए हैं कि भारत में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान उन्हें मुख्य आदिवासी समुदाय माना जाता था। उन्हें ‘हिंदू आदिवासी’ भी माना गया, लेकिन 1949 में भारतीय संघ में मणिपुर का विलय हुआ और 1950 में मैतेई अपनी ऐतिहासिक पहचान, संस्कृति, भाषा की रक्षा करने के मद्देनजर एसटी का दर्जा मांग रहे हैं। यह उनका संवैधानिक हक भी है। वे बार-बार स्पष्ट कर रहे हैं कि उन्हें दूसरों के अधिकार और संसाधन नहीं चाहिए। वे अपनी ही जमीन पर पराए हो गए हैं, जबकि वे सबसे प्राचीन आदिवासी हैं। दूसरा पक्ष इसका विरोध कर रहा है और जुलूस आदि के आयोजन किए जा रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ज्ञापन भी भेजा है कि मैतेई की मांग गलत है। बहरहाल, मणिपुर की आग कब शांत होगी, यह देखना अभी शेष है।