नई दिल्ली: बांग्लादेश में अगस्त महीने में सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए। इसमें सैकड़ो लोगों की जान गई। विरोध प्रदर्शन में सबसे ज्यादा प्रभावित वहां पर रह रहे अल्पसंख्यक हिंदू हुए। हालांकि अब संयुक्त राष्ट्र ने बांग्लादेश में मारे गए अल्पसंख्यकों की जांच और उनकी सुरक्षा को लेकर आग्रह किया है। संयुक्त राष्ट्र के ह्यूमन राइट्स कमिश्नर वोल्कर तुर्क ने जांच को जरूरत बताया है।
जांच जरूरी है- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद
वोल्कर तुर्क ने कहा कि एक समावेशी दृष्टिकोण, जहां लिंग, वर्ग, जाति, राजनीतिक विचारधारा, पहचान या धर्म से परे हर आवाज सुनी जाती है, वहां पर इसी दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए जांच काफी महत्वपूर्ण है। वोल्कर तुर्क बांग्लादेश की दो दिवसीय यात्रा पर थे। उन्होंने अस्पतालों का भी दौरा किया और स्थिति को देखा।
इसके बाद वोल्कर तुर्क ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस से भी मुलाकात की। संयुक्त राष्ट्र ने हिंसा में हत्याओं की जांच के लिए एक फैक्ट फाइंडिंग टीम को भी बांग्लादेश भेजा है। यह टीम हत्याओं की जांच करेगी।
बता दें कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश में शांति व्यवस्था स्थापित करने की कोशिश कर रही है। हालांकि उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जब से शेख हसीना ने बांग्लादेश छोड़ा, उसके बाद से हिंदुओं पर हमले तेज हो गए। भारत ने भी बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं पर अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसको लेकर खुद मोहम्मद यूनुस से बात की थी। हालांकि अब संयुक्त राष्ट्र ने भी इस ओर ध्यान दिया है और माना जा रहा है कि वहां पर हिंदुओं पर हुए जुल्म के खिलाफ कार्यवाही होगी।
मुश्किल में बांग्लादेशी हिंदू
बता दें कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय एक नई तरह की मुश्किल का सामना कर रहा है। अब उनके साथ भेदभाव और धमकियों का सिलसिला शुरू हो गया है। कट्टरपंथी संगठन उन्हें सामाजिक बहिष्कार, बदनामी और अन्यायपूर्ण रवैये के जरिए निशाना बना रहे हैं। कट्टरपंथी संगठनों ने हाल ही में हिंदुओं को बदनाम करने के लिए कथित तौर पर नया अभियान शुरू कर दिया। इस अभियान का नाम – ‘लव ट्रैप’ है। इस अभियान में वे झूठा आरोप लगाते हुए अफवाह फैला रहे हैं कि हिंदू पुरुष मुस्लिम महिलाओं को लुभाकर उनका धर्म परिवर्तन करा रहे हैं।
इंडिया टूडे की खबर के मुताबिक सरकारी नौकरियों में हिंदू कर्मचारियों के खिलाफ बर्खास्तगी और जबरन इस्तीफा देने की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। विशेष रूप से विश्वविद्यालयों में हिंदू प्रोफेसरों और शिक्षकों को नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है।