अजीत द्विवेदी
आम आदमी पार्टी हमेशा अपनी अजीबोगरीब राजनीतिक पहलों से देश के लोगों को चौंकाती रहती है। उसके नेताओं की कथनी और करनी में अक्सर बहुत सामंजस्य या निरंतरता नहीं होती है, बल्कि बहुत ज्यादा विरोधाभास होता है। अगर अभी के घटनाक्रम को देखें तो ऐसा लग रहा है कि बिना विचारधारा वाली इस पार्टी के लिए राजनीति का मतलब सिर्फ चुनाव है। एप्पल टीवी के अत्यंत मशहूर शो ‘टेड लासो’ का एक कैरेक्टर बार बार कहता है ‘फुटबॉल इज लाइफ’ वैसे ही लग रहा है कि अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए ‘इलेक्शन इज लाइफ’ यानी चुनाव ही जिंदगी है। पार्टी को हर चुनाव लडऩा है और हर जगह चुनाव लडऩा है चाहे उसका नतीजा कुछ भी क्यों न हो। आम आदमी पार्टी जमानत जब्त कराने का रिकॉर्ड बना चुकी है। फिर भी उसे हर चुनाव लडऩा है और कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को कमजोर लगाना है। तभी भारतीय जनता पार्टी से लडऩे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में अरविंद केजरीवाल या पार्टी के दूसरे नेताओं के अनर्गल प्रलाप पर यकीन करने में मुश्किल होती है।
यह समझना मुश्किल होता है कि आम आदमी पार्टी का भाजपा और मोदी विरोध वैचारिक है या निजी राजनीतिक आकांक्षा की पूर्ति का माध्यम है? इस सवाल का कुछ हद तक जवाब पार्टी के एक महत्वपूर्ण नेता और चुनाव रणनीतिकार संदीप पाठक ने दिया है। संदीप पाठक पहले प्रशांत किशोर के साथ रहे हैं और उन्होंने पिछले साल पंजाब विधानसभा चुनाव की रणनीति संभाली थी। वहां जीत के बाद केजरीवाल ने उनको राज्यसभा में भेजा और आगे के सभी चुनावों की कमान उनको सौंपी। उन्होंने आगे के लोकसभा चुनावों में अकेले लडऩे का ऐलान करते हुए कहा है कि, ‘आम आदमी पार्टी समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ है, लेकिन चुनाव अलग चीज है’। यानी वह भाजपा विरोधी पार्टियों के साथ रहेगी लेकिन उनके साथ मिल कर चुनाव नहीं लड़ेगी। वह अकेले और लगभग सभी जगह चुनाव लड़ेगी। इसका मतलब है कि वह जिस विचारधारा को मानती है उस पर अमल नहीं करेगी! सोचें, आप जिस विचारधारा में यकीन करते हैं, उस पर अमल नहीं करेंगे तो फिर विचारधारा को मानने का क्या मतलब है?
अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के दूसरे नेता भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कम पढ़ा-लिखा बता रहे हैं। केजरीवाल विधानसभा में खड़े होकर ‘चौथी पास राजा की कहानी’ सुना रहे हैं। दावा कर रहे हैं कि कम पढ़ा लिखा होने की वजह से अधिकारी प्रधानमंत्री से किसी भी फाइल पर दस्तखत करा ले रहे हैं। उनका कहना है कि अगर प्रधानमंत्री पढ़ा लिखा होता तो नोटबंदी की फाइल पर दस्तखत नहीं करता। सोचें, अगर आम आदमी पार्टी को लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी का शासन देश के लिए ठीक नहीं है, इससे देश में आर्थिक बदहाली आई है या इससे लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा हुआ है तो एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर उसकाआम आदमी पार्टी भाजपा विरोध की साझा राजनीति को कमजोर करने का काम कर रही है। कम से कम अभी ऐसा लग रहा है। लोकसभा चुनाव में एक साल का समय है और हो सकता है कि आगे आम आदमी पार्टी का नजरिया बदले।
कांग्रेस के प्रति सद्भाव दिखाने और कांग्रेस का सद्भाव हासिल करने के बाद भी आम आदमी पार्टी अपनी इस बुनियादी राजनीतिक रणनीति से गाइड हो रही है कि उसे कांग्रेस की जगह लेनी है और वह जगह तभी हासिल होगी, जब कांग्रेस कमजोर होगी। सो, योजनाबद्ध तरीके से कांग्रेस को कमजोर करने की राजनीति हो रही है। इसके लिए बड़ी होशियारी से आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल कढ़ा दी है और विपक्षी पार्टियों के साथ जुड़ कर साझा अभियान में शामिल होने का मैसेज दे रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस को कमजोर करके उसकी संभावना समाप्त करने और अपना रास्ता बनाने में लगी है।
र उतारे हैं तो साथ ही यह भी ऐलान किया है कि वह राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जल्दी अपना चुनाव अभियान शुरू करेगी। इन तीनों राज्यों में साल के अंत में यानी नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होना है लेकिन पार्टी ने कहा है कि वह जून से इन राज्यों में अपना चुनाव अभियान शुरू करेगी। पार्टी के चुनाव रणनीतिकार संदीप पाठक इन तीनों राज्यों में पार्टी की चुनावी योजना पर काम कर रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन तीनों राज्यों में आम आदमी पार्टी बड़े अंतर से तीसरे नंबर की पार्टी रहेगी। केजरीवाल भी इस बात को जानते हैं लेकिन दिल्ली, पंजाब, गोवा और गुजरात के अनुभव ने उनको सिखाया है कि पहली लड़ाई हार कर या आंशिक रूप से जीत हासिल करके भी आगे की लड़ाइयां जीती जा सकती हैं।
ध्यान रहे दिल्ली में अपने पहले चुनाव यानी 2013 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी 28 सीट के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और उसे 29.5 फीसदी वोट मिले थे। कांग्रेस तब भी एक बड़ी ताकत थी। उसे सिर्फ आठ ही सीट मिली थी लेकिन वोट 24.6 फीसदी मिले थे। भाजपा 33 फीसदी वोट और 32 सीट के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी। लेकिन 2015 के दूसरे चुनाव में कांग्रेस का वोट घट कर 9.7 फीसदी रह गया और आप का वोट बढ़ कर 54.3 फीसदी हो गया। कांग्रेस के साथ साथ बसपा जैसी दूसरी पार्टियों के भी वोट ने दिल्ली की 2015 वाली कहानी दोहरा दी। प्रचंड बहुमत के साथ उसने सरकार बनाई और कांग्रेस, अकाली दल, बसपा सहित सभी पार्टिय 64 हजार वोट मिले थे। आधे फीसदी से भी कम। लेकिन दूसरे चुनाव यानी 2022 में उसे 13 फीसदी वोट मिला और भाजपा का 43 फीस कर रही है।
तभी सवाल है कि अगर वह कांग्रेस से तालमेल कर लेती है या उसके साथ मिल कर लडऩे के लिए राजी हो जाती है तो वह गुजरात या गोवा या किसी भी दूसरे राज्य में अपनी राजनीति कैसे कर पाएगी? दिल्ली और पंजाब की कहानी दूसरे राज्यों में दोहराने के लिए जरूरी है कि वह भाजपा से लड़ती दिखे और कांग्रेस को कमजोर करे। पहला धक्का कांग्रेस को कमजोर करने का होगा और दूसरा धक्का उसके रिप्लेस करने का होगा। इसी योजना के तहत आम आदमी पार्टी इस साल होने वाले राज्यों के चुनाव लड़ेगी। वह कांग्रेस को कमजोर करने में कामयाब हो गई यानी वोट काट कर कांग्रेस को नहीं जीतने दिया तो उसको दो फायदे होंगे। पहला फायदा तो यह होगा कि लोकसभा चुनाव में तालमेल के लिए वह कांग्रेस को सरेंडर करने के लिए राजी कर पाएगी। दूसरी पार्टियां भी कांग्रेस पर दबाव डालेंगी कि वह केजरीवाल की पार्टी के लिए सीट छोड़े। ध्यान रहे केजरीवाल को किसी भी प्रादेशिक क्षत्रप के असर वाले राज्य में लडऩे नहीं जाना है। उनको कांग्रेस के असर वाले राज्यों में ही लडऩा है। आम आदमी पार्टी को दूसरा फायदा यह होगा कि इन राज्यों के अगले चुनाव में वह कांग्रेस को रिप्लेस करके बड़ी ताकत के तौर पर उभर सकती है।