झारखंड में कांग्रेस पार्टी के समर्थन से झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार चल रही है। कांग्रेस के 18 विधायकों के समर्थन से हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने हैं। लेकिन हेमंत कांग्रेस पार्टी को दो कौड़ी का भाव देते हैं। वे किसी भी मसले पर कांग्रेस की परवाह नहीं करते हैं और इसके बावजूद कांग्रेस कुछ नहीं कर पाती है। हाल के दो मामलों में जेएमएम ने कांग्रेस को ठेंगा दिखाया। राज्यसभा चुनाव में इस बार एक सीट पर कांग्रेस की दावेदारी थी। पिछली बार शिबू सोरेन राज्यसभा गए थे तो इस बार कांग्रेस को सीट मिलनी थी। तभी खुद सोनिया गांधी ने बुला कर हेमंत सोरेन से बात की लेकिन हेमंत ने इस बार भी अपना उम्मीदवार उतारा और महुआ माझी को राज्यसभा भेज दिया।
दूसरा मामला राष्ट्रपति चुनाव का है। कांग्रेस और समूचे विपक्ष ने झारखंड के ही नेता यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया लेकिन हेमंत ने उनका समर्थन करने की बजाय दिल्ली आकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की और एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन कर दिया। यह फालतू का तर्क है कि द्रौपदी मुर्मू आदिवासी हैं इसलिए हेमंत ने उनका साथ दिया। इससे पहले 2012 में भी आदिवासी नेता पीए संगमा चुनाव लड़े थे और उस समय हेमंत एनडीए में भी थे लेकिन उन्होंने संगमा की बजाय यूपीए के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था।
सो, राज्यसभा और राष्ट्रपति चुनाव में जेएमएम ने कांग्रेस को ठेंगा दिखाया। राज्यसभा चुनाव में तो पार्टी की सर्वोच्च नेता का अपमान किया। इसके बावजूद कांग्रेस की मजबूरी है जेएमएम के साथ रहने की। अगर कांग्रेस समर्थन वापस करे तो सरकार गिर जाएगी। लेकिन तब राष्ट्रपति शासन लगेगा या तोड़-फोड़ करके भाजपा सरकार बनाएगी। दोनों ही स्थितियों में कांग्रेस के प्रति सभी विपक्षी पार्टियों में गलत धारणा बनेगी। कांग्रेस की दूसरी मजबूरी यह है कि उसकी पार्टी के कई विधायक कांग्रेस की बजाय जेएमएम के करीब हैं और कहा जा रहा है कि अगली बार जेएमएम की टिकट से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस उन पर ज्यादा दबाव भी नहीं डाल सकती है।