Ajay Setia
लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी खेमे में अटकलें लग रही हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच विधानसभा चुनावों के साथ ही हरियाणा और महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव और लोकसभा चुनाव करवाने की तैयारी कर रहे हैं| विपक्ष के नेताओं की इस आशंका का कारण यह है कि भाजपा नेताओं की गतिविधियां अचानक बढ़ गई हैं| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने अमेरिका और मिस्र दौरे से लौटने के बाद कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं। प्रधानमंत्री आवास पर मीटिंगों का सिलसिला शुरू हो चुका है, 28 जून को उन्होंने पार्टी संगठन और अपने मंत्रियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर कई बैठकें कीं| इन सभी बैठकों में अमित शाह भी मौजूद थे, जो भाजपा के चुनावी रणनीतिकार हैं। कुछ बैठकों में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे|
पिछले एक हफ्ते में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के विभिन्न राज्यों में दौरे और रैलियां भी बढ़ गई हैं, जो दर्शाती हैं कि भाजपा की चुनाव मशीनरी सक्रिय हो गई है| अगर यह सक्रियता सिर्फ चुनावी राज्यों में होती तो विपक्ष को ऐसा अंदेशा नहीं होता, लेकिन भाजपा के नेताओं के दौरे बिहार और उत्तर प्रदेश में भी बढ़ गए हैं|
इधर पिछले कुछ दिनों से केन्द्रीय मंत्रियों के भाजपा मुख्यालय में दौरे भी बढ़ गए हैं। वित्त मंत्री सीतारमण, कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी और मीनाक्षी लेखी तो अक्सर पार्टी कार्यालय में आती रहती हैं, लेकिन पिछले एक हफ्ते में ऐसे ऐसे मंत्री भाजपा कार्यालय में दिखाई दिए, जिन्हें कभी पहले देखा नहीं गया था| अब इसमें विश्व हिन्दू परिषद की ओर से 9 जुलाई को अयोध्या में बन रहे श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर में दिल्ली से मीडिया को ले जाया जाना भी जुड़ गया है|
विपक्ष के नेताओं के दिमाग में जल्द चुनाव की आशंका मोदी विरोधी यूट्यूब चैनलों ने डाली है, जिन्होंने जून के शुरू में ही जल्द चुनावों की आशंका व्यक्त करते हुए रिटायर्ड पत्रकारों के साथ डिस्कशन शुरू कर दिया था| उनकी आशंका का एक आधार यह भी होता था कि भाजपा राहुल गांधी के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है, इसलिए वह जल्द चुनाव करवा देना चाहती है, ताकि कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल तैयारियां न कर सकें|
इसके बाद 14 जून को नीतीश कुमार ने दिसंबर में चुनाव करवाने की आशंका व्यक्त की थी, जब उन्होंने बिहार के ग्रामीण कार्य विभाग के कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आप लोग पेंडिग कामों को जल्दी निपटाईए क्योंकि यह जरूरी नहीं कि लोकसभा चुनाव 2024 में हों, इस साल दिसंबर में भी हो सकते हैं| कांग्रेस ने नीतीश कुमार के जरिए इस आशंका को मोदी विरोधी विपक्षी दलों को डराने के लिए इस्तेमाल किया था, ताकि उन्हें जल्द बातचीत की टेबल पर लाया जा सके| क्योंकि कुछ विपक्षी दलों के इंकार करने के कारण 12 जून की बैठक टल गई थी|
23 जून को हुई बैठक में भी जल्द चुनाव की आशंका व्यक्त की गई थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक की हार के बाद 5 विधानसभाओं के चुनावों के साथ लोकसभा चुनाव करवा सकते हैं, ताकि इन विधानसभाओं में मोदी फेक्टर का लाभ उठाया जा सके| पांच जुलाई को जब राष्ट्रवादी कांग्रेस टूट रही थी, तब शरद पवार के पोते रोहित पवार ने तो यह दावे के साथ कहा कि लोकसभा चुनाव दिसंबर में हो जाएंगे|
भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों की यही समस्या है कि वह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को नहीं समझते| नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा हमेशा चुनावी रणनीति बनाने में लगी रहती है| जबसे नरेंद्र मोदी ने केन्द्रीय राजनीति में कदम रखा है, भाजपा 24 घंटे सक्रिय रहने वाली पार्टी बन गई है| “प्रवास” और “बैठक” भाजपा की डिक्शनरी के प्रमुख शब्द हैं| आप किसी भी अन्य राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष के इतने दौरे नहीं देखते होंगे, जितने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के दौरे होते हैं| भाजपा के संगठन मंत्रियों के हर महीने दौरे तय होते हैं|
दूसरी तरफ प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस में प्रादेशिक नेताओं को दिल्ली तलब किया जाता है, कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता अगर कहीं दौरे करते भी हैं तो वहां विभिन्न स्तर की बैठकें नहीं होती, जैसी भाजपा के अध्यक्ष, संगठन महामंत्री और प्रभारी करते हैं| भाजपा की देखादेखी कांग्रेस ने भी संगठन महामंत्री का पद सृजित किया है, लेकिन कांग्रेस का संगठन महामंत्री हमेशा राहुल गांधी के साथ ही दौरे पर रहता है|
भाजपा की कार्यशैली को नहीं समझने वालों को ही लग रहा है कि लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं| जबकि असलियत यह है कि नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल के एक एक दिन का भरपूर इस्तेमाल करेंगे| भाजपा की देश भर में हो रही रैलियों का कारण मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के कारण चुनावी साल में सरकार की उपलब्धियों का प्रचार करने के लिए कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना मात्र है|
नरेंद्र मोदी शीतकालीन सत्र में कॉमन सिविल कोड पास करवाने और जनवरी 2024 में श्रीरामजन्मभूमि मन्दिर का शिलान्यास करने के बाद अप्रेल 2024 में ही लोकसभा चुनाव करवाएंगे। हां, तब आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के साथ साथ हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभाओं के चुनाव हो सकते हैं|
विपक्षी दल जल्द चुनाव की अफवाहें उड़ा कर अपना ही नुकसान कर रहे हैं| कांग्रेस यह समझती है कि इससे क्षेत्रीय दलों में हड़बड़ी मचेगी और वे कांग्रेस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए विपक्षी एकता के लिए तैयार हो जाएंगे| लेकिन ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा| अगर क्षेत्रीय दलों पर कांग्रेस और नीतीश कुमार की उड़ाई अफवाहों का असर होता तो 23 जून की बैठक में सीटों के बंटवारे का फार्मूला तय होता, या कम से कम बात तो शुरू होती, लेकिन किसी ने भी सीटों के बंटवारे पर बात नहीं की|
इसके बावजूद कांग्रेस ने पर्दे के पीछे अन्य विपक्षी दलों के प्रभाव वाले राज्यों में 25 प्रतिशत सीटों की मांग करना शुरू कर दिया है| जैसे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव 80 में से 20 सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ें, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी 42 में से 10 सीटें छोड़ें, बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव 40 में से दस सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ें| नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव तो कांग्रेस को 10 सीटें देने को तैयार है, लेकिन ममता बनर्जी और अखिलेश यादव बिलकुल तैयार नहीं हैं|
ममता बनर्जी अगर बंगाल में कांग्रेस के लिए दस सीटें छोड़ भी दें, तो भी भाजपा के मुकाबले एक उम्मीदवार खड़ा नहीं हो सकता, क्योंकि वहां प्रमुख विपक्षी दल सीपीएम के लिए ममता बनर्जी एक भी सीट छोड़ने को तैयार नहीं, जबकि 23 जून की बैठक में ममता के साथ साथ सीपीएम और सीपीआई के नेता भी मौजूद थे| इसी तरह कम्युनिस्ट पार्टी केरल में कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं करना चाहती|
दूसरी तरफ कांग्रेस असम, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में किसी अन्य विपक्षी दल के लिए सीट छोड़ने को तैयार नहीं| 23 जून की बैठक में शामिल हुए दो बड़े नेता विपक्षी दल एकता से बाहर हो चुके हैं। आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविन्द केजरीवाल तो बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में भी शामिल नहीं हुए थे, उसके बाद वह कांग्रेस के दावे वाले राजस्थान और मध्यप्रदेश में बड़ी रैलियां कर चुके हैं| वहीं बैठक में शरद पवार के साथ मौजूद राष्ट्रवादी कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल ने विपक्षी खेमे से बाहर निकल कर एनसीपी के एनडीए में शामिल होने की घोषणा कर दी है|
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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।