हरिशंकर व्यास
सबसे बड़ी बात इंसान का बदलना है। चाहे वह महामानव के भाषण सुन कर बदला या टेलीविजन चैनलों और सोशल मीडिया में चल रहे प्रवचनों को सुन कर बदला या मीडिया की खबरों और वहां लगातार चलने वाले हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव से बदला या झूठे प्रचार से बदला लेकिन भारत का इंसान बदल गया है। उसके सरोकार बदल गए। उसकी प्राथमिकताएं बदल गईं। आठ-दस साल पहले जो इंसान हर बात पर अपना दिमाग लगाता था, अपने हित की चिंता करता था, अपने बच्चों के भविष्य की चिंता करता था, महंगाई की चिंता में दुखी और निराश होता था, रोजगार के लिए जोर लगाता था, सरकारों को निकम्मी बता कर उनको बदलने के संकल्प करता था, भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में शामिल होता था, इंडिया अगेंस्ट करप्शन के नारे लगाता था, निर्भया कांड में सडक़ों पर उतर कर इंडिया गेट घेर लेता था या राष्ट्रपति भवन के लौहद्वार को खडक़ाता था, आज वह इंसान कहां है?
आज वह इंसान घरों में बैठ कर व्हाट्सएप और ट्विटर के प्रचार से या टेलीविजन चैनलों की झूठी और आधी-अधूरी खबरों से यह मुगालता बनाए बैठा है कि सारी समस्याएं समाप्त हो गईं। असल में उसकी कोई समस्या समाप्त नहीं हुई है। किसी की कोई समस्या समाप्त नहीं हुई है, बल्कि समस्याएं बदल दी गई हैं। लोगों को समझा दिया गया है कि गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, कानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार आदि कोई समस्या नहीं है। असली समस्या धर्म की है। उसे दूर कर लिया तो सारी समस्याएं खुद ब खुद छूमंतर हो जाएंगी। इसलिए हर जगह मस्जिदों में शिवलिंग तलाशे जा रहे हैं या मध्य काल में बनी हर इमारत या हर ढांचे को हिंदू मंदिर साबित करने का प्रयास किया जा रहा है। दिल्ली सल्तनत और मुगल काम में बनी इमारतों में भजन कीर्तन की इजाजत मांगी जा रही है और इसके लिए अदालतों में याचिका लगाई जा रही है।
देश के ज्यादातर स्कूलों और कॉलेज में क्षमता से दोगुने से ज्यादा छात्र हैं और क्षमता के आधे से कम शिक्षक हैं लेकिन यह समस्या नहीं है। समस्या यह है कि कोई छात्रा हिजाब पहन कर क्लास में नहीं आनी चाहिए। हिजाब के विवाद में एक राज्य में महीनों तक स्कूल-कॉलेज बंद रहे या पढ़ाई प्रभावित हुई। लेकिन किसी हिंदू माता-पिता ने यह सरोकार नहीं दिखाया कि क्यों हिजाब के नाम पर बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। कोरोना की वजह से दुनिया में कहीं भी उतने समय तक स्कूल-कॉलेज बंद नहीं रहे, जितने समय तक भारत में बंद रहे। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने कैंसर की दवा खोज ली और भारत के स्कूल-कॉलेजों में छात्र हिजाब के मसले पर आंदोलन कर रहे हैं। देश की सबसे नामी यूनिवर्सिटी में पिछले दिनों इस बात पर आंदोलन हुआ कि छात्रावास में मांसाहारी खाना बने या नहीं बने।
देश में 70 फीसदी आबादी यानी करीब 82 करोड़ लोग पांच किलो अनाज पर पल रहे हैं। कुपोषण और भुखमरी के वैश्विक इंडेक्स में भारत लगातार नीचे जा रहा है। लेकिन समस्या यह नहीं है समस्या यह है कि हलाल मीट नहीं बिकना चाहिए। एक तरफ गोवा और पूर्वोत्तर में भाजपा ने गौमांस की बिक्री का समर्थन करने वाली पार्टियों के साथ मिल कर सरकार चला रही है और दूसरी ओर समूचे उत्तर भारत में लोगों के फ्रीज तक की तलाशी ली जा रही है उसमें गोमांस तो नहीं है। भारत के सभी नागरिकों को पक्का घर देने की समय सीमा अगले दो महीने में समाप्त होने वाली है लेकिन सरकार इस लक्ष्य को पूरा करने से कोसों दूर है पर वह भी समस्या नहीं है। लोगों को छत मुहैया कराने की बजाय सरकारें बिना कानूनी कार्रवाई के, आरोपों के आधार पर लोगों के घरों पर बुलडोजर चलवा रही है। आवास की समस्या का समाधान इसी में देख लिया गया है। किसी जमाने में लोग कहते थे कि आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को जिताएंगे। आज भी वहीं नारा है। राशन की लाइन में लग कर पांच किलो अनाज लेंगे लेकिन हिंदू धर्म का कथित गौरव वापस बहाल कराएंगे।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ सामान्य इंसान ही बदला है। खास इंसान भी बदल गया है। पेट्रोल की कीमत 70 रुपए प्रति लीटर पहुंचने पर ट्विट करके देश भर के लोगों को साइकिल निकालने की नसीहत देने वाले महानायक से लेकर बॉलीवुड के खिलाड़ी-खेर सब चुप हैं। सब इसे देश हित में मान रहे हैं। अब कोई कीमतों को लेकर ट्विट नहीं कर रहा है। पहले डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत गिरती थी और डॉलर 62-63 रुपए का होता था देश की इज्जत गिरती थी लेकिन अब एक डॉलर की कीमत 78 रुपए के करीब है और इससे देश की इज्जत बढ़ रही है। अब महंगाई डायन नहीं है। वह शेर पालने की कीमत है, जिसे सहर्ष चुकाया जाएगा। असल में देश के करोड़ों लोगों के दिमाग में यह बात बैठा दी गई है कि एक बार सांस्कृतिक और धार्मिक पुनर्जागरण हो गया और खोया हुआ सांस्कृतिक व धार्मिक गौरव हासिल हो गया तो उसके बाद बाकी चीजें अपने आप हासिल हो जाएंगी। इसलिए पहला लक्ष्य वह खोया हुआ धार्मिक व सांस्कृतिक गौरव हासिल करना है, जो आठ सौ साल के मुस्लिम शासन में समाप्त कर दिया गया या समाप्त करने का प्रयास हुआ। ऐसी स्थिति में किसी तर्कसंगत बात के लिए जगह नहीं बचती है।