प्रकाश मेहरा
नई दिल्ली। लोकतंत्र की एक बड़ी खूबी है कि उसमें बहुत रोमांच छिपा होता है। पक्ष हो या विपक्ष, जनमानस किसी को भी आश्वस्त नहीं होने देता है। जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए हैं और जिन चार राज्यों में मतों की गिनती हुई है, उनमें से किसी में भी न भाजपा पूरी तरह आश्वस्त थी और न कांग्रेस को जीत का पूरा विश्वास था। अब नतीजे आ गए है और मध्य प्रदेश में भाजपा को सबसे बड़ी जीत मिली है, जबकि राजस्थान ने पांच-पांच साल पर सरकार बदलने की परंपरा का पालन करते हुए भाजपा पर भरोसा जताया है।
मध्य प्रदेश और राजस्थान, दोनों ही देश के बड़े राज्य हैं और दोनों का ही भारतीय राजनीति में गहरा महत्व है। इन दोनों राज्यों के नतीजों से कांग्रेस पहले की तुलना में और कमजोर होगी, जबकि भाजपा का मनोबल लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बहुत बढ़ जाएगा। केंद्रीय स्तर पर लोकसभा चुनाव के लिए एक मजबूत विपक्ष की तलाश हो रही थी, पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की हार से कांग्रेस की स्थिति विपक्षी गठबंधन में कमजोर होगी। विशेष रूप से कर्नाटक जीतने के बाद कांग्रेस को जो मनोबल हासिल हुआ था, वह उसने मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हारकर गंवा दिया है।
दूसरी तरफ, कर्नाटक वह उसके पास और ज्यादा लुटाकर भाजपा ने जो मनोबल गंवाया था, मजबूती से लौट आया है। खासतौर पर मध्य प्रदेश में भाजपा की तगड़ी जीत राजनीतिक विश्लेषण का महत्वपूर्ण विषय है। मोटे तौर पर भाजपा लगभग दो दशक से मध्य प्रदेश की सत्ता में है और इस विधानसभा चुनाव में जितनी मजबूत वह दिखी है, उससे राजनीतिक पंडितों को निश्चित ही आश्चर्य होगा। अब मध्य प्रदेश में कांग्रेस यदि स्वयं को पुनर्नवा करने के लिए संगठन के स्तर पर आमूलचूल परिवर्तन करे, तो ही आगे के लिए कोई रास्ता तैयार होगा।
देश के केंद्रीय या हृदय प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया है। हम कह सकते हैं, अब भाजपा के लिए दूसरे गुजरात की तरह की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। डबल इंजन सियासी स्वरूप में मध्य प्रदेश हो गया है। साथ ही, भाजपा के इस्तेमाल से मध्य प्रदेश देश के लिए आदर्श राज्य बन सकता है और अब तो अपेक्षाकृत विकसित पड़ोसी छत्तीसगढ़ भी भाजपा के पास लौट रहा है। देश की सशक्त केंद्रीय सत्ता को याद रखना चाहिए कि उसकी अपनी बुनियादी हिंदी पट्टी को अभी भी एक आदर्श विकसित राज्य का इंतजार है। शायद लोग भी यही चाहते हैं।
चार राज्यों के चुनाव परिणामों को अगर समग्रता में देखा जाए, तो ऐसा बहुत कुछ है, जिससे सीखकर आगे बढ़ना चाहिए। खासकर बढ़चढ़कर दावा करने वाले कुछ नेताओं को सबक लेना चाहिए। तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति के अध्यक्ष व मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव को अगर मिसाल के रूप में सामने रखें, तो पता चलेगा कि जमीन से उठकर ऊपर आए इस नेता को तमाम तरह की कमियों-खामियों ने घेर लिया था, परिवारवाद से लेकर बड़बोलेपन तक, अति-महत्वाकांक्षा से लेकर देश के प्रधानमंत्री के साथ दुर्व्यवहार तक देश ने बहुत कुछ देखा। वह देश के नेता बनना चाहते थे, पर तेलंगाना की जनता ने उन्हें प्रदेश लायक भी नहीं छोड़ा।
इन चुनाव परिणामों से विपक्ष के तमाम नेताओं को सीखना होगा। केवल लोकलुभावन योजनाएं काम नहीं आएंगी, बुनियादी स्तर पर संगठन और लोगों के बीच जाकर विश्वास जीतना होगा, इस बार भाजपा ने यही बेहतर किया है।